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शिल्पग्राम में लोक और आदिवासी वाद्य यंत्र कार्यशाला आज से

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16 Sep 19
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शिल्पग्राम में लोक और आदिवासी वाद्य यंत्र कार्यशाला आज से

उदयपुर  । पश्चिम भारत के राज्यों में विभिन्न लोक और आदिम कलाओं में प्रयुक्त होने वाले वाद्य यंत्रों को सहेजने तथा विलुप्त प्रायः वाद्यों को आगामी पीढी के लिये संजो कर रखने के ध्येय से पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र द्वारा शिल्पग्राम में ’’लोक एवं आदिवासी वाद्य यंत्र कार्यशाला का आयोजन सोमवार से प्रारम्भ होगा।

केन्द्र के प्रभारी निदेशक ने इस आशय की जानकारी देते हुए बताया कि भारत के विभिन्न प्रांतों में कई प्रकार वाद्य यंत्रों का प्रयोग विभिन्न समुदाय, जातियों व जनजातियों द्वारा अपनी कलाओं में व पारिवारिक, धार्मिक व सामाजिक उत्सवों त्यौहारों पर किया जाता है। इनमें से कई वाद्य ऐसे हैं जो विलापन के कगार पर हैं। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र ने ऐसे अनेक वाद्य यंत्रों को एक स्थल पर एकत्र कर उन्हें आली पीढी के लिये संजोने के लिये एक कार्यशाला का आयोजन किया है। आगामी २२ सितम्बर तक शिल्पग्राम में आयोजित इस कार्यशाला में लगभ्ज्ञग ८० लोक व जनजातीय वादक कलाकार भाग लेंगे।  केन्द्र द्वारा इन वाद्य यंत्रों तथा उसको बजाने वाले कलाकारों का प्रलेखन व प्रदर्शन किया जायेगा।

 

६२५ वर्ग फीट की विशाल ’’संजा‘‘ को देखने आये कई लोग

उदयपुर, १५ सितम्बर। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के हवाला गांव स्थित कला परिसर में बना मुख्य रंगमंच इन दिनों एक विशेष कारणों से आकर्ष का केन्द्र बना है। इस रंगमंच की दीवार पर उदयपुर की कलाकार डॉ. दीपिका माली द्वारा ६२५ वर्ग फीट की विशालकाय ’’संजा‘‘ का अभिमंडन किया गया है। इस संजा का सार्वजनिक प्रदर्शन रविवार का किया गया।

डॉ. दीपका माली के अनुसार राजस्थान, मध्यप्रदेश और कई अंचलों में श्राद्ध पक्ष के दौरान कुंवारी कन्याओं द्वारा घर के बाहर की दीवार पर मिट्टी, गोबर, माली पन्ने, फूलों आदि से ’संजा‘ मंडन किया जाता है व उसकी बाकायदा पूजा अर्चना कर भोग अर्पित किये जाने के साथ संजा गीत गाये जाने की परंपरा रही है। संजा व सांझी कला वर्तमान में बहुत कम देखने को मिलती है। आम लोगों को इस परंपरा से रूबरू करवाने व इसकी महत्ता को पुर्नजीवित करने के ध्येय से डॉ. दीपिका माली व उनके परिवार जनों ने लगभ्ज्ञग एक सप्ताह की अथक मेहनत के बाद शिल्पग्राम के रंगमंच पर संजा मंडन किया। १४ सितम्बर की पूरी रात तथा तडके चार बजे बन कर तैयार हुई संजा में गोबर, मिट्टी व माली पन्ने के साथ फूलों का प्रयोग किया गया है। स्वर्णिम फ्रेम के बीच रजत और नीले बाहरी आवरण में दीपिका ने रथ पर सवार संजा माता को जहां बखूबी अभिमंडित किया वहीं धूमकेतु, पुलिस, चोर, सफाई वाले, ढोलक वादक और पुष्पमाला बेचने वाले की आकृतियां मोहक व परंपरा अनुसार बन सकी हैं। सांध्यवेला में संजा के समक्ष धूप व प्रसाद का भोग लगाया गया तथा बालिकाओं ने संजा गीत गाया। इस अवसर पर वरिष्ठ कलाकार प्रो. सुरेश शर्मा, एल.एल.वर्मा, डॉ. विष्णुमाली, डॉ. मीना बया, डॉ. रघुनाथ शर्मा, डॉ. मदन सिंह राठौड, शाहिद परवेज इत्यादि समेत कई गणमान्य लोग उपस्थित थे।

 


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