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लेखन के पीछे मेहनत और बौद्धिकता का प्रभाव ः महाश्रमण

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31 Oct 19
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लेखन के पीछे मेहनत और बौद्धिकता का प्रभाव ः महाश्रमण

 तेरापंथ धर्मसंघ के मुनि संजय कुमार ने कहा कि मेवाड तेरापंथ की जन्मभूमि और आचार्य भिक्षु की बोधि भूमि है। न जाने कितने इतिहासों का सृजन मेवाड में हुआ है। इतिहास गढना तो कठिन है लेकिन उसे सुरक्षित रखने के लिए और लिखना भी अत्यधिक कठिन है। ग्रंथ लिखने में बरसों बरस लग जाते हैं लेकिन उसके पीछे की साधना कितनी होती है, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। तेरापंथ समाज उदयपुर के वरिष्ठ श्रावक लक्ष्मणसिंह कर्णावट द्वारा ग्यारह वर्षों के अथक श्रम से चार खण्डों में लिखित मेवाड में तेरापंथ ः अतीत का सिंहावलोकन भी एक ऐसा ही ग्रंथ है। ग्रंथ का विमोचन 3 अक्टूबर को आचार्य श्री महाश्रमण के सान्निध्य में हुआ था। वे महाप्रज्ञ विहार में उक्त ग्रंथ के चारों खण्डों के लेखन पर कर्णावट के अभिनंदन समारोह को संबोधित कर रहे थे।

आचार्य महाश्रमण ने विमोचन समारोह में कहा कि आचार्यों की मेवाड यात्रओं की व्यवस्थाओं में इनका बडा योगदान रहा। एक दाठीक कार्यकर्ता मानक के रूप में इन्हें आकलित किया जा सकता है। चार खण्डों वाले इस ग्रंथ के लिए मानो सारस्वत साधना की गई है, तब यह प्रकाशित होकर हाथों में आया है।

तेरापंथ सभाध्यक्ष सूर्यप्रकाश मेहता ने भी समारोह में विचार व्यक्त किए। सभा की ओर से कर्णावट को अभिनंदन पत्र् भेंट किया गया। पत्र् का वाचन लादूलाल मेडतवाल ने किया। संचालन मंत्री प्रकाश सुराणा ने किया।


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