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आधुनिकता लोकतंत्र के आह्वान में प्रमुख भूमिका निभाती है: डॉ. जीवन सिंह

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22 Sep 23
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आधुनिकता लोकतंत्र के आह्वान में प्रमुख भूमिका निभाती है: डॉ. जीवन सिंह

उदयपुर । पुराना ही सर्वश्रेष्ठ नहीं होता, परंतु पुराने का एक ज्ञात इतिहास होता है और उस ज्ञात इतिहास से लाभ लेकर आधुनिक तरीके से नवनिर्माण संभव है। अगर पुराना ही सर्वश्रेष्ठ है तो फिर आप नया कुछ भी नहीं गढ़ सकते। नया बनाने का प्रकल्प ही आधुनिकता है। देश-दुनिया के मध्यम वर्ग ने जनमध्यम वर्ग बनकर इसी आधुनिकता को समूह में प्रस्तुत किया और जहां-जहां ऐसा किया गया, वहां लोकतंत्र स्थापित हुआ।
ये विचार राजस्थान साहित्य अकादमी सभागार में प्रख्यात विचारक अलवर से पधारे डॉ. जीवन सिंह ने अकादमी की प्रकाश आतुर व्याख्यानमाला में व्याख्यान के दौरान व्यक्त किए। डॉ. जीवन सिंह ने व्याख्यान के विषय ‘साहित्य, मीडिया और लोकतंत्र’ पर बोलते हुए कहा कि साहित्य का नवजागरणकाल और आधुनिक साहित्य का बदला स्वरूप एक वह कहानी है जो मीडिया के बदलते स्वरूप को भी समझने में सहायक है। आज दुनिया में मूल्य विहीन दृष्टि पैदा हो रही है। उसके पीछे पूंजी है। पूंजी ने वैश्विक अलगाव पैदा किए हैं और साहित्य, मीडिया को बदलते हुए लोकतंत्र को भी बदलने की मुहिम प्रारंभ की है। जीवन सिंह ने कहा कि यह मुहिम न केवल भारत भर में अपितु दुनियाभर में चिंता का विषय है।
व्याख्यानमाला की अध्यक्षता करते हुए अकादमी अध्यक्ष डॉ. दुलाराम सहारण ने कहा कि यह व्याख्यान परंपरा कभी शुरू हुई थी, बीच में बंद हो गई, आज फिर से शुरू होना अकादमी के लिए प्रसन्नता का विषय है। सहारण ने कहा कि यह समय बड़ा संवेदनशील है, साहित्य और मीडिया के लिए चुनौती भरा है तथा लोकतंत्र को बचाने के संकल्प का है। आतुर परिवार के अनुराग माथुर एवं कविता आतुर से विचार व्यक्त करते हुए कहा कि प्रकाश आतुर अकादमी के ज्यादा थे, परिवार के कम। उनके काम हमारे परिवार का गौरव है और अकादमी ही हमारा परिवार है।
इससे पूर्व अकादमी सचिव डॉ. बसंतसिंह सोलंकी ने अतिथियों का स्वागत किया। अकादमी के रामदयाल मेहरा ने सूत्रधार भूमिका निभाई तो अकादमी सरस्वती सभा सदस्य डॉ. मंजु चतुर्वेदी ने धन्यवाद व्यक्त किया। व्याख्यानमाला के संयोजक व अकादमी संचालिका सदस्य किशन दाधीच ने संयोजन करते हुए बीच-बीच में प्रकाश आतुर के जीवन के किस्से, संस्मरण भी सुनाए। कार्यक्रम में सरस्वती सभा सदस्य डॉ. थावरचंद डामोर, डॉ. हेमेंद्र चंडालिया, साहित्यकार डॉ. ज्योतिपुंज, भारतीय लोक कला मंडल के निदेशक डॉ. लईक हुसैन, प्रो. सरबत खान, तराना परवीन, किरणबाला जीनगर, इंद्रप्रकाश श्रीमाली, डॉ. हुसैनी बोहरा, श्रीरत्न मोहता, डॉ. सरस्वती जोशी, विवेक माथुर, ममता, प्रिया, डॉ. कुंदन माली, डॉ. करूणा दशोरा, सुयश चतुर्वेदी, श्रेणीदान चारण, सुनील टांक, उग्रसेन राव, डॉ. मलय पानेरी, जयप्रकाश भटनागर, डॉ. प्रकाश नेभनानी, राजेश मेहता, दिनेश अरोड़ा, ललिता गाडरी, गोपाल तरवाड़ी सहित अनेक साहित्यप्रेमी विद्वान मौजूद रहे।


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