GMCH STORIES

संस्कृत अनुरागी सीख रहे हैं रोजमर्रा के शब्दों का संस्कृत रूपांतरण

( Read 2321 Times)

05 Jun 23
Share |
Print This Page
संस्कृत अनुरागी सीख रहे हैं रोजमर्रा के शब्दों का संस्कृत रूपांतरण

उदयपुर । क्या आप जानते हैं कि पानीपूरी को संस्कृत में जलपूरिका कहते हैं, कुल्फी को संस्कृत में पयोहिमम कहते हैं, इडली को तक्रशाल्यापूपः कहते हैं, जलेबी को रसकुण्डलिका, अचार को संधितम, पित्जा को पिस्टजा, गुलाबजामुन को कृष्ण गोलकम कहते हैं। अधिकतर लोग यह नहीं जानते, लेकिन जानना चाहते अवश्य हैं। इसी जिज्ञासा को लेकर 9वीं कक्षा से ऊपर के छात्र-छात्राओं सहित कई युवा यहां उदयपुर में लग रहे संस्कृत संभाषण शिविर में पहुंचे हैं। शिविर मंे वे संस्कृत के शब्दों की जानकारी सहित संस्कृत मंे वार्तालाप सीखने का प्रयास कर रहे हैं। 

संस्कृत भारती के तत्वावधान में सेक्टर-13 में गवरी तिराहे के समीप जनजाति छात्रावास में चल रहे इस शिविर के बारे में संगठन के प्रांत प्रचार प्रमुख यज्ञ आमेटा ने बताया कि 2 जून से शुरू हुए इस शिविर में डेढ़ सौ से अधिक शिविरार्थियों को संस्कृत भाषा के महत्व के साथ संस्कृत लिखने-बोलने का अभयास कराया जा रहा है। शिविरार्थी संस्कृत के प्रति इतने जिज्ञासु हैं कि रोजमर्रा मंे काम में आने वाले व्यंजनों, शब्दों के बारे में भी प्रशिक्षकों से जानकारी ले रहे हैं। शिविर में मानाराम चौधरी, अखिलेश शर्मा, दुष्यंत नागदा, नरेंद्र शर्मा, चैनशंकर दशोरा, रेखा सिसोदिया, डॉ सुनीता लुहाड़िया, डॉ रेणु पालीवाल, कुलदीप जोशी, डॉ हिमांशु भट्ट सहित विभिन्न प्रशिक्षण कक्षाएं ले रहे हैं। बच्चों में राजस्थानी व्यंजनों जैसे दाल-बाटी-चूरमा-छाछ-चटनी-रायता-नमक आदि के भी संस्कृत शब्दों को जानने की जिज्ञासा नजर आ रही है। 

आमेटा ने बताया कि एक संस्कृत गीत शिक्षार्थियों को बेहद पसंद आ रहा है, जिसमें देश के विभिन्न प्रांतों की झलक दिखाई देती है, यह गीत ‘मोटरयाने हृदये शन्नन शन्नन भवति, याने तु सन्ति पंजाबी जनाः, मोटरयाने हृदये बल्ले बल्ले भवति....’ शिविर में कई बार दोहराया जा रहा है। 

आमेटा ने बताया कि शिविर में विभिन्न संगठनों, समाजसेवियों का मार्गदर्शन भी शिविरार्थियों को प्राप्त हो रहा है। शिविर में आए वनवासी कल्याण परिषद के अखिल भारतीय नगरीय संपर्क प्रमुख भगवान सहाय ने संस्कृत अनुरागियों से आह्वान किया कि वेदों के ज्ञान-विज्ञान और संस्कृति को प्रोत्साहित करने के लिए संस्कृत भाषा का अध्ययन जरूरी है। संस्कृत भाषा और व्याकरण में पारंगत होने के बाद वेद-पुराणों में छिपे ज्ञान के भण्डार को समझा जा सकता है और इसके बाद ही पूरे संसार को बताया जा सकता है कि हमारे वेदों में क्या खजाना छिपा है। 

अतिरिक्त प्रादेशिक परिवहन अधिकारी अनिल पड्या ने शिविरार्थियों से चर्चा में कहा कि संस्कृत कई भाषाओं की जननी है। विश्व की प्राचीनतम भाषा है। यह केवल अध्ययन अध्यापन तक ही सीमित ना होकर सामाजिक समरसता को बढ़ाने वाली भी है। संस्कृत भाषा का प्रभाव संसार के लोगों के साथ-साथ आचार- विचार, धर्म - संस्कृति पर भी पड़ता है। यह छात्रों के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को बढ़ाने वाली भाषा है, इसलिए विश्व के कई देशों ने संस्कृत को अपने पाठ्यक्रम में भी शामिल किया है। इससे छात्र की कार्यक्षमता बढ़ती है, न्याय व्यवस्था सुदृढ़ होती है। 

संस्कृत भारती के क्षेत्र संयोजक डॉ. तकसिंह राजपुरोहित ने शिविरार्थियों को संस्कृत भारती के मुख्य उद्देश्य की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि संस्कृत का प्रचार-प्रसार करना और संस्कृत-संभाषण सिखाकर इसे फिर से व्यावहारिक भाषा बनाना है। जब लोगों के मन में संस्कृत के प्रति प्रेम जागेगा तो संस्कृति के प्रति भी स्वाभाविक प्रेम उत्पन्न होगा। देश भर में लगभग 300 पूर्णकालिक कार्यकर्ता इसमें कार्यरत हैं। उन्होंने संस्कृत भारती द्वारा चल रही ‘संस्कृत परिवार योजना’, ‘संस्कृत ग्राम योजना’ और ‘संस्कृत बालकेन्द्रम’ योजनाओं की भी जानकारी दी।


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories : Udaipur News
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like