पंडित डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी भारतीय राजनीति के उन महानतम व्यक्तित्वों में से एक गिने जाते हैं जिनकी दृष्टि बहुत ही दूरदर्शी थी और जीवन का लक्ष्य राष्ट्रहित और राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करना था । वे एक महान शिक्षाविद, राष्ट्रवादी नेता, विचारक और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उनका जीवन इस बात का एक आदर्श उदाहरण है कि कैसे उच्च शिक्षा और राष्ट्र के प्रति समर्पण से समाज को दिशा दी जा सकती है। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के सिद्धांत भारतीय एकता, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, स्वदेशी, मजबूत केंद्र, लोकतंत्र, और समान नागरिक अधिकारों पर आधारित थे। उनका जीवन भारत के अखंड और शक्तिशाली राष्ट्र निर्माण के लिए समर्पित था।
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पंडित डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारत की राजनीति को एक नई दिशा दी। उन्होंने भारतीय जनसंघ की स्थापना की, जो कालान्तर में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का मूल आधार बना। वे लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने कांग्रेस के एकाधिकार के खिलाफ वैचारिक विपक्ष खड़ा किया और भारतीय जनसंघ की स्थापना की ताकि एक मजबूत वैकल्पिक विचारधारा देश के सामने आए। उनकी सबसे महत्वपूर्ण भूमिका जम्मू-कश्मीर के भारत में पूर्ण एकीकरण के मुद्दे पर रही। उन्होंने “एक देश में दो निशान, दो प्रधान, दो विधान नहीं चलेंगे” का नारा दिया और अपने प्राणों की आहुति देकर इस विचार को जनमानस में स्थापित किया।
प्रारंभिक जीवन और परिवार
पंडित जी का जन्म 6 जुलाई 1901 को बंगाल के कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) में हुआ। उनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी बंगाल के प्रसिद्ध शिक्षाविद, गणितज्ञ और कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति थे। उनकी माता का नाम जोगमाया देवी था।उनके जीवन पर उनके पिता का गहरा प्रभाव पड़ा। आशुतोष मुखर्जी ने शिक्षा के क्षेत्र में जो आदर्श स्थापित किए थे, श्यामा प्रसाद जी ने उन्हें न केवल आत्मसात किया बल्कि उन्हें आगे बढ़ाने का भी प्रयास किया।उनकी प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता में हुई। उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक की उपाधि ली। इसके बाद 1921 में उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से इंग्लिश में एम.ए. की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने क़ानून की पढ़ाई भी की और बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैंड के लिंकन इन गए। 1926 में वे बैरिस्टर बनकर भारत लौटे।
पंडित डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की विद्वता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 33 वर्ष की आयु में ही उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय का उपकुलपति नियुक्त किया गया। उस समय वे विश्वविद्यालय के सबसे युवा उपकुलपति थे।
शिक्षाविद के रूप में योगदान
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने शिक्षा को केवल पठन-पाठन तक सीमित नहीं रखा बल्कि उसमें राष्ट्रीय चेतना का संचार करने की कोशिश की। उनके उपकुलपति रहते हुए कलकत्ता विश्वविद्यालय में भारतीय दृष्टि से पाठ्यक्रम सुधार हुए और भारतीय इतिहास तथा संस्कृति को महत्व दिया गया।उन्होंने छात्रों में राष्ट्रीय भावना जगाने का प्रयास किया। अंग्रेजी शासन के दौरान जब विश्वविद्यालयों को केवल प्रशासनिक नौकर पैदा करने का केंद्र समझा जाता था, तब श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने उसे राष्ट्रीय जागरण का माध्यम बनाया। वे शिक्षा को राष्ट्रनिर्माण का आधार मानते थे। उन्होंने हमेशा आधुनिक विज्ञान और तकनीक के साथ भारतीय मूल्यों को जोड़ने पर ज़ोर दिया।
