GMCH STORIES

कुंभलगढ़ टाइगर रिजर्व अब गेंद राज्य सरकार के पाले में

( Read 8222 Times)

11 Jan 22
Share |
Print This Page
कुंभलगढ़ टाइगर रिजर्व अब गेंद राज्य सरकार के पाले में

उदयपुर ।  कुंभलगढ़ एवं टॉडगढ़ वन्यजीव अभयारण्यों को टाइगर रिजर्व घोषित करने हेतु माननीय सांसद दीया कुमारी द्वारा एक पत्र लिखा गया था, जिसके प्रभाव में एनटीसीए द्वारा एक कमेटी का गठन किया गया एवं उस कमेटी ने कुंभलगढ़ एवं टॉडगढ़ को टाइगर रिजर्व घोषित किए जाने के संदर्भ में एक फिजिबिलिटी रिपोर्ट पेश की। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि कुंभलगढ़ एवं टॉडगढ़ वन्यजीव अभयारण्य मेवाड़ एवं मारवाड़ में से गुजरती अरावली पर्वतमाला के आखिरी उष्णकटिबंधीय जंगल है जो कि सरिस्का एवं रणथम्भौर के जंगलों से भिन्न एवं ज्यादा घने हैं, दक्षिण पश्चिमी राजस्थान को जल उपलब्ध कराने के लिए यह जंगल केंद्रीय स्त्रोत है, इन अभयारण्यों में स्थित डैम 1.8 लाख हेक्टेयर जमीन सिंचित करते हैं, बाघ पुनर्वास से और भी जल संरक्षण होने की उम्मीद है क्योंकि इससे बनास नदी के कैचमेंट क्षेत्र की सुरक्षा हो सकेगी। बाघ परियोजना से होने वाली आय से यहां पर निवास करने वाले लोगों एवं वनवासियों के जीवन में आर्थिक सुधार होगा।

कमेटी की टिप्पणियां
रिपोर्ट में बताया गया कि कुंभलगढ़ एवं उससे लगे रूपनगर, दिवेर, फुलवारी की नाल, आदि जंगलों में बाघ पाएं जाने के ऐतिहासिक रिकॉर्ड है। कमेटी द्वारा अभयारण्य एवं सटे इलाकों में अक्षत वन खंड एवं चिरस्थाई नाले, जलबिंदु देखे गए। कमेटी द्वारा बगोल एवं सुमेर वन खंड में विभाग द्वारा बबूल हटाकर ग्रास लैंड तैयार करने की गतिविधि का भी अवलोकन किया गया। इन क्षेत्रों में देसी जंगली पेड़ पौधों का पुनः विकास कमेटी को संतोषप्रद लगा। हालांकि कमेटी द्वारा अभयारण्यों में शाकाहारी जीवो की संख्या कम होना अनुभव की गई। कमेटी ने यह महसूस किया कि विभाग के पास शाकाहारी एवं मांसाहारी जीवो के जनसंख्या के संबंध में वैज्ञानिक तरीके से लिए गए वन्य जीव गणना के आंकड़े नहीं है। कमेटी ने विभाग द्वारा रणकपुर के मोडीया में शाकाहारी जीवों की संख्या बढ़ाने के लिए बनाए गए तेंदुए निरोधक बाड़े की तारीफ की, कमेटी ने अवलोकन किया कि शाकाहारी जीवों के खाने के लिए देसी घास एवं अन्य पौधों को वहां उगाए जाने का कार्य गति पर है, साथ ही साथ कमेटी ने चिंता जाहिर की कि शाकाहारी वन्य जीवों को बाडे में स्थानांतरित करने में बेवजह समय व्यर्थ किया जा रहा है। कमेटी ने अभयारण्यों में स्टाफ की कमी को लेकर चिंता जाहिर की। कमेटी द्वारा वितरित फीडबैक फॉर्म से यह निष्कर्ष निकल कर आया कि ज्यादातर जंगल के आसपास के ग्रामीणों में टाइगर को लेकर एक सकारात्मक सोच है। हालांकि कमेटी ने यह चिंता जाहिर की कि अभयारण्यों को नगण्य मात्रा में फंड एवं आधारभूत संरचना (उपकरणों, वाहनों, बिल्डिंगो के रखरखाव के लिए खर्च) दिए जा रहे है।
 
