उदयपुर । होली और चंग का चोली-दामन का साथ है। होली हो और चंग न बजे, रसिया न गूंजे, ऐसा संभव ही नहीं है। जितना रस भरा यह त्योहार है, उतने ही रस भरे इसके रसिया और चंग की थाप भी उतनी ही रसभरी होती है। होली पर गाए जाने वाले पारम्परिक लोक गीतों (Traditional folk songs) को रसिया कहते हैं और इन गीतों पर संगत करने वाला मुख्य वाद्य चंग होता है। अन्य वाद्य भी चंग की थाप के साथ ही ताल मिलाते हैं। चंग की थाप का जादू ही माना जाए कि जैसे ही चंग की थाप गूंजती है, सुनने वाले के कदम खुद-ब-खुद उस थाप के साथ ताल मिलाने लग जाते हैं, होली का सुरूर चढऩा शुरू हो जाता है और धीरे-धीरे आप कब होली के गीतों पर मगन होकर नाचने लग जाते हैं, पता ही नहीं चलता।
जी हां, इन दिनों कुछ ऐसा ही माहौल है उदयपुर के मंदिरों में। ठाकुरजी होली खेल रहे हैं और ठाकुरजी के भक्तों पर प्रसाद के रूप में अबीर-गुलाल उड़ाई जा रही है। मंदिरों में चंग की थाप पर रसिया गाये जा रहे हैं। चंग बजाती रसिया गाती कुछ टोलियां विभिन्न समाजों की ओर से आयोजित कार्यक्रमों में पहुंचकर होली के त्योहार में रसिया का रस घोल रही हैं। मंदिरों अलावा भी नुक्कड़-चौराहों-बाजारों में पारम्परिक रूप से चंग बजाकर ‘तेंवारी’ मांगने वाले भी नजर आ रहे हैं।
ऐसा ही माहौल गुरुवार रात को उदयपुर शहर के उपनगरीय क्षेत्र सेक्टर-7 में स्थित जगन्नाथ धाम में जमा। चंग की थाप के साथ रसिया गायन करने वाली टोली के साथ भगवान जगन्नाथ के भक्त देर रात तक झूमे। रात करीब साढ़े आठ बजे शुरू हुए इस आयोजन में क्षेत्र के महिला-पुरुष-युवा-बच्चे सभी शामिल (Women-men-young-children all included) हुए। ज्यों-ज्यों चंग की थाप तेज होती गई, त्यों-त्यों सभी मंत्रमुग्ध होकर थाप के साथ कदम मिलाते हुए नाचने लगे। कोई मंजीरा तो कोई खड़ताल लेकर ताल मिलाने लगा और नाचने लगा। छोटे बच्चे छोटी चंग लेकर बजाते-नाचते नजर आए तो जिसके पास कुछ नहीं था वे ताली से ताल मिलाते हुए शामिल होते गए।
भगवान जगन्नाथ धाम में हुए इस आयोजन में भगवान भी फूलों की होली से सराबोर हुए। गुरुवार रात को वहां फूलों की होली का विशेष मनोरथ रखा गया।
जगन्नाथ मंदिर समिति के सदस्य मनोज जोशी ने बताया कि महर्षि गौतम Business club के तत्वावधान में मारवाड़ शेखावटी क्षेत्र के चंग रसिया गायकों की टोली में हरीश शर्मा, अशोक ओझा, पारीक परिवार के नौनिहाल चंग वादक, शरद आचार्य, निर्मल पानेरी, गोपाल शास्त्री, भूपेंद्र भाटी के गायन वादन में देर रात तक जमे इस चंग-रसिया गायन कार्यक्रम में ‘राजा बली के दरबार मची रे होरी’, ‘घड़वादे मेरा श्याम बाजणती बंगड़ी’, ‘जल जमुना को पाणी कियां लाऊं रे रसिया’, ‘देवर म्हारो रे वो हरिये रुमाळ वाळो रे’, ‘लीली साटन को सिला दे पेटीकोट, बण जाऊं थारी घरवाळी’, ‘महाजन छुट्टी दे म्हारी गौरी को परवानो आयो रे’ आदि कृष्ण भक्ति तथा पारम्परिक लोक गीतों (Traditional folk songs)का गायन किया गया।
मारवाड़-शेखावाटी की खुशबू मेवाड़ में
-मारवाड़-शेखावाटी के इन चंग-रसिया गायकों की टोली कोई Professional नहीं है। ये सभी व्यवसायी हैं, नौकरीपेशा हैं जो होली की परम्पराओं और संस्कृति को जीवंत रखने के उद्देश्य से होली पर समय निकालते हैं। यह टोली रोजाना अपने परिचितों के परिवारों में जाकर चंग-रसिया गायन करती है। उनके इस उद्देश्य को सफल बनाने के लिए जो भी उनका परिचित है, वह समय-दिन का निर्धारण कर टोली को पूर्व सूचना देकर आमंत्रित करता है, इस बीच, जहां भी कार्यक्रम होता है वहां आसपास रहने वाले सभी को रसिया का आनंद उठाने का न्योता दिया जाता है। खास बात यह है कि चमड़े से बनी चंग दो-तीन रसिया गायन के बाद ढीली पड़ जाती है जिसे पुन: तपाकर कसा जाता है ताकि चंग की थाप दूर तक गूंजे।