अखिल भारतीय नववर्ष समारोह समिति के राष्ट्रीय सचिव डॉ प्रदीप कुमावत कोरोना माहमारी से बचने के लिए इस नवरात्रि में 9 दिन तक स्वयं मानव कल्याण के लिए हवन करेंगे! उदयपुर 26 मार्च अखिल भारतीय नववर्ष समारोह समिति के राष्ट्रीय सचिव डॉ प्रदीप कुमावत ने कहा कि कोरोना माह मारी से बचने के लिए इस नवरात्रि में 9 दिन तक वह स्वयं मानव कल्याण के लिए हवन करेंगे ! उन्होंने आज हवन करते हुए संकल्प धारण किया कि कि वे अपनी आहुतिओं में कोरोनावायरस को समाप्त करने के लिए नियमित हवन करेंगे।
नवरात्रि में हर दिन मां के अलग स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है। चैत्र नवरात्रि का दूसरा दिन मां ब्रह्माचारिणी की पूजा-अर्चना का दिन हे । मां का यह रूप भक्तों को मनचाहे वरदान का आशीर्वाद देता है। मां के नाम का पहला अक्षर ब्रह्म होता है जिसका मतलब होता है तपस्या और चारिणी मतलब होता है आचरण करना। मान्यता है कि इनकी पूजा से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार , संयम की वृद्धि होती है।
ब्रह्माचारिणी की कथा: पूर्वजन्म में इस देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से जाना गया। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया।
कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए. कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया।
कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा- हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की. यह आप से ही संभव थी। आपकी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ. जल्द ही आपके पिता आपको लेने आ रहे हैं। मां की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में घबराए नही यही संदेश देती है! मां ब्रह्मचारिणी का रूप - मां ब्रह्मचारिणी के दाएं हाथ में माला और बाएं हाथ में कमंडल है. शास्त्रों के अनुसार मां दुर्गा ने पार्वती के रूप में पर्वतराज के यहां पुत्री बनकर जन्म लिया. पार्वती ने महर्षि नारद के कहने पर देवाधिदेव महादेव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थीं. हजारों वर्षों तक की कई इस कठिन तपस्या के कारण ही इनका नाम तपश्चारिणी या ब्रह्मचारिणी पड़ा.