राज्य सरकार को कमेटी के सुझाव
*) कमेटी द्वारा सुझाया गया कि मांसाहारी एवं शाकाहारी जीवो की वैज्ञानिक तरीके से गणना करके संख्या के आंकड़े पेश करने की जरूरत है।
*) अभयारण्यों में रिक्त पड़े पदों को जल्द से जल्द भरा जाए|
*) अभयारण्यों के दक्षिण भाग में स्थित उदयपुर (उत्तर), राजसमंद, पाली एवं सिरोही के घने प्रादेशिक वन खंड के जंगल जो कि बाघ प्रसार के लिए उपयुक्त है, इन जंगलों को प्रस्तावित टाइगर रिजर्व में जोड़ा जाए ताकि टाइगर रिजर्व और बड़ा बन सके|
*) अभयारण्य क्षेत्रों के अंदर बसें गांवों को बाहर विस्थापित किया जाए।
*) वायरलेस एवं पेट्रोलिंग ट्रेको एवं पेट्रोलिंग पथो की संरचना को मजबूत किया जाए एवं ज्यादा से ज्यादा पेट्रोलिंग ट्रैक विकसित किए जाए, वन चौकिया एवं एंटी पोचिंग कैंप अभयारण्यों के अंदर बनाए जाएं ना कि अभयारण्यों की बाउंड्री पर।
*) विदेशी मूल के अनचाहे पौधे जैसे कि अंग्रेजी बबूल, लेंटाना आदि को हटाया जाए|
*) ग्रास लैंड का विकास करके शाकाहारी जीवो की संख्या बढ़ाई जाए|
*) जीपीएस "अम-स्ट्राइप" आधारित स्मार्ट पेट्रोलिंग बढ़ाई जाए फील्ड स्टाफ को वैज्ञानिक तरीके से वाइल्ड लाइफ मैनेजमेंट की ट्रेनिंग दी जाए, वन्यजीव अपराध जांच, वन्यजीव संबंधित कानून प्रवर्तन आदि की स्पेशल ट्रेनिंग दी जाए। जहां जहां जरूरत हो वहां एनटीसीए, भारतीय वन्यजीव संस्थान, वाइल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो, आदि संस्थानों से मदद ली जा सकती है।
ज्ञात रहे वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसायटी, भारत एवं वन्य जीव संरक्षण करता एवं अधिवक्ता ऋतुराज सिंह द्वारा वन्यजीव अपराध, अन्वेषण, प्रवर्तन आदि पर कुंभलगढ़ एवं टॉडगढ़ वन्य जीव अभ्यारण्य के फील्ड स्टाफ को दो दिवसीय ट्रेनिंग दी गई थी और उन्हीं के द्वारा भविष्य में इस प्रकार की और भी ट्रेनिंग दी जाएगी।
 
राजस्थान के अन्य बाघ परियोजनाओं की समस्या
हालांकि चाहे सरिस्का, रणथंबोर या मुकुंदरा हो टाइगर रिजर्व के अंदर बसे हुए गावो एवं विदेशी मूल के अनचाहे पौधो की समस्या लगभग राजस्थान के हर बाघ परियोजना में है। जंगल में से हाईवे एवं रेलवे ट्रैक की समस्या भी सरिस्का एवं मुकुंदरा जैसे टाइगर परियोजनाओं में है। जहां तक कुंभलगढ़ एवं टॉडगढ़ अभयारण्यों का हाल फिलहाल में छोटे होने का सवाल है, यहां पर यह भी जिक्र किया जाना जरूरी है कि रणथंबोर बाघ परियोजना अभी निवास कर रहे बाघों के लिए छोटी पड़ रही है, इसीलिए वहां से समय-समय पर बाघ टाइगर रिजर्व से बाहर निकल इंसानी बस्ती में जा रहे हैं।
मुकुंदरा में एनटीसीए ने सेल्जर क्षेत्र में बाघ छोड़ने का प्रस्ताव दिया था परंतु राज्य सरकार द्वारा दर्रा क्षेत्र में बाघ छोड़ा गया, साथ ही साथ एनटीसी से मंजूरी लिए बगैर रामगढ़ विषधारी अभयारण्य में घूम रहे बाघ को पकड़ कर मुकुंदरा में छोड़ा गया। लगातार बाघों की मौत की वजह से भी मुकुंदरा टाइगर रिजर्व खबरों में छाया रहा।
 
एनटीसीए से रिपोर्ट प्राप्ति के बाद अब राज्य सरकार को रिपोर्ट पर अग्रिम कार्यवाही करनी है तथा अपनी अनुशंसा सहित प्रस्ताव केंद्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को भिजवाया जाना है।
 "हमारे द्वारा ग्रास लैंड विकास का कार्य शुरू किया जा चुका है, शाकाहारी वन्य जीवों जैसे सांभर, चीतल आदि वन्यजीवों के संबंध में मदद मांगी जाएगी।" - उप वन संरक्षक, वन्यजीव, राजसमंद फतेह सिंह राठौड़
 
"किसी लॉबी के दबाव में आए बगैर सरकार एनटीसीए की रिपोर्ट पर अग्रिम कार्यवाही करें, सरकार कमेटी द्वारा दिए गए सुझावों पर अमल करने के लिए कुंभलगढ़ की मदद करें" - ऋतुराज सिंह राठौड़ अधिवक्ता एवं संरक्षणकरता


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories :
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like