उदयपुर / छात्र अपने शोध का विषय ऐसा चुने जो समाज और राष्ट्र को आगे लाने में सहयोगी होे साथ ही शोध विषयों को गंभीरता से लेते हुए इसमें खोज होनी चाहिए। शोधार्थी काॅपी पेस्ट के कल्चर को बिल्कुल बंद कर दे। शोध के माध्यम से हमारी टेक्नोलाॅजी, सभ्यता, संस्कृति को भी बढावा दिया जाना चाहिए। प्राचीन समय में जिस देश के पास शस्त्र एवं बाहुबल एवं अधिक सेन्य साजोसामान होता उसे अधिक शक्तिशाली एवं विकासशील देश माना जाता था। लेकिन बदलते परिवेश में सैन्य के साथ साथ जिस देश में शोध, टेक्नोलाॅजी के साथ साथ हर रोज नये नये अविष्कार हेा रहे हो उसे अधिक सम्पन्न एवं विकासशील देश की श्रेणी में माना जाता है। उक्त विचार गुरूवार को जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित पीएचडी शोधार्थियों के 21 दिवसीय कोर्स वर्क के समापन के अवसर पर एमपीयूटी के कुलपति प्रो. एन.एस. राठौड ने बतौर मुख्य अतिथि कही। उन्होने कहा कि शोध स्थानीय समस्याओं, राष्ट्र के नीति निर्माण व सामुदायिक कार्यो पर आधारित होगा तो स्थानीय समस्याओं के निराकरण में भी मदद मिलेगी। किसी भी देश का विकास उसके शोध पर निर्भर करता है। अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने पीएचडी शोधार्थियों का आव्हान करते हुए कहा कि वे अपने विषय की नवीनतम शोध परक जानकारी रखें। उन्होंने कहा कि आज वैश्वीकरण के युग में ज्ञान का विस्फोट हो रहा है। हम उसको प्राप्त करके ही अपने विषय की अभिकृति बन सकते है। उन्होंने कहा कि शोधकर्ता को सकारात्मकता के साथ उद्देश्यपूर्ण होना चाहिए। ।शोधार्थी ऐसे विषय चयन करे जो हमारी ग्रामीण समस्याओं पर आधारित हो साथ ही शोध के माध्यम से उनका निराकरण हो सके। उन्होने कहा कि रिसर्च वर्क में गहन अध्ययन और फील्ड वर्क की महत्ती आवश्यकता होती है। विशिष्ठ अतिथि दीन दयाल उपाध्याय विवि गोरखपुर यूपी के कुलपति प्रो. राजेश सिंह ने कहा कि वैश्विक महामारी कौराना में आम जन को आधुनिक एवं नवीनतम तकनीेक से जोड दिया है उन्होने शोधार्थियों का आव्हान किया कि वे अपने शोध कार्य में बदलते परिवेश को ध्यान में रखते हुए कार्य करे। उन्होने कहा कि कर्मबद्ध ज्ञान का नवीनतम प्रयोग ही नवाचार है। नवाचार में आईटी का प्रयोग किया जाना चाहिए। तकनीकी सहयोग डाॅ. चन्द्रेश छतलानी, दिलिप चैधरी ने किया। पीजी डीन प्रो. जीएम मेहता ने अतिथियों का स्वागत करते हुए बताया कि इस कोर्स वर्क में शोधार्थियों को शोध पद्धति, शोध प्रारूप तैयार करने की वैज्ञानिक पद्धति, कम्प्यूटर एवं इन्टरनेट उपयोगिता आदि का ज्ञान कराया गया। आवश्यकता इस बात की है कि शोधार्थी प्राचीन भारतीय परम्परा को अपनाते हुए शोध कार्य करे तथा काॅपी पेस्ट से बचे। आभार कोर्डिनेट व प्रभारी डाॅ. पारस जैन ने दिया। शोध पर अधिक हो फोकस:- कुलपति प्रो. सारंगदेवोत
कुलपति प्रो. सारंगदेवोत ने कहा कि कम्युनिटी विकास, कम्युनिटी स्वास्थ्य, महिला एवं बाल विकास, पर्यावरण पर होना चाहिए शोध। उन्होने बताया कि शोधार्थियों को अपने शोध की वर्ष में तीन बार रिपोर्ट देनी होगी जिसके आधार पर ही शोध कार्य को आगे भेजा जायेगा। शोध गंगोत्री सोफ्टवेयर से उनके शोध प्रारूप (सिनोफसीस) की जांच की जायेगी।