सार्वजनिक जीवन में प्रवेश
भारत की स्वतंत्रता के बाद पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। वे भारत के पहले उद्योग मंत्री बने।उनके कार्यकाल में भारत के औद्योगिकीकरण की नींव पड़ी। उन्होंने देश के भारी उद्योगों के विकास के लिए योजनाएं बनाईं। इस दौरान उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के विकास की नींव डाली।लेकिन जल्द ही उनके और नेहरू के बीच वैचारिक मतभेद गहरे हो गए। खास तौर पर नेहरू-लियाकत समझौते (1950) पर उनका विरोध बहुत तीव्र था। उनका मानना था कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहा था और ऐसे में यह समझौता हिन्दुओं के हितों की अनदेखी करता था।
भारतीय जनसंघ की स्थापना
नेहरू मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देने के बाद पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 21 अक्टूबर 1951 को भारतीय जनसंघ की स्थापना की। पंडित दीनदयाल उपाध्यादय उनके सबसे भरोसेमंद और प्रमुख सहयोगी, विचारक एवं संगठनकर्ता थे जो बादे में उनके उत्तसराधिकारी भी बने। जनसंघ का उद्देश्य था भारतीय संस्कृति और परंपराओं के अनुरूप राष्ट्र निर्माण करना। इसकी विचारधारा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर आधारित थी। भारतीय संस्कृति को राष्ट्र की आत्मा मानते थे। उनका विचार था कि भारत की नीतियाँ भारतीय परंपराओं और मूल्यों पर आधारित होनी चाहिए।पश्चिमी सोच की नकल के बजाय भारतीय चिंतन को महत्व देना चाहिए। उन्होंने देश की आर्थिक नीतियों में आत्मनिर्भरता पर ज़ोर दिया। विदेशी कंपनियों और माल पर निर्भरता घटाने की बात कही।वे स्वदेशी उद्योगों और कृषि को बढ़ावा देने के पक्षधर थे।
मुखर्जी के नेतृत्व में जनसंघ ने 1952 के पहले आम चुनाव में भाग लिया और संसद में 3 सीटें जीतीं। हालांकि सीटें कम थीं, लेकिन पार्टी ने एक वैकल्पिक राष्ट्रवादी विचारधारा को जन्म दिया, जो आगे चलकर भारतीय राजनीति की एक मजबूत धारा बनी। उन्होंने भारत जैसे विविध देश में एक मजबूत केंद्र सरकार की आवश्यकता बताई। वे मानते थे कि प्रांतवाद और अलगाववाद पर नियंत्रण के लिए केंद्र की शक्ति ज़रूरी है।
कश्मीर मुद्दे पर संघर्ष
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जीवन सबसे ज्यादा कश्मीर के प्रश्न से जुड़ा हुआ रहा जिसे आज भी याद किया एकजाता है।भारत की स्वतंत्रता के बाद जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया था। धारा 370 के तहत उसे अलग संविधान, अलग झंडा और अलग कानून की व्यवस्था मिली थी।मुखर्जी ने इसका कड़ा विरोध किया। उनका नारा था “एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं चलेंगे।”उनका तर्क था कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और वहां के नागरिकों को भी वही अधिकार और दायित्व होने चाहिए जो बाकी देशवासियों के हैं। वे मानते थे कि देश के हर नागरिक को एक समान कानून और अधिकार मिलने चाहिए। भारत में सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून के पक्षधर थे। उन्होंने धार्मिक या प्रांतीय आधार पर अलग कानूनों का विरोध किया।
पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान
पंडित डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक महान नेता और देशभक्त थे जिन्होंने जम्मू कश्मीर के पूर्ण एकीकरण के लिए संघर्ष किया। उन्होंने धारा 370 के प्रावधानों का विरोध किया और जम्मू कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों की तरह समान दर्जा देने की मांग की। मुखर्जी ने अपने संघर्ष के दौरान कई चुनौतियों का सामना किया और अंततः उन्होंने अपनी जान की बाजी लगा दी। 1953 में उन्होंने कश्मीर जाने का निश्चय किया, जबकि वहां के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला ने बाहरी लोगों के प्रवेश पर अनुमति नहीं दी थी।