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भारतीय लोक कला मण्डल में नाटक  ‘‘मास्टर साहब’’ का सफल मंचन 

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08 May 19
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भारतीय लोक कला मण्डल में नाटक  ‘‘मास्टर साहब’’ का सफल मंचन 

उदयपुर, भारतीय लोक कला मण्डल, उदयपुर में गुरू रवीन्द्र नाथ टैगोर की 158 वीं जन्मतिथी और उदयपुर शहर के स्थापना दिवस पर नाटक ‘‘ मास्टर साहब’’ का मंचन हुआ ।

संस्था के मानद सचिव दौलत सिंह पोरवाल ने बताया कि गुरू रवीन्द्र नाथ टैगोर की 158 वीं जन्मतिथी और उदयपुर शहर के स्थापना दिवस के अवसर पर  भारतीय लोक कला मण्डल, उदयपुर तथा दी परफोरमर्स उदयपुर, के संयुक्त तत्वावधान में विगत एक माह से चल रही नाट्य कार्यशाला के समापन अवसर पर  संस्था के मुक्ताकाशी रंगमंच पर नाटक ‘‘ मास्टर साहब ’’ का मंचन हुआ।

उन्होने बताया कि गुरू रवीन्द्र नाथ टैगोर द्वारा लिखित कहानी ‘‘ मास्टर साहब’’ का  नाट््य रूपांतरण और निर्देशन डॉ. लईक हुसैन द्वारा किया गया। 

संस्था के  निदेशक डॉ. लईक हुसैन ने बताया कि इस अवसर पर  एक ऐसा नाटक खोजा जा रहा था जो दोनों ही अवसरों कि महत्वता को प्रतिपादित करने के साथ सम सामायिक परिस्थितियों में मानवीय मूल्यों में  होते घटना क्रम को भी उजागर करे। टैगोर ने समाज में फैली विद्रुषता असामन्यता तथा मानवीय मूल्यों में हो रही कमी को समय - समय पर अपने नाटको, कहानीयों एवं चित्रों में प्रदर्शित किया है। तो मेवाड़ अपने मानवीय मूल्यों, गरीबों, आदिवासियों के हक की सुरक्षा और बलिदान के लिए जाना जाता रहा है। तथा अपने उद्वेश्य की पूर्ति हेतु हमेशा  संघर्ष करता रहा है। तो ऐसे में  नाटक मास्टर साहब इन  सब को दृष्टिगत रखते हुए एक महत्वपूर्ण नाटक है। 

नाटक ‘‘मास्टर साहब’’ की कहानी एक गरीब परिवार में पले- बड़े, मासूम हरलाल पर केन्द्रित है । हरलाल की मॉ ने दूसरों के घरां में काम कर के उसका पालन- पोषण कर उसे पढ़ाया- लिखाया। दूसरों के घरों में काम करते हुए उसकी मॉ को मिली प्रताड़नाओं के कारण ही हरलाल स्वभाव से दब्बु एवं झेंपु बालक रहा। पढ़ाई को आगे जारी रखने के लिये वह गॉव से शहर आया । और वहॉ एक साहूकार के घर पर उसके बच्चे को पढ़ाने व घर का छोटा मोटा काम करके वही रहने लगा। बच्चे को आत्मीयता के साथ पढ़ाते हुऐ वह उसके काफी निकट आ जाता है , उसकी यह निकटता साहूकार और उसके परिवार को अच्छी नहीं लगती है और इस कारण वह उसे अपने घर से निकाल देते है। कालांतर में वही छोटा बच्चा अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति हेतु हरलाल के घर से उसे बिना बताये उसके कार्यालय की राशि लेकर चला जाता है। रूपयों के कारण हरलाल को प्रताड़ित 


किया जाता है और वह इस आघात को सहन नहीं कर पाता है और इस संसार से विदा हो जाता है। 

 नाटक की मुख्य भूमिका में मास्टर हरलाल - अशोक कपूर, बालक भानु - गितिशा पाण्डये, किशोर भानु, अरिन्दम बैनर्जी, युवा भानु - भानु ठाकुर, ,, हरलाल की मॉ  - दीपिका सांखला, अफसर - अजयपाल सिंह राव, नौकर - नवीन चौबीसा, सूत्रधार - कुनाल मेहता, चेतन टिकियानी, हर्षवर्धन राठौड़ , रतिलाल - जयेश सिंधी, ठाकुर- राहुल चौधरी, ठकुराईन - अश्विना पंवार, दरबान - ईशांन टंडन,  कोचवान - योगेश गर्ग थे।
संगीत पर महिपाल सिंह राठौड़, लाईट - श्री कृष्ण कुमार ओझा और मुश्ताक खॅान, मंच सज्जा - प्रबुद्ध पांडे, वेशभूषा - अनुकम्पा लईक, लेखक एवं निर्देशन - डॉ लईक हुसैन 


निदेशक 

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