राजस्थान विधानसभा के नए और शानदार कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ राजस्थान में प्रगतिशील मंच (पूर्व विधायक संघ) द्वारा आयोजित स्नेह मिलन समारोह कार्यक्रम का नजारा अभूतपूर्व रहा । इस कार्यक्रम में भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ राजस्थान के राज्यपाल, हरिभाऊ किसनराव बागड़े, राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष, वासुदेव देवनानी, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली, राजस्थान प्रगतिशील मंच के संरक्षक हरिमोहन शर्मा, कार्यकारी अध्यक्ष जीतराम चौधरी,दो पूर्व विधानसभा अध्यक्ष शान्ति लाल चपलोत एवं दीपेन्द्र सिंह शेखावत, वरिष्ठ राज्यसभा सांसद घनश्याम तिवाड़ी,पूर्व प्रतिपक्ष नेता राजेन्द्र राठौड़ , वर्तमान और पूर्व विधायक गण सहित अन्य कई गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे।
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि मैं भी राजस्थान का पूर्व विधायक हूँ और सबसे जूनियर भी क्योंकि मैं एक ही बार विधायक रहा ।राजस्थान के सभी विधानसभाष्यक्षों के नामों का जिक्र करते हुए उन्होंने पूर्व मुख्यमन्त्रियों स्वर्गीय हरिदेव जोशी और भैरों सिंह शेखावत का जिक्र भी किया और कई संस्मरण सुनाए ।
खचाखच भरें सभागार में दवाब की राजनीति को लेकर जोरदार चर्चा हुई । उपराष्ट्रपति धनखड़ और राज्यपाल बागड़े इस मामलें में बहुत मुखर होकर बोले । विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने इस पर पहले ही एक सार्वजनिक बयान दे चुके है।उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि मैं न दबाव में रहता हूँ, ना दबाव देता हूँ, न दबाव में काम करता हूँ, न दबाव में किसी से काम कराता हूँ। राजस्थान का व्यक्ति दबाव में नहीं आता। उन्होंने कहा, “लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला दबाव में आ ही नहीं सकते। राजस्थान का पानी पीने वाला व्यक्ति दबाव में आ ही कैसे सकता है?”
उन्होंने कहा, आज के दिन राजनीति का जो वातावरण है और जो तापमान है वो स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है। प्रजातन्त्र के स्वास्थ्य के लिए चिंता का विषय है, चिंतन का विषय है।सत्ता पक्ष प्रतिपक्ष में जाता रहता है, प्रतिपक्ष सत्ता पक्ष में आता रहता है पर इसका मतलब ये नहीं है कि दुश्मनी हो जाए। दरार हो जाए, दुश्मन हमारे सीमापार हो सकते हैं, देश में हमारा कोई दुश्मन नहीं हो सकता। राजनीति का इतना तापमान असहनीय हो रहा है। बेलगाम होकर हम वक्तव्य जारी कर देते हैं, आज के दिन देखना पड़ेगा भारत का मतलब दुनिया की एक-छठी आबादी यहाँ रहती है। दुनिया का कोई देश हमारे नजदीक तक नहीं आता है। 5000 साल की संस्कृति किसके पास है? बेजोड़ है बेमिसाल है।
राष्ट्रीय भावना को दलगत राजनीति से ऊपर बताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, जब हम देश के बाहर जाते हैं तो ना पक्ष होता है न प्रतिपक्ष होता है, हमारे सामने भारतवर्ष होता है और यह अब दिखा दिया गया। यह कदम है कि हमारे लिए राष्ट्र सर्वोपरि है, राष्ट्रहित हमारा धर्म है, भारतीयता हमारी पहचान है, जहां भारत का मुद्दा उठेगा हम विभाजित नहीं हैं। हमारे राजनीतिक मनभेद नहीं हैं हमारे राजनीतिक मतभेद हैं पर वो देश के अंदर हैं और एक बहुत बड़ा संकेत और दिया गया कि जब देश की बात आती है तो राजनीतिक चश्मे से कुछ नहीं देखा जाएगा यह बहुत बड़ी उपलब्धि है जिसको हर आदमी को पता लगना चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय नीति पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मानना है कि युद्ध नहीं, कूटनीति और चाणक्य नीति से समस्याओं का समाधान संभव है। पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने राष्ट्रहित में अटल बिहारी वाजपेयी को देश का पक्ष रखने के लिए अंतरराष्ट्रीय मंच पर भेजा था, जो राष्ट्रीयता को प्राथमिकता देने का प्रतीक था।
अपने सम्बोधन में उन्होंने कहा कि, कई बार हम आवेश में आकर प्रश्न उठा देते हैं जब चोट मुझे नहीं लगेगी तो मैं कहूँगा लड़ते रहो, लड़ाई जारी रखो यह अखबार में पढ़ने की बातें नहीं हैं। बड़ा कष्ट होता है, अर्थव्यवस्था पर गहरी चोट लगती है और ऐसा क्यों? क्योंकि जो भारत आज से 11 साल पहले कहाँ था? यह राजनीतिक विषय नहीं है, हर कालखंड में देश का विकास हुआ है। हर कालखंड में महारथ हासिल किया गया है, 50 के दशक में, 60 के दशक में, 70 के दशक में बड़े-बड़े काम हुए हैं। पर जब इस कालखंड की बात करते हैं तो इसका अर्थ कदापि नहीं निकाला जाए कि किसी और कालखंड से तुलना कर रहे हैं। मैं दुनिया से तुलना कर रहा हूँ और दुनिया से इसलिए कर रहा हूँ कि जो भारत पहले दुनिया की 5 फ्रेजाइल इकोनॉमी में से एक था आज वह दुनिया की चार बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में एक है। हमने किन-किन को पीछे छोड़ा है, देखिए कुछ ही समय इंतजार कीजिए, जापान जर्मनी यूके कैनाडा ब्राज़ील सब हमसे पीछे हैं। ऐसी छलांग लगी है कि गत दशक को दुनिया क्या कहती है, दुनिया कहती है कि पिछला दशक अर्थव्यवस्था के हिसाब से उसकी प्रगति के हिसाब से भारत ने जो प्रगति की है वह किसी और बड़े देश ने नहीं की है।
लोकतंत्र में प्रतिपक्ष की भूमिका पर बल देते हुए उन्होंने कहा, प्रतिपक्ष विरोधी पक्ष नहीं है। प्रजातन्त्र में आवश्यकता है अभिव्यक्ति हो, वाद-विवाद हो संवाद हो।अभिव्यक्ति बहुत महत्वपूर्ण है, प्रजातन्त्र की जान है पर अभिव्यक्ति कुंठित होती है तो अभिव्यक्ति अपना अस्तित्व खो देती है। अभिव्यक्ति को सार्थक करने के लिए वाद-विवाद जरूरी है।
उपराष्ट्रपति 2047 तक विकसीत भारत की चर्चा करते हुए कहा कि इसका मार्ग ग्रामीण भारत और किसानों के हित में नीति निर्धारण से निकलेगा ।
समारोह से पूर्व, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ राज्यपाल श्री हरिभाऊ बागडे और विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने'एक पेड़ मां के नाम' के अंतर्गत गमलों में पौधारोपण भी किया। कार्यक्रम में विधायकों की पेंशन और अन्य विकास मुद्दों पर चर्चा हुई ।