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“वेदों को स्वतः प्रमाण और इतर ग्रन्थों की वेदानुकूल बातों को परतःप्रमाण बताने वाले ऋषि दयानन्द प्रथम ऋषि हुए हैं : सत्यदेव निगमालंकार”

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07 Aug 23
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-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

“वेदों को स्वतः प्रमाण और इतर ग्रन्थों की वेदानुकूल बातों को परतःप्रमाण बताने वाले ऋषि दयानन्द प्रथम ऋषि हुए हैं : सत्यदेव निगमालंकार”

 आर्यसमाज धामावाला-देहरादून के आज दिनांक 6-8-2023 को रविवारीय सत्संग में यज्ञ, भजन एवं वैदिक विद्वान डा. सत्यदेव निगमालंकार जी का व्याख्यान हुआ। यज्ञ आर्यसमाज के विद्वान पुरोहित पं. विद्यापति शास्त्री जी के पौरोहित्य में सम्पन्न हुआ। यज्ञ के बाद स्वामी श्रद्धानन्द बाल वनिता आश्रम के एक बालक ने कविता पाठ किया। एक कन्या का एक भजन हुआ। आश्रम की ही चार कन्याओं ने मिलकर भी एक भजन प्रस्तुत किया। आर्यसमाज के पुरोहित पं. विद्यापति शास्त्री जी संगीत एवं गायन विद्या का अच्छा ज्ञान रखते हैं। उनका स्वर भी मधुर है। उन्होंने दो गीत प्रस्तुत किये। एक भजन पं. पथिक जी रचित था जिसके बोल थे ‘प्रभु तेरी शरण तज कर शरण पाने कहां जायें, दिए दुःख दर्द दुनियां ने तो दिवाने कहां जायें।’ आश्रम की छात्रा रोशनी ने सामूहिक प्रार्थना कराई। 

    डा. सत्येदव निगमालंकार जी ने आपने व्याख्यान में कहा कि आर्यसमाज का काम केवल और केवल वेदों का प्रचार करना है। आर्यसमाज वेदानुकूल कार्यों को ही करता है। उन्होंने बताया कि ऋषि दयानन्द के काल 1825-1883 में लोग वेदों के प्रति श्रद्धा तो रखते थे परन्तु उन्हें यह पता नहीं था कि वेदों में किन विषयों का उल्लेख है? ऋषि के जीवनकाल में केवल सामवेद के नाम पर 1000 वेद चल रहे थे। यजुर्वेद के नाम पर 101, अथर्ववेद के नाम पर 31 वेद प्रचलित थे। ऋग्वेद के नाम से भी 9 वेद चल रहे थे। आजकल यह सब पुस्तकें उपलब्ध नहीं है, केवल कुछ ही उपलब्ध होती हैं। उन दिनों लोग वेदों को ढूंढते थे परन्तु वेद कहीं मिलते नहीं थे। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद से इतर मन्त्र संहिताओं को भी लोग वेद मानते थे। आचार्य डा. निगमालंकार जी ने ऋषि दयानन्द जी और उनके गुरु स्वामी विरजानन्द सरस्वती के मध्य हुए संवाद की भी चर्चा की। सब बातों का उल्लेख कर विद्वान डा. सत्यदेव निगमालंकार जी ने कहा कि संसार से अज्ञान दूर करने का एक ही उपाय है वेदों का प्रचार करना। आचार्य जी ने कहा कि ऋषि दयानन्द ने देखा कि अज्ञान से सारा देश ग्रस्त है। इस अज्ञान व वेदों से परिचय न होने का कारण ही देश की पराधीनता थी। उन्होंने कहा कि वेदों के अतिरिक्त सच्चा मार्ग और किसी ग्रन्थ व गुरु से मिल नहीं सकता। उन्होंने कहा कि मनुष्यों व सभी स्थानों के नाम वेदों से ही लिये गये हैं। 

