GMCH STORIES

आतंकवाद किस खेत की फसल है?

( Read 9203 Times)

28 Dec 15
Share |
Print This Page

आतंकवाद आज पूरी दुनिया ही नहीं बल्कि पूरी इंसानियत के लिए खतरा बनता जा रहा है। आतंकवाद आज किसी खास देश समुदाय अथवा धर्म का मसला नहीं रहा। आतंक और कट्टरता की चपेट में आज पूरी मानवता है। आज पूरा विश्व इस उग्रवाद और कट्टरपंथी विचार धारा से त्रस्त और पीड़ित है। आतंकवाद ने आज अपनी शब्दावली में कई ऐसे काम और नाम जोड़ लिए हैं जो पहले न थे। इसी वजह से आज इसे जितना कठिन हो गया है उतना ही आवश्यक भी हो गया है। आतंकवाद सिर्फ आतंकवाद है उसको किसी देश, धर्म या समुदाय विशेष से जोड़ना भी एक तरह का आतंकवाद है। यह एक वैश्विक और प्राक्रतिक सत्यता है कि हर धर्म के अपने सिधांत होते हैं जैसे हर समुदाय की अपनी परंपरा और हर देश के अपने कानून। आतंकवाद जैसी हिंसक और घ्रणक घटना को अंजाम देने वाला हमारी आप की तरह किसी न किसी देश समुदाय और धर्म से ज़रूर जुड़ा होता है। अब अगर किसी भी हिंसावादी व्यक्ति के स्वयं कर्म को उस के धर्म, देश और समुदाय से जोड़ कर देखा जाने लगे तो शायद कोई भी देश धर्म और समुदाय हिंसा और कट्टरता के हीन भावना से मुक्त नज़र नहीं आयेगा क्योंकि दिन के साथ रात का होना स्वाभाविक हैं। फूल है तो कांटे होंगे। धर्म की आवश्यकता उसकी महत्वता तभी समझ में आती है जब अधर्म सामने हो। यह प्रकृति का नियम है। अब ऐसे में उस देश के कानून, समुदाय की परम्परा और धर्म के सिधांत और शिक्षा की ओर हमें देखना होगा। आतंकवाद की जड़ों तक पहुँचने का यही एक मात्र विकल्प और मूल मन्त्र है। वरना आतंकवाद का विरोध कर के हम न जाने कितने तरह के आतंकवाद के जनम देंगे और कितने और ज्यादा हिंसावादी पैदा कर देंगे। यह भी इस स्रष्टि के रचयिता कि एक रचना है कि देश का क़ानून हो, समुदाय की परंपरा या फिर धर्म के सिधांत और उसकी शिक्षाएं हर एक को लागू करने का प्रबंध भी किया गया है। इस से यह बात स्पष्ट हो गई कि किसी भी समुदाय का प्राणी अपनी ग़लती पर उस समुदाय को प्रस्तुत नहीं करता या यूँ कह लें की किसी भी व्यक्ति या प्राणी के हिंसक भाव और कट्टरता को उसके समुदाय धर्म या देश से जो कर नहीं देखा जा सकता क्योंकि वो समुदाय, धर्म या देश भी उस व्यक्ति विशेष के कुकर्मों का उत्तरदायित्व नहीं है। उस ने जब आतंकवाद या कट्टरवाद जैसी घ्रणक और दंडनीय अपराध किया तो सब से पहले उस ने अपने ही देश के कानून, समुदाय की परंपरा और धर्म की शिक्षा का उन्लंघन किया इसलिए वह व्यक्ति किसी दसरे देश समुदाय और धर्म का मुजरिम बनने से पहले खुद अपने देश, धर्म और समुदाय का दोषी है। यही वजह है की उस व्यक्ति के विरुद्ध कोई भी क़दम और किसी को \ भी क़दम उठाने से पहले खुद उसी समुदाय धर्म और देश के ज़िम्मेदारों को उस से निपटना चाहिए। जब तक हम अपने घर में पनप रही हिंसा , नफ़रत , भेदभाव , कट्टरता और असहिष्णुता जैसी बिमारियों और गंदगियों को खुद ही साफ़ नहीं करेंगे तो औरों से हम उसके घर की गन्दगी साफ़ करने को कैसे कह सकते हैं। यह एक नैतिक मूल है कि अगर हम किसी को बुराई से रोकना चाहते हैं तो पहले हम अपने आप को बुराई से दूर करते हैं। किसी की कमियों पर नज़र डालने से पहले हम अपने ह्रदय और मन में खुद झांक कर देखते है कि हमारा मन कितना साफ़ है