देहरादून में स्थित प्रसिद्ध आर्ष गुरुकुल पौंधा में इस वर्ष 35 नये ब्रह्मचारियों ने प्रवेश लिया है। इन सभी ब्रह्मचारियों के उपनयन एवं वेदारम्भ संस्कार आज गुरुवार दिनांक 7 अगस्त, 2025 को समारोहपूर्वक सम्पन्न हुए। इस कार्यक्रम में भाग लेने आर्यसमाज के प्रसिद्ध संन्यासी स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी गौतमनगर, दिल्ली से विशेष रूप से पधारे थे। संस्कार में भाग लेने के लिए आर्यसमाज के प्रसिद्ध संन्यासी स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती, स्वामी मुक्तानन्द जी रोजड़, आचार्य डा. रवीन्द्र कुमार आर्य, हरिद्वार, आचार्य डा. यज्ञवीर जी, आचार्य डा. शिवदेव आर्य जी हरिद्वार, डा. अन्नपूर्णा जी, आचार्य संजीव जी, श्री मुकेश विद्यालंकार जी बड़ौत एवं आचार्य रवीन्द्र कुमार शास्त्री जी, वैदिक साधन आश्रम तपोवन पधारे थे वा आयोजन में उपस्थित थे। उपनयन संस्कार का आरम्भ प्रातः 7.30 बजे आरम्भ हुआ। संस्कार की कार्यवाही को आचार्य रवीन्द्र कुमार आर्य जी ने संचालित किया। सभी ब्रह्मचारियों ने आचार्य डा. यज्ञवीर जी से दोनों संस्कारों की दीक्षा ली। संस्कार के अन्तर्गत सम्पन्न की जाने वाली सभी क्रियाओं को ऋषि दयानन्द रचित संस्कार विधि के अनुरूप पूरा किया गया। संस्कार में ब्रह्मचारियों के अभिभावकगण सहित देहरादून नगर में स्थित गुरुकुल प्रेमी भी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। संस्कार सम्पन्न होने के बाद नव प्रविष्ट ब्रह्मचारियों ने यज्ञ पर एक गीत प्रस्तुत किया। इस अवसर पर द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल की आचार्या डा. अन्नपूर्णा जी ने सभी ब्रह्मचारियों को अपना आशीर्वाद दिया और गुरुकुल शिक्षा प्रणाली की विशेषताओं पर सारगर्भित प्रकाश डाला।
अपने आशीर्वाद एवं सम्बोधन में स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी ने गायत्री मन्त्र का उच्चारण किया और कहा कि बच्चों को संस्कार जन्म वा बचपन से ही दिए जाते हैं। पिता अपने बच्चों को संस्कार देते हुए कहता है कि तेरा नाम वेद है। स्वामी जी ने कहा कि परम पिता का निज एवं मुख्य नाम ओ३म् है। ईश्वर के अन्य जितने भी नाम हैं वह सब गौणिक नाम हंै। स्वामी जी ने श्रोताओं को बताया कि परमात्मा व किसी का मुख्य एवं निज नाम कभी बदलता नहीं है। स्वामी जी ने वेदप्रमी श्रोताओं को बताया कि पिता अपने नवजात शिशु को यह भी कहता है कि वह अपने पुत्र वा पुत्री में चारों वेदों को स्थापित करता है। यह बच्चों को संस्कार देने की प्रक्रिया है। स्वामी जी ने कहा कि बच्चे का जातकर्म, नामकरण एवं अन्य संस्कार करते हुए माता, पिता जो वचन बोलते हैं, वह नन्हा बालक सुनता है और इसका प्रभाव उसके मन व आत्मा पर पड़ता है। यह एक प्रकार का संस्कारों का बीजारोपण होता है जो समय के साथ वृद्धि व अच्छे परिणामों को प्राप्त होते हैं।
