GMCH STORIES

राव माधोसिंह संग्रहालय

( Read 33203 Times)

12 Jun 18
Share |
Print This Page
राव माधोसिंह संग्रहालय कोटा (डॉ. प्रभात कुमार सिंघल) | नगर एवं हाडौती सम्भाग की कला, संस्कृति एवं इतिहास के दिग्दर्षन के लिये राव माधोसिंह ट्रस्ट संग्रहालय की स्थापना २० मार्च १९७० को कोटा के महाराव भीमसिंह द्वितीय द्वारा की गई थी। यह संग्रहालय कोटा के टिपटा स्थित प्राचीन गढ में स्थित है।
संग्रहालय के साथ ही साथ हम कोटा के इस गढ को तथा इसमें समय निर्मित होने वाले विविध प्रकार के भव्य निर्माणों एंव महलों का भी अवलोकन कर सकते हैं।
पृथक से कोटा राज्य की स्थापना १६३२ ई. से मानी जाती है। राज्य निर्माण पष्चात गढ में पुराने भवनों के साथ ही साथ प्रथम षासक राव माधोंसंह ने एक भव्य राजमहल का निर्माण कराया। माधोसिंह द्वारा प्रारंभ में निर्मित इसी राजमहल में यह संग्रहालय स्थित है। संग्राहालय के मुख्य कक्ष अखाडे के महल या दरबार हॉल, सिलहखाना एवं उसके बरामदे, अर्जुन महल, छत्र महल, बडा महल, भीम महल तथा आनन्द महल इसी राजमहल में स्थित हैं।
संग्रहालय में प्रवेष हम हथियापोल से करते है। जो कि राजमहल का मुख्य प्रवेष द्वार है। प्रवेष द्वार की बाहरी दीवार पर दरवाजे के दोनों ओर कोटा चित्र षैली में दो सुन्दर द्वार रक्षिकायें चित्रित हैं। इन्हें कोटा के प्रसिद्व चित्रकार स्वर्गीय प्रेमचन्द षर्मा ने अपने भाई के साथ मिलकर बनाया था। नये दौर के इन दोनों चित्रों के कुछ ऊपर विषाल आकार के पत्थर के दो भव्य एवं आकर्शक हाथी दीवार पर लगे हुए हैं। पहले ये हाथी बून्दी के ऐतिहासिक किले के आन्तरिक प्रवेष द्वार पर लगे हुए थे तथा कोटा के प्रतापी नरेष महाराव भीमसिंह प्रथम एक आक्रमण के दौरान अपनी पैतृक भूमि बून्दी से इन्हें यहां ले आये और इस दरवाजे पर स्थापित कराया।
संग्रहायल में प्रदर्षित सामग्री विविध कक्षों में अवस्थित है जो कि इस प्रकार है ः-
१. दरबार हॉल, विविध राजसी वस्तुओं का कक्ष २. षस्त्र कक्ष ३. वन्य पषु कक्ष ४. फोटो गैलरी ५. चित्र कक्ष ६. चित्रित एवं अलंकृत राजमहल ७. अर्जुन महल के भित्ति चित्र ८. दीवाने-ए-खास या भीम महल ९. बडा महल-भित्ति चित्र एवं जडाई का काम १०. छत्र महल के भित्ती चित्र।
इन कक्षों में से प्रथम छह पहली मंजिल, दसवां कक्ष तीसरी मंजिल तथा बाकी सब दूसरी मंजिल पर अवस्थित हैं। प्रथम छह कक्ष सभी आगन्तुकों के लिये खुले रहते हैं। परन्तु अन्य कक्ष विषिश्ट प्रयोजन से विषेश अनुमति प्राप्त कर ही देखे जा सकते हैं।
दरबार हॉल में राजसी सामान दर्षाये गये हैं। ये सामान सोने-चांदी, पीतल तथा अश्टधातु, हाथी दांत, काश्ठ तथा वस्त्राभूशण आदि अनके प्रकार के हैं। इनमें से अधिकांष वस्तुएं वे है जिनका उपयोग कोटा राजाओं और महारानियों ने व्यक्तिगत तौर पर किया था। मुख्य रूप से ये वस्तुएं पूजा कार्य मनोरंजन या आराम के साधन एवं सवारी आदि से सम्बन्धित हैं। इनमें से कुछ प्रमुख आकर्शक की वस्तुएंे हैं।
वाद्य यंत्र, गंजफा खेल, चौपड-चौसर, राजसी परिधान, सवारी सामग्री, कलात्मक वस्तुऐं आदि का प्रदर्षन किया गया है।
यह दरबार हॉल इनके अतिरिक्त इतने प्रकार के विविध संग्रहों से परिपूर्ण हैं कि सभी का ब्यौरा काफी विस्तार चाहता है। इनमें कुछ प्रमुख सामग्री है - श्रीनाथजी का चांदी का ंसिंहासन व बाजोट, सुनहरी, हाथीदांत और चांदी की जडाई की कुर्सिया, हाथीदांत के ढोलण के पाये, चांदी की पिचकारियां, जडाऊ पालना, प्राचीन सिक्के, कागज पर लगने वाली रियासत की ९५ मोहरें, रूईदार सदरी सुनहरी, चांदी तथा हाथीदांत के बने पंखों की डंडियां, सोने चांदी के जडे नारियल, तीन षो केसों में रखे प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थ, केरोसीन से चलने वाला प्राचीन पंखा, पुराने जमाने के विविध किस्म के ताले और चाबियां है। तैरने का तख्ता जिसमें ४ तुम्बे लगे हए हैं, भी यहां प्रदर्षित है। इनका उपयोग पहले राजमहल के चौक के हौज में तैरने के लिये किया जाता था तथा झाला जालिम सिंह के नहाने का २० सेर का पीतल का चरा भी यहां है। दरबार हॉल के बाहर के बरामदे में खगोल यंत्र, जलघडी, धूपघडी, काश्ठ घोडा तथा नौबते वस्तुएं प्रदर्षित की गई हैं।

Source :
This Article/News is also avaliable in following categories : Headlines , Kota News
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like