बेसिन आधारित समग्र जल संसाधन विकास व प्रबंधन व उसके माध्यम से एक संवेदनशील, सौहार्दमयी, शांतिप्रिय समाज के निर्माण का उत्कृष्ट उदाहरण गिरवा घाटी उदयपुर है। लेकिन, जल प्रबंधन का यह अनूठा मॉडल अब नष्ट किया जा रहा है। यह चिंता शुक्रवार को विश्व जल दिवस पर विद्या भवन पॉलिटेक्निक के उदयपुर वॉटर फोरम में आयोजित सेमिनार में व्यक्त की गई। आयोजन विद्याभवन, कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी, डी एच आई, डेवलपमेंट अल्टरनेटिव, इंस्टीट्यूशन ऑफ टाउन प्लानर्स, झील संरक्षण समिति, सक्षम संस्थान के साझे हुआ।
सेमिनार संभागियों ने कहा कि गिरवा में गिर का अर्थ पहाड़ियां है। इन्ही पहाड़ियों से मदार , बड़ी से लेकर उदयसागर तक की कई जल सरंचनाओ को जल मिलता रहा है, भूजल का पुनर्भरण तथा बाढ़ के पानी का संग्रहण होता रहा है। लेकिन, पहाड़ियों के कटने, तालाबों को पाटने , पर्यटन इकाइयों में जल की अति खपत, घर घर में ट्यूबवेल से अत्यधिक भूजल दोहन तथा झीलों में बढ़ते प्रदूषण से उदयपुर की बेसिन आधारित जल व्यवस्था टूट रही है। जल व्यवस्था के साथ यह घातक व्यहवार उदयपुर को गंभीर आपदाओं से पीड़ित करेगा।
संभागीयों ने कहा कि पहाड़ियों को कटने से रोकने सहित तालाबों का पुनरोद्धार , वर्षा जल संरक्षण ,प्रति व्यक्ति जल उपभोग में कमी, झीलों के किनारे पक्के निर्माण पर रोक, देशी प्रवासी पक्षियों के आवासों की सुरक्षा, टाउन प्लानिंग तथा बिल्डिंग प्लानिंग में जल संरक्षक उपायों की स्थापना तथा स्कूल स्तर से ही जल संरक्षण की जागरूकता बढ़ाने जैसे उपायों से उदयपुर की जल प्रबंधन विरासत को जीवंत किया जा सकता है। इसके लिए का सर्वसहभागिता पूर्ण व्यापक प्रयास करने जरूरत है।
सी सी आर टी के निदेशक, पूर्व आई एफ एस अधिकारी ओ पी शर्मा की अध्यक्षता व पॉलिटेक्निक प्राचार्य डॉ अनिल मेहता के संयोजकत्व में आयोजित इस संगोष्ठी में पूर्व मुख्य नगर नियोजक सतीश श्रीमाली, प्रदूषण नियंत्रण मंडल में सलाहकार नवीन व्यास , सी टी ए ई के पूर्व डीन डॉ आर सी पुरोहित, आर्किटेक्ट सुनील लड्ढा, समाज सेवी रेवती रमण श्रीमाली , वर्ल्ड वाइल्ड फंड के मेजर दुर्गादास, झील प्रेमी तेज शंकर पालीवाल, नंद किशोर शर्मा, द्रुपद सिंह, कुशल रावल, शिक्षाविद जयप्रकाश श्रीमाली, अनीश केसरी, कृषि जल प्रबंधन विशेषज्ञ डॉ प्रफुल्ल भटनागर, जलग्रहण विकास विशेषज्ञ हसमुख गहलोत, पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के प्रांत संयोजक कार्तिकेय नागर, नाहर सिंह, पर्यटन व्यवसायी युद्धवीर सिंह, जल प्रबंधन शोधकर्ता डॉ योगिता दशोरा, प्रियंका कुंवर, भू विज्ञानी रवि शर्मा, वर्षा जल संरक्षक महेश गढ़वाल ने बेसिन आधारित जल प्रबंधन पर अपने विचार रखे।