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160 वर्ष बाद लीप ईयर व अधिकमास एक साथ: डाॅ. तिवारी

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29 Jun 20
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160 वर्ष बाद लीप ईयर व अधिकमास एक साथ: डाॅ. तिवारी


नई दिल्ली।इस बार 160 वर्ष पश्चात लीप ईयर व अधिकमास एक साथ एक ही वर्ष में, 184 दिनों तक नहीं बजेगी शहनाई, अधिकमास के चलते देवशयन काल चार नहीं पांच माह का होगा, श्री हरि सोएंगे तो शिव जागेंगे। 1 जुलाई से चातुर्मास प्रारंभ होगा। सभी तीर्थ ब्रज में करेंगे निवास, श्राद्ध पक्ष के बाद के सभी तीज त्यौहार 20 से 25 दिन विलम्ब से होंगे। 
श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय निम्बाहेड़ा चित्तोडगढ़  के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डाॅ मृत्युंजय तिवारी ने बताया कि 1 जुलाई, बुधवार को देवशयनी आषाढ़ी एकादशी से श्री हरि विष्णु योगनिद्रा में जाएंगे और चातुर्मास प्रारम्भ होगा। इस वर्ष दो आश्विन अधिक मास होने से श्रीहरि चार नही पांच माह सोएंगे। इस दौरान सभी शुभ कार्य वर्जित होंगे। देवशयनी एकादशी से देव प्रबोधिनी एकादशी तक देव शयन काल,चातुर्मास होता है। जो 1 जुलाई से 25 नवम्बर तक अर्थात 148 दिनों तक रहेगा। इस वर्ष 17 सितंबर से 16 अक्टूबर तक आश्विन अधिक मास भी रहेगा। इसके चलते श्राद्ध पक्ष के बाद के सभी त्यौहार जैसे नवरात्रि, दशहरा, दीपावली आदि 20 से 25 दिन बाद से प्रारम्भ होंगे। श्राद्ध व नवरात्रि में लगभग एक माह का अंतर होगा। दशहरा 25 अक्टूबर तो दीपोत्सव 14 नवंबर को मनाया जाएगा। देव प्रबोधिनी एकादशी 25 नवंबर को है। 19 वर्ष बाद पुनः आश्विन अधिमास के रूप में आया है, आगे फिर 19 वर्ष बाद 2039 में आश्विन अधिकमास के रूप में आएगा, किन्तु लीप ईयर व अधिकमास 160 वर्षों के बाद एक साथ आये है। इसके पूर्व यह संयोग सन 1860 में बना था।
अधिक मास और इसकी वैज्ञानिकता
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब एक माह में कोई भी सूर्य सक्रांति नही होती है तो उसे अधिकमास, पुरुषोत्तम मास अथवा मलमास का नाम दिया गया है। वैसे आपको बता दें कि अधिकमास एक वैज्ञानिक प्रक्रिया के तहत है, यदि अधिक मास नहीं हो तो तीज त्योहारों का गणित गड़बड़ा जाता है। अधिक मास की व्यवस्था के चलते हमारे सभी तीज त्यौहार सही समय पर होते है। डाॅ तिवारी ने बताया कि हर तीन वर्ष में अधिक मास चांद्र व सौर वर्ष में सामंजस्य स्थापित करने हेतु हर तीसरे वर्ष पंचांगों में एक चांद्र मास की वृद्धि कर दी जाती है। इसी को अधिक, मल व पुरुषोत्तम मास कहा जाता है। सौर वर्ष का मान 365 दिनों से कुछ अधिक व चांद्र मास 354 दिनों का होता है। दोनों में करीब 11 दिनों के अंतर को समाप्त करने के लिए 32 माह में अधिक मास की योजना की गई है,जो पूर्णतः विज्ञान सम्मत भी है एवं सनातन धर्म में इस माह का विशेष महत्व है। संपूर्ण भारत की हिंदू धर्मपरायण जनता इस पूरे मास में पूजा-पाठ, भगवतभक्ति, व्रत-उपवास, जप और योग आदि धार्मिक कार्यों में संलग्न रहती है। भागवत पुराण के अनुसार अधिकमास में किए गए धार्मिक कार्यों का किसी भी अन्य माह में किए गए पूजा-पाठ से 10 गुना अधिक फल मिलता है। इसीलिए श्रद्धालु जन अपनी पूरी श्रद्धा और शक्ति के साथ इस मास में भगवान को