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विष्व प्रसिद्ध श्रीनाथ जी मंदिर, नाथद्वारा

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11 Feb 17
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विष्व प्रसिद्ध श्रीनाथ जी मंदिर, नाथद्वारा


डॉ. प्रभात कुमार सिंघल लेखक एवं पत्रकारनाथद्वारा में भगवान श्रीकृश्ण का विष्व प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान की अपनी अलग पहचान बनाता है। कहा जाता है कि श्रीनाथ जी गोकुल, मथुरा और वृन्दावन से यहां नाथद्वारा में आए थे। श्रीनाथ जी मंदिर परिसर काफी विषाल है। मंदिर में श्रीनाथ जी की काले रंग की संगमरमर से बनी सुंदर एवं मनमोहक प्रतिमा प्रतिश्ठापित है। प्रतिमा के मुख के नीचे ठोडी में एक बडा हीरा जडा हुआ है। श्रीनाथ जी के प्रत्येक दर्षन के अलग-अलग श्रृंगार किए जाते हैं। श्रृंगार के लिए सलमे-सितारों से सजे-धजे नए कपडे बनवाए जाते हैं। नक्कारखाना दरवाजे पर भगवान के वस्त्र सिलाई का कार्य भी किया जाता है। श्रीनाथ जी के दर्षन कर दिन भर में हजारों श्रृद्धालु पुण्य कमाते हैं। मंदिर के कमान चौक के पूर्व में श्रीनाथ जी का प्रसाद मिलता है। यह प्रसाद काफी स्वादिश्ट होता है। यहां का प्रसाद पूरे भारतवर्श में प्रसिद्ध है।
यह मंदिर पुश्टिमार्गीय वैश्णव सम्प्रदाय की प्रधान पीठ है। यहां श्रीनाथ जी का भव्य मंदिर करोडों वैश्णवों की आस्था का प्रमुख केन्द्र है। श्रीनाथ जी का यह मंदिर करीब ३३७ वर्श पुराना है।
मंदिर में सर्वाधिक भीड भोग एवं मंगलता आरती के समय होती है तथा भोग एवं मंगला का श्रीनाथ जी श्रृंगार भी अत्यन्त दर्षनीय होता है। यहां प्रातः ५.१५ से ६.०० बजे तक मंगला, प्रातः ७.१५ से ७.३० बजे से श्रृंगार, ११.३० से १२.१५ बजे तक राजभोग, दोपहर ३.४५ से ४.०० बजे उत्थापन, सांय ५.१५ से ६.०० बजे तक भोग तथा सांय ६.४५ से ७.१५ बजे तक षयन, आरती एवं दर्षन होते हैं।
मंदिर का मोती महल दरवाजा प्रमुख प्रवेष द्वार है। यह दरवाजा चौपाटी की तरफ खुलता है, जो नाथद्वारा की हृदय स्थली कहा जाता है। करीब १०० फुट लंबा ढलान चौपाटी को मुख्य प्रवेष द्वार से जोडता है। मुख्य प्रवेष द्वार के अंदर एक बडा चौक आता है, जिसे मोती महल कहा जाता है। इस चौक के मध्य में एक फव्वारा लगा हुआ है। मोती महल से होकर एक संगमरमर की गली से गुजरकर श्रीलालन तक पहुंचते हैं। श्रीलालन श्रीनाथ जी का बाल स्वरूप है। यहां लालन के दर्षन कर बांयी तरफ श्रीनाथ जी बैठक एवं मुखिया आदि की पुरानी तस्वीरें बैठक में लगी हुई दिखाई देती हैं। लालन जी के दर्षन के बाद श्रीनाथ जी के दर्षन के लिए इंतजार चौक में पहुंचते हैं। यह नक्कारखाना दरवाजे से जुडा है।
श्रीनाथ जी के मंदिर का एक ओर दूसरा प्रवेष द्वार नक्कारखाना कहा जाता है। चौपाटी से दांयी तरफ के रास्ते पर जाने से नया बाजार व उसके बाद नक्कारखाना दरवाजा दिखाई देता है। यह दरवाजा काफी विषाल है और इसके ऊपर षहनाई व नगाडा बजाने वाले बैठने के कारण इसे नक्कार दरवाजा कहा जाता ह। जब भी श्रीनाथ जी के पट दर्षनार्थ खुलते हैं, उस समय षहनाई और नगाडा बजाया जाता है। यह दरवाजा भी सीधे दर्षनों के लिए इंतजार चौक में जाता है। इस चौक में पुरूश श्रृद्धालुओं के खडे होने की व्यवस्था है तथा महिला श्रृद्धालुओं के लिए पास में ही संगमरमर से बना हुआ विषाल कमल चौक बना है।
श्रीनाथ जी के दर्षनों के लिए एक और दरवाजा बनाया गया है, जिसे प्रीतमपोल कहा जाता है, जो अपेक्षाकृत दोनों दरवाजों से छोटा है। यह उत्तर की तरफ खुलता है, जबकि मोती महल दरवाजा व नक्कारखाना दरवाजा पूर्व की ओर खुलते हैं। चौपाटी से दांयी ओर उत्तर की तरफ जाने पर नया बाजार से पष्चिम की ओर रास्ते के बीच प्रीतमपोल दरवाजा आता है। इस दरवाजे के अंदर प्रवेष करने पर एक संकरा रास्ता सीधा कमल चौक जाता है। कमल चौक एवं नक्कारखाना का पुरूश श्रृद्धालुओं का इंतजार वाला चौक पास-पास है तथा इनके मध्य करीब २० फुट की दूरी है तथा ये १० लंबी सीढयों द्वारा आपस में जुडे हैं। इन दोनों चौकों के दक्षिण-पष्चिम की तरफ श्रीनाथ जी के दर्षन करने वाला चौक आता है।
श्रीनाथ जी के दर्षनों के लिए उनके सामने के दर्षन स्थल पर जगह सीमित होने के कारण खेवा व्यवस्था की गई है। यहां करीब १०० से १५० श्रृद्धालु भी एक समय में खडे रहकर दर्षन कर सकते हैं, इसलिए सभी को एक साथ यहां आने नहीं दिया जाता है। इसके लिए कमल चौक में महिलाओं एवं नक्कारखाना चौक में पुरूश श्रृद्धालुओं को रोक लिया जाता है। यहां से सीमित संख्या में इनको अंदर भेजा जाता है। एक बार में जितने श्रृद्धालु जाते हैं, उसे खेवा व्यवस्था कहा जाता है। नाथद्वारा में यूं तो देष-विदेष से बडी संख्या में लोग श्रीनाथ जी के दर्षन करने आते हैं, परंतु गुजराती समाज के लोग यहां हर वक्त बडी संख्या में देखे जा सकते हैं।
श्रीनाथ जी मंदिर में मुख्य उत्सव श्रीकृश्ण जन्माश्टमी का आयोजित किया जाता है। इस दिन रात १२ बजे मंदिर प्रषासन २१ तोपें दाग कर सलामी देती है। श्रीनाथ जी की दीवाली भी प्रसिद्ध है तथा इसके दूसरे दिन खेकरा महत्वपूर्ण त्यौहार मनाया जाता है। नाथद्वारा में कई गौषालाएं भी हैं, जिनमें श्रीनाथ जी मंदिर की भी एक गौषाला है, जहां करीब ४०० गायों को रखने की व्यवस्था मंदिर प्रषासन की ओर से की जाती है। नाथद्वारा उदयपुर से करीब ५० किलोमीटर दूरी पर है। उदयपुर से हर समय यहां के लिए बसें उपलब्ध हैं।



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