और हमारा ह्रदय कितना पवित्र है। आतंकवाद के विरुद्ध अगर हम वाकई एक लड़ाई लड़ना चाहते हैं तो हमें पहले अपने आप में यह तय करना होगा की हम आतंकवाद के विरुद्ध हैं न कि किसी खास कौम, मुल्क या धर्म के विरुद्ध नहीं। जहाँ यह बात सत्य है कि आतंकवाद आज पूरी दुनिया की समस्या है वही यह भी सत्य है यह आतंकवाद एक विचारधारा है। इसी एक विचारधारा और मूलमंत्र पर इस का प्रचार प्रसार हो रहा है। जो इस विचार धारा को स्वीकार कर ले वो सही और जो इसके विरुद्ध हुआ वो ग़लत। उग्रवाद हो या आतंकवाद दोनों की एक ही धारणा और मानसिकता है कि हम सही बाकी सब ग़लत हैं। जब कि वास्तविकता यह है की इनका न कोई धर्म है न देश और न कोई समुदाय है। यह वो बागी और विद्रोही हैं जो अपने ही देश के कानून की धज्जियाँ उड़ाते हैं अपने ही समुदाय की परम्पराओं का अपमान करते हैं और अपने ही धर्म की शिक्षाओं को ग़लत ठहराते हैं। अगर इनके वास्तविक उद्येश्य को देखा जाये तो मूल रूप से दो चीजें चाहते हैं। पैसा और पावर। सारी लड़ाई, फसाद, हिंसा, साम्प्रदायिकता सब का एक ही उद्येश्य है पैसा हो चाहे जैसा हो कुर्सी हो चाहे जिनती लाशों पर रखी गयी हो। इनके यहाँ नैतिक, सामाजिक या धार्मिक मूल्यों का कोई भी अर्थ नहीं। जो कहें वही कानून जिसे अपना लें वही परंपरा जो करें वही सिधांत। जब यह स्पष्ट हो गया की आतंकवाद और उग्रवाद एक विचारधारा है तो इस का उपचार भी किसी विचारधारा से ही होगा। हम यह भली भांति जानते हैं की भारत ऋषि मुनियों और सूफी संतों का देश है। इन सूफियों कि विचारधारा यह हमारे देश की विशेषता रही है। जिस ने अपने देश की गंगा जमुनी तहज़ीब बड़े प्रेम, सदभाव और परंपरागत रूप से प्रचलित किया और आज तक हम उस संस्कृति को न सिर्फ मान रहे हैं बल्कि उसे बढ़ावा भी दे रहे हैं। आज शायद हमारी इसी सौहार्द को मन में बसे मैल की बुरी नज़र लग गई। हम ने एक साथ उठना बैठना बंद कर दिया। अमन, सुकून, आपसी सौहार्द, मेलजोल, भाईचारगी जैसी अमूल्य भावनाओं के शुद्ध वातावरण और साफ़ बदल को नफरत, भेदभाव और हिंसा का गहन लग गया। धीरे धीरे यह बादल हमारे समाज अपनी चपेट में लेता नज़र आ रहा है। यह हमारे भारत देश का सौभाग्य रहा है जब भी इस के मूल्यों का सौदा करने वाले आतंक के पुजारियों की बुरी नज़र देश की अखंडता पर पड़ी है इस धरती को बड़े बड़े जांबाज़ सपुत मिले हैं जिन्होंने अपने अपने खून की लाली से देश में पनप रही नफरत और हिंसा की स्याही को मिटाया है। हर क्षेत्र में अपना बलिदान दिया है। चाहे वो समाज विरोधी परंपरा के विरुद्ध कोई आन्दोलन हो या फिर देश की एकता को तोड़ने वाली सांप्रदायिक गतिविधियाँ हों। हर दौर में देश से प्रेम करने वाले देश प्रेमियों ने अपनी ज़िम्मेदारी निभाई है। जितने भी बलिदान की ज़रूरत पड़ी है उसकी कीमत चुकाई है और देश को हमेशा प्रगति की राहों पर ला खड़ा किया है। आज फिर ज़रूरत है ऐसे ही ज़िम्मेदारों की जो सिर्फ देश और उसकी सांस्कृतिक धरोहर के बारे में सोंचें। मानव अहित और देश विरुद्ध हर विचारधारा का खंडन करें। आज फिर देश अपने भक्तों और मुजाहिदों को आवाज़ दे रहा है।

Source : अब्दुल मोईद अज़हरी abdul Moid
This Article/News is also avaliable in following categories :
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like