वे बिना परमिट के जम्मू-कश्मीर गए और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 23 जून 1953 को श्रीनगर में हिरासत में ही उनकी रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई। उनकी संदिग्ध मृत्यु को लेकर कई सवाल उठते रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि यह एक राजनीतिक हत्या थी। उनकी मृत्यु ने देश में जनाक्रोश पैदा कर दिया और कश्मीर के मुद्दे को राष्ट्रीय बहस का विषय बना दिया। डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान के बाद कश्मीर का मुद्दा देशभर में चर्चा का विषय बन गया।उनकी मृत्यु के कुछ वर्ष बाद शेख अब्दुल्ला को गिरफ्तार किया गया और जम्मू-कश्मीर का भारत में एकीकरण मजबूत हुआ।
धारा 370 को हटाने का निर्णय
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्त्व में भारत सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर में धारा 370 को हटाने का निर्णय एक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण कदम है जिसने राज्य के विकास और एकीकरण के लिए नए अवसर प्रदान किए। इस निर्णय के पीछे एक महत्वपूर्ण प्रेरणा पंडित डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान और उनके द्वारा जम्मू कश्मीर के पूर्ण एकीकरण की मांग थी।
5 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर में धारा 370 को हटाने का निर्णय लिया, जिससे राज्य को विशेष दर्जा प्राप्त था। इस निर्णय के साथ ही जम्मू कश्मीर और लद्दाख को अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने का भी निर्णय लिया गया। इस कदम ने जम्मू कश्मीर के विकास और एकीकरण के लिए नए अवसर प्रदान किए है । साथ ही राज्य के लोगों को भारत के अन्य राज्यों की तरह समान अधिकार और सुविधाएं प्रदान की है ।
धारा 370 को हटाने का निर्णय मुखर्जी के बलिदान और उनके द्वारा जम्मू कश्मीर के पूर्ण एकीकरण की मांग का एक महत्वपूर्ण परिणाम है ।पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान और जम्मू कश्मीर में धारा 370 को हटाने का निर्णय दोनों ही जम्मू कश्मीर के इतिहास में महत्वपूर्ण घटनाएं हैं। मुखर्जी का बलिदान जम्मू कश्मीर के पूर्ण एकीकरण के लिए एक प्रेरणा बना, जबकि धारा 370 को हटाने का निर्णय राज्य के विकास और एकीकरण के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो रहा है । ये दोनों घटनाएं जम्मू कश्मीर के भविष्य के लिए एक नए युग की शुरुआत का प्रतीक हैं।
पंडित डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा स्थापित भारतीय जनसंघ का 1977 में जनता पार्टी में विलीन हुआ और 1980 में भारतीय जनता पार्टी के रूप में पुनर्गठन हुआ। भाजपा ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी के विचारों को अपनी विचारधारा का आधार माना। आज भी पंडित मुखर्जी को पार्टी का आदर्श नेता माना जाता हैं। उनकी राजनीति का मूलमंत्र था देशहित सबसे ऊपर। उन्होंने व्यक्तिगत लाभ या पद के लालच को ठुकराया। कश्मीर में प्रवेश के समय उनकी गिरफ्तारी और बलिदान भी इसी सिद्धांत के कारण हुआ।
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की स्मृति में उनके नाम पर देश में कई संस्थान, सड़कें और योजनाएं चल रही हैं। उदाहरण के लिए डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी राष्ट्रीय रोजगार योजना,डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, झारखंड, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी पोर्ट, कोलकाता आदि ।
मैंने राजस्थान के स्कूल शिक्षा मंत्री के अपने कार्यकाल में राजस्थान के स्कूली पाठ्यक्रम में कई बदलाव करवाए थे। विशेष कर बोर्ड की किताबों में राष्ट्रीय नेताओं और विचारकों पर नए अध्याय जोड़े गए। इनमें डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी पर भी एक अलग अध्याय शामिल किया गया। इसका उद्देश्य पाठ्यक्रम में भारतीय संस्कृति, राष्ट्रवाद और देश के महान व्यक्तित्वों का अधिक स्थान देकर छात्रों को उनके योगदान और विचारधारा से परिचित कराना था।