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गुदड़ी के लाल चौथमल ने रच दी हाड़ोती की व्याकरण और शब्द कोष ( जियो तो ऐसे जियो)

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16 Jan 23
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गुदड़ी के लाल चौथमल ने रच दी हाड़ोती की व्याकरण और शब्द कोष ( जियो तो ऐसे जियो)

कोटा | अनेक दृष्टांत सामने हैं जब देव योग से अभावों में पल कर लोग विषम परिस्थितियों में भी बड़े - बड़े सम्मानित पदों पर पहुंचे और नेतृत्व किया। अपनी बुद्धि का लोहा मनवाया। ऐसी शख्शियतों में चौथमल प्रजापति ' मार्तण्ड ' गुदड़ी का ऐसा लाल है जिसने हाड़ोती के अक्षरों की व्याकरण रच कर और लगभग साढ़े तीन लाख शब्दों का कोष लिख कर राजस्थान के साहित्य जगत में नया इतिहास रच दिया।  जीवन के प्रारंभ से ही अनंत अभावों और संघर्ष को सहते हुए किस प्रकार इन्होंने अपनी राह बनाई किसी मुक्कमल दास्तान से कम नहीं है। कीचड़ में कमल का फूल और कांटों में गुलाब की तरह रह कर चौथमल के साहित्यकार बनने की कहानी  उद्वेलित  और आश्चर्यचकित कर देने वाली है। जीवन में कुछ कर गुजरने की इच्छा शक्ति हो और परिस्थितियां कैसी भी हो उसका जीवंत और प्रेरक उदाहरण है चौथमल।
     पिता स्व.रामनारायण प्रजापति बूंदी जिलें के ग्राम भीया में हाली का काम कर जेसे - तेसे चार बच्चों के परिवार का गुजर बसर करते थे। माली हालत में भी अपने बड़े बेटे चौथमल को स्थानीय विद्यालय में दाखिला दिलाया। इन्होंने अपनी कुशाग्र बुद्धि से हायर सेडण्डरी बोर्ड की परीक्षा पास करली। बहिन की शादी होने से माली हालत डगमगा गई और पढ़ाई को यहीं विराम देना पड़ा। दूसरे की जमीन आधोली में लेकर खेती करने वाले पिता का हाथ बटाने लगे। माली हालत में  एक महाजन के बांटा (पैदावार का आठवां हिस्सा) में 1600 रुपए बिना ब्याज के लेकर हाली के रुप में रहकर काम किया। आगे चल कर  दो साल तक  ढोहल्या के हाली लगा। फिर दूसरे की जमीन पांति करने लगा, तब जा कर कर्ज से निजात पाई। सहकारी शुगर मिल केशवराय पाटन  में फिल्ड कलर्क के रूप में सीजन काम किया। सन 1980 में कोटा आए और नगर परिषद में दैनिक वेतन पर मेकेनिक हेल्पर के पद पर रह कर स्टोर कीपर लग गए। अब फिर से पढ़ाई भी शुरू की और स्वयं पाठी के रुप में 1987 में राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। दादी की दुआओं से उनके तीसरे के दिन 23 अप्रैल 88 को कनिष्ट लिपिक पद पर पदोन्नति हुई। अप्रैल 1997  को पिता का साया भी  सर उठ गया।
     इनकी साहित्यिक अभिरुचि जागृत होने के पीछे एक रोचक प्रसंग है। जब बारां - छबड़ा के बीच भूलोन के पास 1993 में बड़ी रेल दुर्घटना हुई तो उससे जो पीड़ा का अहसास हुआ, अंतरआत्मा में उठे शब्द रुपी भावों को कागज पर कलम की नोक से उकेरने की इच्छा हुई । उनको लेकर अक्तूबर में होने वाले मेला
दशहरा स्थानिय मंच पर पढने हेतु अन्य कवियों की भांति संचालक के पास पर्ची भेजी।  संचालक के पास बैठे व्यक्ति ने पर्ची को फाड़ कर फेंक दिया। बस....! इसी बात को चौथमल ने चुनोती के रुप में स्वीकारा। जिन्दा रहा त़ो एक दिन इस मंच से रचना पाठ करना है । फिर भारतेन्दू साहित्य संस्था से जुड़ कर काव्य पाठ करने लगा। धीरे- धीरे हिन्दी एवं हाड़ोती में कविता, लेख, लोक कथा, दोहा पहेलियां आदि स्थानीय एवं समाज की पत्र पत्रिकाओं में  प्रकाशित होने लगी और आकाशवाणी केंद्र कोटा से भी प्रसारण का अवसर मिलने लगा। और वह दिन भी आया जब इन्होंने अपनी चुनौती को पूरा करते हुए दशहरा मेले के मंच से पढ़ी कविता में तालियों से दाद बटोरी।