स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी ने श्रोताओं को यह भी कहा कि आचार्य एवं उनके शिष्यों का मन एक दूसरे के अनुकूल होना चाहिये। ऐसा होना विद्या को पढ़ने वा पढ़ाने के लिये आवश्यक होता है। वेदों के शीर्ष विद्वान स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी ने कहा कि मनुष्य को सुख तब मिलेगा जब वह विद्या पढ़ेंगे। सभी ब्रह्मचारी व सामान्य जन यदि वेदों की शिक्षाओं पर ध्यान देंगे व उसके अनुसार आचरण करेंगे तो उनका जीवन श्रेष्ठ वा उत्तम बनेगा। स्वामी जी ने यह भी कहा कि वेदानुसार जीवन व्यतीत करने वाले मनुष्यों की आयु अधिक होती हैं वहीं आतंकवादियों व खुराफातियों की आयु कम होती है। 8 गुरुकुलों के संस्थापक एवं संचालक स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी ने कहा कि हम वेदमंत्रों के अनुसार आचरण करने वाले बनें। स्वामी जी ने ब्रह्मचारियों से कहा कि वह आचार्यों की छत्रछाया एवं मार्गदर्शन में अपना जीवन बनायें। स्वामी जी ने अपने वक्तव्य को विराम देते हुए आयोजन में पधारे सभी आचार्यों, विद्वानों एवं श्रोताओं को अपना आशीर्वाद एवं धन्यवाद दिया।
उपनयन संस्कार सम्पन्न होने के बाद गुरुकुल में प्रधान अध्यापक श्री राहुल कुमार आर्य ने भी अपने विचार प्रस्तुत किये। उन्होंने कहा कि हमारी प्राचीन परम्परा संस्कारों से बंधी परम्परा है। मनुष्य का जीवन जन्म से पूर्व गर्भाधान से आरम्भ होकर अन्त्येष्टि संस्कार तक 16 संस्कारों से बंधा रहता है। उन्होंने कहा कि संस्कार का तात्पर्य मनुष्य के अन्दर गुणों का धारण कराना है। आचार्य जी ने कहा कि संस्कार आत्मा का किया जाता है। शरीर के संस्कार अलग होते हैं जिनसे शरीर की उन्नति होती है। श्री राहुल आर्य जी ने कहा कि तीन प्रकार के स्नातक होते हैं जिन्हें हम विद्या स्नातक, व्रत स्नातक तथा विद्या-व्रत स्नातक के नाम से जानते हैं। विद्वान युवा आचार्य राहुल आर्य ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति विद्वान नहीं बन सकता परन्तु धार्मिक सभी मनुष्य बन सकते हैं। अतः सभी मनुष्य को धार्मिक बनना चाहिये और विद्या भी प्राप्त कर विद्वान बनना चाहिये।
कार्यक्रम का संचालन गुरुकुल के प्रधान आचार्य डा. धनंजय आर्य जी ने किया। उन्होंने विद्वानों के वक्तव्यों के मध्य गुरुकुल एवं संस्कारों के विषय में अपने महत्वपूर्ण विचारों को भी प्रस्तुत किया। आचार्य जी ने उपनयन संस्कार एवं वेदारम्भ संस्कार में आचार्य द्वारा अपने शिष्य ब्रह्मचारी के हृदय को स्पर्श करने की क्रिया के महत्व पर भी प्रकाश डाला। गुरुकुल पौंधा की उन्नति में स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी का आशीर्वाद एवं आचार्य धनंजय जी, आचार्य चन्द्रभूषण आर्य जी सहित डा. यज्ञवीर जी, डा. शिवदेव आर्य आदि का प्रशंसनीय योगदान है।
कार्यक्रम में स्थानीय लोगों में वैदिक विद्वान डा. कृष्णकान्त वैदिक शास्त्री जी सहित श्री जगत सिंह जी, श्री चन्द्रेश आर्य जी, स्त्री आर्यसमाज देहरादून की प्रधाना श्रीमती रेखा आर्य जी आदि अनेक गणमान्य लोग विद्यमान थे। कार्यक्रम की समाप्ति के बाद हमने आचार्य धनंजय जी से आर्ष ज्योति का विशेषांक एवं वैदिक नित्य कर्म विधि सहित अन्य पुस्तकें उपहार रूप में प्राप्त की। इन सभी पुस्तकों को गुरुकुल ने प्रकाशित किया है। सभी आये हुए अतिथियों ने भोजन ग्रहण किया और इसी के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ। ओ३म् शम्।