पीपीपी मोड पर विद्यालय संचालन का निर्णय वापस ले
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12 Sep 17
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उदयपुर,राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के शिक्षक प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष बाबुलाल जैन ने कहा कि राज्य सरकार उच्च न्यायालय एवं उच्चतम् न्यायालय के निर्णय के बावजूद बंद की गई १७ हजार स्कूलों पुनः खोलने एवं ३०० विद्यालयों को पी.पी.पी. मोड पर संचालित करने के अपने निर्णय को वापस लेने की कार्यवाही नहीं करती है तो राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष सचिन पायलेट के निर्णयानुसार कांग्रेस शिक्षक प्रकोष्ठ पायलेट के नेतृत्व में सडकों पर जनता के सहयोग से संघर्ष प्रारम्भ करेगा।
शिक्षक प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष बाबुलाल जैन ने कहा कि पूर्व में राज्स्थान उच्चतम न्यायालय सरकार केा निर्देश दे चुका है कि शिक्षा अधिकार अधिनियम २००९ के प्रावधानों का उल्लंघन कर बंद की गई १७ हजार स्कूलों को बंद करने के अपने निर्णय की समीक्षा कर विद्यालयों केा पुनः प्रारम्भ करें। अब उच्चतम न्यायालय ने भी यह स्पष्ट कर दिया है कि किसी भी बालक को ३ कि.मी. से अधिक दूरी पर उच्च प्राथमिक शिक्षा एवं १ कि.मी. से अधिक दूरी पर प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के लिये मजबूर नहीं किया जा सकता है।
जैन ने कहा कि राज्य सरकार राजकीय विद्यालयों को पीपीपी मोड में देकर निजीकरण का निर्णय लेकर एक के बाद एक जनविरोधी निर्णय कर कोपोर्रेट घरानों का हित साधन कर लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के खिलाफ आमजनहित पर कुठाराघात कर रही है। सार्वजनिक शिक्षा केा पीपीपी मोड देने से प्रदेश के लाखों प्रशिक्षित बेरोजगार शिक्षक कभी भी शिक्षक पद पर नियुक्ति नहीं पा सकेगें। छात्रों से जबरिया अधिक फीस वसूली होगी, गरीब अभिभावकों के बच्चे शिक्षा प्राप्त करने के मौलिक अधिकार से वंचित हो जायेगें। राज्यभर में भामाशाहों द्वारा ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था के सुदृढीकरण हेतु दी गई भूमि, भवन एवं संसाधन निजी हाथों में चले जाने से राज्य के शिक्षा विभाग में विद्यालयों के लिये शुरू की गई भामाशाह योजना भी ध्वस्त हो जावेगी।
जैन ने कहा कि राज्य सरकार एक तरफ बिजली, सडक, चिकित्सा, पर्यटन, पानी और अब शिक्षा केा निजी क्षेत्र में देकर कार्पोरेट घरानों के लिये लुट का रास्ता साफ कर रही है। वहीं दिल्ली हाईकोर्ट के निर्णायानुसार दिल्ली सरकार केा शिक्षा माफिया पर नकेल कसकर निजी विद्यालयों का संचालन अपने हाथ में लेना पड रहा है। लेकिन राज्य सरकार उच्चतम न्यायालय के निर्णयो की पालना करने में भी कोताही बरतकर देश के संवैधानिक मूल्यों एवं न्यायिक निर्णयों की पालना की व्यवस्था केा ध्वस्त कर निरंकुशता एवं स्वेच्छाचारिता को बढावा दे रही है जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता
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