    जून 1999 के करगिल युद्ध के दौरान जाबाजों का उत्साह वर्धन करने पर स्थानीय एवं राज्य स्तरीय पत्र पत्रिकाओं मेंदोहा,कविता आदि का प्रकाशन होने पर 14 वीं बटालिन राइफल्स जम्बू एवं कश्मीर, राइफल्स 56 ए.पी.ओ. द्वारा, 21 जुलाई 1999 को कमान आफिसर कनर्ल डी.के.नन्दा का प्रशस्ति पत्र प्राप्त हुआ। आपकी रचनाएं स्थानीय एवं राज्य स्तरीय, सामाजिक पत्र-पत्रिकाओं, जागती जोत, माणक, कथेसर, बिणजारो, मरुधरा, बिणजारो, कुरजां, आहूनीर, रुड़ो राजस्थान, छन्दां को हलकारो, राजस्थानी गंधा, आध्यात्मिक अमरत, वाणारासी, पूणे, भोपाल,जमशेदपुर आदि में खूब स्थान पाने लगी। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि से प्रसारण होने लगा।
   साहित्य : आपकी अब तक आठ कृतियों का प्रकाशन हो चुका है। इनमें प्रजापत *दोहावली पांथ एक*, *प्रजापत दोहावली पांथ दो*, *मां श्रीयादे भक्ति पाठ*, *श्रीयादे चालीसा*, *धर्म की संस्थापक मां श्रीयादे*,  *कोटा दरसण*,  *फांवणाओ  लाडकरां* और *राजस्थानी व्याकरण* शामिल हैं। शीघ्र प्रकाशित होने वाली आपकी नई कृतियों में *सत को बळ लघु कथा संग्रह* , *अथ गोरा कथानक*, *गोरा सतक*, *प्रजापत दोहावली पांथ तीन, चार और पांच* शामिल हैं ।
     हाड़ोती की व्याकरण की रचना आपका एतिहासिक देन हैं। एक कदम आगे बढ़ाते हुए अब सौगात देने जा रहे हैं राजस्थानी शब्द कोष की तर्ज पर " हाड़ोती शब्द कोष" की। आपने हाड़ोती भाषा के करीब साढ़े तीन लाख शब्दों का कोष संग्रह किया है जो अभी अप्रकाशित है। यह शब्द कोष राजस्थान के साहित्य जगत की अनूठी और अमूल्य निधि होगी। इनके इस योगदान को साहित्य जगत में सुनहरे शब्दों में अंकित किया जाएगा। वरिष्ठ साहित्यकार  राजेंद्र ' निर्मोही ' जी ने इस उपलब्धि पर कहा " राजस्थानी शब्द कोष की भांति हाडोती शब्द बनता है तो यह महत्वपूर्ण होगा। इससे अन्य जगहों पर भी हाडोती के प्रचार-प्रसार में मदद मिलेगी। यह शोधार्थियो के लिये मार्ग दर्शक बनेगा।"
 सम्मान : हाड़ोती साहित्य को समृद्ध करने में इनके योगदान को देखते हुए सभी सम्मान बोने प्रतीत होते हैं। साहित्यिक योगदान के लिए समय - समय पर आपको विभिन्न संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत कर सम्मानित किया गया।  श्री कर्मयोगी साहित्य गौरव सम्मान, शान-ए-राजस्थान 2022, चौथमल प्रजापति प्रखर राजस्थानी सम्मान, सारंग साहित्य सम्मान 2019, श्री लक्ष्मीनारायण मालव स्मृति पुरस्कार सम्मान 2018, शिक्षक रचनाकार मंच एवं मायड़ भाषा साहित्य सृजन मंच बूढादीत,कोटा 2013, शिक्षक रचनाकार मंच एवं मायड़ भाषा साहित्य सृजन मंच कापरेन, बूंदी 2016, राव माधोसिंह संग्रहालय ट्रस्ट कोटा की ओर से पूर्व सांसद कोटा दरबार महाराव ब्रजराज सि़ह एवं कोटा बून्दी सांसद श्री इज्यराज सिंह द्वारा सम्मान, प्रजापति समाज किशनगढ - मदनगंज श्री यादे माता एवं लक्ष्मीनारायण प्राण प्रतिष्टा सम्मान समारोह (अजमेर),अ,भा,प्र,शाखा कोटा, प्रजापति विकास समिति महानगर नदी पार कोटा, प्रजापति विकास समिति लाडपुरा कोटा,श्री यादे माता समिति किशोर पुरा सांगोद कोटा,मालविय विकास समिति जुल्मी कोटा, गोकर्णेश्वर महादेव श्री यादे माता समिति विसलपुर टोंक, महा श्री यादे माता समिति राता नाड़ा जोधपुर, प्रजापति विकास समिति टोडारायसिंह टोंक,श्री यादे शक्ति सेना,किशनगढ अजमेर, श्री यादे माता प्रजापति (कुम्हार) मेड़ता सीटी, प्रजापति विकास समिति केशवपुरा,कोटा द्वारा माउनटाबू (उदयपुर), ब्रज गोरव सम्मान आसरा समिति बलदेव मथुरा उ०प्र०, राष्ट्र गोरव सम्मान जुपिटर ईको कल्ब कोटा, काव्य कलश कोटा,श्री यादे माता सेवा समिति पुष्कर राज अजमेर आदि द्वारा भी सम्मानित किया गया।
 परिचय : चौथमल प्रजापती "मार्तण्ड" ग्राम भीया तहसील केशवराय पाटन जिला बून्दी (राज०) के निवासी है। आपका जन्म 30 सितंबर 1954 को स्व. रामनारायण प्रजापति    के आंगन में हुआ। आपका विवाह  फरवरी 1970-71 में अरनेठा निवासी स्व० श्री पन्ना लाल जी प्रजापत की सूपुत्री भूली बाई के साथ सम्पन हुआ। आप निरंतर साहित्य सृजन में लगे हैं और अनेक साहित्यिक संस्थाओं में भी सक्रिय हैं


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