प्रसन्न कर अपना इहलोक तथा परलोक सुधारने में जुट जाते है। इसलिए इस मास के समय विशिष्ट व्यक्तिगत संस्कार जैसे नामकरण, यज्ञोपवीत, विवाह और सामान्य धार्मिक संस्कार जैसे गृहप्रवेश, नई बहुमूल्य वस्तुओं की खरीदी आदि आमतौर पर नहीं किए जाते है। अधिकमास के अधिपति स्वामी भगवान विष्णु माने जाते है। इसीलिए अधिकमास को पुरूषोत्तम मास के नाम से भी पुकारा जाता है। इस विषय में एक बड़ी ही रोचक कथा पुराणों में पढ़ने को मिलती है। अधिक मास के लिए पुराणों में बड़ी ही सुंदर कथा सुनने को मिलती है। पुराणों के अनुसार दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने एक बार ब्रह्मा जी को अपने कठोर तप से प्रसन्न कर लिया और उनसे अमरता का वरदान मांगा। चुंकि अमरता का वरदान देना निषिद्ध है, इसीलिए ब्रह्मा जी ने उसे कोई भी अन्य वर मांगने को कहा। तब हिरण्यकश्यप ने वर मांगा कि उसे संसार का कोई नर, नारी, पशु, देवता या असुर मार ना सके। वह वर्ष के 12 महीनों में मृत्यु को प्राप्त ना हो। जब वह मरे, तो ना दिन का समय हो, ना रात का। वह ना किसी अस्त्र से मरे, ना किसी शस्त्र से। उसे ना घर में मारा जा सके, ना ही घर से बाहर मारा जा सके। इस वरदान के मिलते ही हिरण्यकश्यप स्वयं को अमर मानने लगा और उसने खुद को भगवान घोषित कर दिया। समय आने पर भगवान विष्णु ने अधिक मास में नरसिंह अवतार के रूप में प्रकट होकर, शाम के समय, देहरी के नीचे अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का सीना चीर कर उसे मृत्यु के द्वार भेज दिया।
पुरुषोत्तम मास का महत्व
डाॅ. तिवारी के अनुसार प्रत्येक जीव पंचमहाभूतों से मिलकर बना है। इन पंचमहाभूतों में जल, अग्नि, आकाश, वायु और पृथ्वी सम्मिलित है। अपनी प्रकृति के अनुरूप ही ये पांचों तत्व प्रत्येक जीव की प्रकृति न्यूनाधिक रूप से निश्चित करते हैं। अधिकमास में समस्त धार्मिक कृत्यों, चिंतन-मनन, ध्यान, योग आदि के माध्यम से साधक अपने शरीर में समाहित इन पांचों तत्वों में संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है। इस पूरे मास में अपने धार्मिक और आध्यात्मिक प्रयासों से प्रत्येक व्यक्ति अपनी भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति और निर्मलता के लिए उद्यत होता है। इस तरह अधिकमास के दौरान किए गए प्रयासों से व्यक्ति हर तीन साल में स्वयं को बाहर से स्वच्छ कर परम निर्मलता को प्राप्त कर नई उर्जा से भर जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान किए गए प्रयासों से समस्त कुंडली दोषों का भी निराकरण हो जाता है।
अधिकमास में उचित
सामान्यतया अधिकमास में सनातनी श्रद्धालु व्रत-उपवास, पूजा- पाठ, ध्यान, भजन, कीर्तन, मनन को अपनी जीवनचर्या बनाते हैं। पौराणिक सिद्धांतों के अनुसार इस मास के दौरान यज्ञ-हवन के अलावा श्रीमद् देवीभागवत, श्री भागवत पुराण, श्री विष्णु पुराण, भविष्योत्तर पुराण आदि का श्रवण, पठन, मनन विशेष रूप से फलदायी होता है। अधिकमास के अधिष्ठाता भगवान विष्णु हैं, इसीलिए इस पूरे समय में विष्णु मंत्रों का जाप विशेष लाभकारी होता है। ऐसा माना जाता है कि अधिक मास में विष्णु मंत्र का जाप करने वाले साधकों को भगवान विष्णु स्वयं आशीर्वाद देते हैं, उनके पापों का शमन करते हैं और उनकी समस्त इच्छाएं पूरी करते है।


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