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काश ! सचिन पायलेट सियासी जादूगर अशोक गहलोत से टकराव की बजाय लम्बी रेस का घोड़ा बनने की सीख  लेते....

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13 Jul 20
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काश ! सचिन पायलेट सियासी जादूगर अशोक गहलोत से टकराव की बजाय लम्बी रेस का घोड़ा बनने की सीख  लेते....

कहते है कि इतिहास अपने आपको दोहराता है और आज राजस्थान की राजनीति में इतिहास दोहराया जा रहा है।अस्सी से नब्बे के दशक में जब हरिदेव जोशी मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने आतंकवाद से ग्रसित पंजाब से राजस्थान में निर्वासित बूटासिंह और बलराम जाखड़ आदि बाहरी नेताओं द्वारा प्रदेश की राजनीति में दखलंदाजी का कड़ा विरोध किया था लेकिन उनके ऐसा करने पर नाराज काँग्रेस हाईकमान ने युवा तुर्क केन्द्रीय राज्य मंत्री अशोक गहलोत को तब प्रदेश काँग्रेस अध्यक्ष बना कर भेजा था। सत्ता और संगठन में युवा और बुजुर्ग पीढ़ी का टकराव तब भी हुआ था।यह वहीं हरिदेव जोशी थे जिन्होंने एक बार आइरन लेडी मानी जानी वाली इन्दिरा गांधी जैसी प्रधानमंत्री के नुमाइंदे रामनिवास मिर्धा को मुख्यमंत्री के लिए लोकतांत्रिक ढंग से हुए विधायक दल के नेता के चुनाव में  हराया था और दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी बहुल इलाक़े  का यह दिग्गज नेता  राजस्थान के मुख्यमंत्री बने थे। 
बताते है कि अशोक गहलोत के पी सी सी चीफ़ बनकर राजस्थान आने पर विचलित हुए इस कद्दावर नेता हरिदेव जोशी ने तब गहलोत को गूढ़ मन्त्र देते हुए कहा था कि “अशोक तुम मैरे लिए अपने बेटे दिनेश जोशी जैसे ही हों,तुम्हारे केन्द्र से राजस्थान में आने पर मुझे कोई एतराज़ नहीं हैं लेकिन राजस्थान को अपनी राजनीति का चारागाह बनाने की चाह रखने वाले बाहरी नेताओं का मैं विरोध करता रहूँगा चाहें मेरी सीएम  की कुर्सी ही क्यूँ न छीन जायें, लेकिन मेरी एक सलाह को कभी मत भूलना कि आप राजनीति में यदि आप राजनीति में लम्बी रेस का घोड़ा बनना चाहतें हो या शुरुआत में ही इसे खत्म करना चाहतें हों ? यदि नहीं तो अपने सिद्धान्तों से कभी समझोता नही करना।कहते है गहलोत ने जोशी की इस सीख को रस्सी में कड़ी गाँठ की तरह बांधा और कालान्तर में देखते ही देखते वे राजस्थान के कई जाने माने दिग्गज नेताओं को पीछे छोड़ते हुए उनसे बहुत आगे निकल गए और आज न केवल तीसरी बार देश के सबसे बड़े राज्य राजस्थान के मुख्यमंत्री बने है वरन उन्होंने केन्द्र की राजनीति में भी अपने कद से भी ऊँचा मुक़ाम बना लिया है।आज उन्हें अपने नेता सोनिया गांधी , राहुल प्रियंका गांधी और अन्य सभी का विश्वास हासिल हैं।
दिसम्बर 2019 में  हुए राज्य विधानसभा चुनाव परिणामों में सफलता मिलने के बाद जब काँग्रेस हाईकमान ने अपने क़द्दावर नेता और राष्ट्रीय महासचिव गहलोत को सचिन पर तरहीज देते हुए मुख्यमंत्री बनाने का फ़ैसला लिया था तब भी महत्वाकांक्षी सचिन पायलेट को यह फ़ैसला नागवार गुजरा था और दिल्ली से शपथ लेने राजस्थान जा रहे गहलोत को एयरपोर्ट से पुनः बुलाया  गया 
था।कई दिनों के इस ड्रामे के बावजूद गहलोत ने बड़ा दिल रखते हुए सचिन को न केवल उप मुख्यमंत्री बनाना स्वीकार किया वरन पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पर भी क़ाबिज़ रखा। उसके बाद भी भारी मतभेदों के बावजूद वे उन्हें लम्बी दौड़ का घोड़ा बनने की सीख भी देते रहें। कभी यह भी ज़ाहिर नही किया कि पायलेट राजस्थान मूल के नही हैं बल्कि बाहरी नेता है। लेकिन बताते है कि गहलोत की किसी भी सीख को अपने ज़ेहन में उतारे बिना पायलेट हमेशा टकराव की राजनीति ही करते रहें। बात बात पर दिल्ली पहुँच जाते । कई बार बिना किसी सरकारी काम के गुप्त यात्राएँ भी की।ऐसा कर उन्होंने केवल अपना ही नुक़सान किया है। सब जानते है कि गहलोत अपने जीवन के उत्तरार्ध में है और उनका क़द पार्टी में बहुत ऊँचा हो गया हैं।
सबको पता है कि आने वाले वर्षों में वे प्रदेश के बजाय पार्टी की राष्ट्रीय राजनीति में मुख्य भूमिका निभा सकते है । मुख्यमंत्री के रूप में भी राजस्थान में सम्भवतः उनकी यह अन्तिम पारी हैं। सचिन पायलट यदि इन सभी स्थितियों को समझते हुए गांधीवादी नेता गहलोत से सीख लेते  राजनीति का सही पाठ पढ़ते और उनके साथ टकराव किए बिना विवेकपूर्ण और दूरदर्शी निर्णय लेते तो शायद आज जैसी स्थिति में नही होते ,वरन उनके स्वाभाविक उत्तराधिकारी के रूप में स्थापित हो सकते थे। उनकी उम्र भी उनके सुनहरे भविष्य में सहायक बन सकती थी और वे और भी कई अवसरों का लाभ उठा कर राजनीति के शिखर पर पहुँच सकते थे लेकिन उन्होंनेअपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार अपने पूरे राजनीतिक भविष्य को ही दाँव पर लगा दिया है। लगता है रेगिस्तान प्रधान प्रदेश राजस्थान में अब उनके लिए मुख्यमंत्री बनने का सपना एक मृगतृष्णा के समान बन कर रह गया हैं।


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