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’भोजन नली के विकार को ठीक किया‘

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20 Apr 19
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’भोजन नली के विकार को ठीक किया‘

षुक्रवार १९ अप्रैल, गीतांजली मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल के गेस्ट्रो सर्जन एवं गेस्ट्रोएंटरोलोजिस्ट की टीम ने एकैलेसिया कार्डिया (।बींसेंपं ब्ंतकपं) बीमारी से पीडत चित्तौडगढ निवासी ४० वर्शीय डाली देवी का लेप्रोस्कोपिक प्रक्रिया द्वारा सफल इलाज किया। सीने में दर्द, उल्टी एवं खाना व पानी भी न निगल पाने जैसी गंभीर परेषानियों के साथ रोगी गीतांजली हॉस्पिटल आई थी। जहां गेस्ट्रोएंटरोलोजिस्ट डॉ पंकज गुप्ता द्वारा एंडोस्कोपी एवं बैरियम (विषेश प्रकार के एक्स रे की जांच) जांचें की गई जिसमें एकैलेसिया कार्डिया नामक बीमारी का पता चला।

क्या होती है एकैलेसिया कार्डिया बीमारी?

डॉ पंकज ने बताया कि एकैलेसिया कार्डिया बीमारी में भोजन नली (ईसोफेगस) का निचला भाग सिकुड जाता है जिससे रोगी कुछ भी खाएं, तरल पदार्थ या ठोस भोजन, पेट तक जाता ही नहीं है। इससे खाना भोजन नली में ही रहता है और सीने में भारीपन लगता है। इस बीमारी के कारण थूक के साथ भोजन नली में पडा खाना दोनों बाहर आ जाते है और मरीज उल्टी की षिकायत के साथ हॉस्पिटल में परामर्ष के लिए आता है। यह रोगी भी उल्टी की षिकायत के साथ गीतांजली हॉस्पिटल आई थी। इस बीमारी में रोगी को बार-बार न्यूमोनिया होना, वजन घटना, भोजन नली को नुकसान एवं लम्बे समय तक होने वाली जटिलताओं का भी सामना करना पडता है।

क्या इलाज किया गया?

आमतौर पर ऐसे रोगियों का ओपन सर्जरी द्वारा इलाज किया जाता है परंतु विषेशज्ञ एवं सिद्धहस्त गेस्ट्रो सर्जन डॉ कमल किषोर बिष्नोई ने लेप्रोस्कोपी प्रक्रिया से इलाज करने का निर्णय लिया। इस प्रक्रिया द्वारा नाभी के पास १ सेंटीमीटर के छोटे चीरे से भोजन नली (ईसोफेगस) के निचले भाग की सिकुड चुकी मांसपेषियों को काट कर एक कृत्रिम वॉल्व बनाया गया जिससे भोजन बिना परेषानी के पेट तक जा सके एवं एसिड वापिस ऊपर की तरफ न आए। इस प्रक्रिया को ’हिल्लर मायोटोमी विद् पार्षियल फंडोप्लाइकेषन‘ कहते है। रोगी अब बिल्कुल स्वस्थ है एवं दूसरे दिन से ही उसने खाना खाना आरंभ कर दिया था।

लप्रोस्कोपी प्रक्रिया द्वारा इलाज के फायदे?

डॉ कमल ने बताया कि लेप्रोस्कोपी प्रक्रिया द्वारा इलाज से रोगी जल्दी खाना खाने में सक्षम हो जाता है। इस प्रक्रिया द्वारा इलाज के और भी कई फायदे है जैसे पेट में बडा चीरा न लगने पर संक्रमण का खतरा नहीं होता, रक्तस्त्राव की परेषानी नहीं होती है, रोगी जल्दी स्वस्थ होता है एवं उसे हॉस्पिटल से जल्दी छुट्टी मिल जाती है, कम दर्द होता है एवं कॉस्मेटिक रुप से भी इस प्रक्रिया द्वारा सर्जरी फायदेमंद होती है क्योंकि इससे षरीर पर चीरे के निषान नहीं दिखते है।

डॉ कमल किषोर ने बताया कि हर एक लाख लोगों में से किन्हीं दो मरीजों को यह बीमारी होती है जिसका कारण अब तक अज्ञात है। साथ ही आमतौर पर २५ से ६० वर्श की आयु के लोग इस बीमारी का षिकार होते है। अब तक केवल मेट्रो शहरों में ही इस प्रक्रिया द्वारा इलाज हो रहे थे, किन्तु दक्षिण राजस्थान में स्थित उदयपुर में भी यह सुविधा उपलब्ध होगी।

गीतांजली मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल के सीईओ प्रतीम तम्बोली ने कहा कि, ’गीतांजली का एकमात्र उद्देश्य रोगी को बीमारी से निजात दिलाने के साथ-साथ सामान्य जीवन प्रदान करना एवं बीमारी संबंधित दुश्प्रभावों को कम करना है। गीतांजली हॉस्पिटल चिकित्सा के हर क्षेत्र में उत्कृष्ट एवं गुणात्मक चिकित्सा सेवा के साथ नवीनीकरण के प्रति प्रतिबद्ध है। हमारे लिए हर रोगी महत्वपूर्ण है जिसका सही एवं सर्वश्रेश्ठ उपचार उपलब्ध कराने में हम तत्पर है।‘


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