    आचार्य डा. सत्यदेव निगमालंकार जी ने बताया कि सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ के प्रथम समुल्लास में ईश्वर के सत्यस्वरूप का प्रकाश किया गया है। उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द जी ने मुरादाबाद के राजा जयकृष्ण दास जी के कहने से वेदों का भाष्य करना आरम्भ किया था। आचार्य जी ने कहा कि लंका में रहने वाला वहां का राजा वैदिक विद्वान नहीं था अपितु दक्षिण भारत में रहने वाला एक अन्य विद्वान जो रावण नामधारी था वह वेदों का विद्वान था। उसने वेदों पर टीका भी लिखी है जो वर्तमान में उपलब्ध है। आचार्य जी ने कहा कि उन्होंने उस टीका को पढ़ा है। वैदिक विद्वान आचार्य सत्यदेव निगमालंकार जी ने कहा कि सृष्टि की आदि में परमात्मा ने चार ऋषि अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा को एक-एक वेद का ज्ञान दिया था। वेदों का ज्ञान सृष्टि के आरम्भ में दिए जाने के कारण इन ग्रन्थों में इतिहास नहीं है। परमात्मा के ज्ञान वेद को समझने के लिए मनुष्य रचित ग्रन्थों के अध्ययन से काम नहीं चलता। आचार्य जी ने कहा कि ऋषि दयानन्द ने वेदों को स्वतःप्रमाण ग्रन्थ कहा है। उन्होंने बताया कि वेदों के सभी मन्त्रों में जो-जो बातें कही गईं हैं वह सब स्वतः प्रमाण है। आचार्य जी ने कहा कि वेदों को स्वतः प्रमाण और इतर वेदानुकूल ग्रन्थों को परतःप्रमाण बताने वाले ऋषि दयानन्द प्रथम ऋषि हुए हैं। आचार्य जी ने स्वामी रामदेव के उन शब्दों की पुष्टि की जिसमें वह कहते हैं कि लोग वेद पढ़े तो अच्छा है परन्तु यदि वह वेद न पढ़ सकें तो उन्हें सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ का अध्ययन अवश्य ही करना चाहिये। आचार्य जी ने यह भी बताया कि ऋषि दयानन्द के अनुसार पुराण ग्रन्थ विषसम्पृक्त अन्न के समान हैं। उन्होंने कहा कि कि सत्यार्थप्रकाश को आप जितनी बार भी पढ़ेंगे आपको हर बार इसमें वर्णित विषयों का नया नया ज्ञान वा अर्थ ज्ञात होंगे। 

    आर्यसमाज के उच्चकोटि के विद्वान आचार्य डा. सत्यदेव निगमालंकार जी ने कहा कि वह सब पदार्थ देवता हैं जो हमें कुछ न कुछ देते हैं। उन्होंने कहा कि अग्नि, वायु, जल, पृथिवी, आकाश आदि सभी पदार्थ देते हैं, अतः यह सब जड़ देवता हैं। उन्होंने कहा कि यह सिद्धान्त हमें ऋषि दयानन्द जी ने दिया है। उन्होंने यह भी बताया कि परोपकार के सभी कार्य यज्ञ की कोटि में आते हैं। आचार्य जी ने कहा कि हैदराबाद में जब वहां के निजाम ने सत्यार्थप्रकाश पर प्रतिबन्ध लगा दिया तो आर्यसमाज के सर्वमान्य नेता महात्मा नारायण स्वामी जी ने आर्य सत्याग्रह का निर्णय लेकर सत्याग्रह किया था और हैदराबाद की जेलें आर्य सत्याग्रहियों से भर दी थी। इसके परिमाणस्वरूप हैदराबाद का निजाम आर्यसमाज की मांगे मानने के लिए बाध्य हुआ था। आचार्य जी ने कहा कि ऋषि दयानन्द जी ने वेदों से ही वेदों का अर्थ करने का सिद्धान्त दिया है। 

    आर्यसमाज के मंत्री श्री नवीन भट्ट जी ने कार्यक्रम का संचालन किया। उन्होंने आचार्य जी को आज का विद्वतापूर्ण व्याख्यान देने के लिए धन्यवाद किया। शान्तिपाठ पं. विद्यापति शास्त्री जी ने कराया जिसके बाद प्रसाद वितरण के साथ आज का सत्संग सम्पन्न हुआ। ओ३म् शम्।     
-मनमोहन कुमार आर्य
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देहरादून-248001
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