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मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और संघ परिवार के बीच चल रहा है तयशुदा खेल

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14 Feb 18
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बीजेपी को तभी चुनावी फायदा मिल सकता है जब हिंदू वोटबैंक के बीच ऐसी समझ बनाई जाए कि बीजेपी और इसकी हिंदुत्ववादी ताकतें ही हिंदुओं के लिए राम मंदिर के मुद्दे को आगे बढ़ा रही हैं।
देश की राजनीति में एक बार फिर राम की गूंज सुनाई दे रही है। लालकृष्ण आडवाणी की कुख्यात रथयात्रा के लगभग ढाई दशक बाद, उत्तर प्रदेश की अयोध्या से एक और रथयात्रा निकली है। यह कोई संयोग नहीं है कि इसी समय मुसलमानों की संस्था ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड बाबरी मस्जिद को लेकर अपने रुख की वजह से खबरों में है।अयोध्या में राम मंदिर को लेकर मौजूद सारा विवाद बाबरी मस्जिद से सीधे तौर पर जुड़ा है, तो यह तय है कि जब भी यह मुद्दा उठेगा तो मुस्लिम संस्था का जिक्र आएगा। सबसे पहले 1980 के दशक के अंत और 1990 की शुरूआत में बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटी मुस्लिम हितों को आगे बढ़ाने के लिए चर्चा में थी जब विश्व हिंदू परिषद् और आडवाणी मंदिर के लिए आंदोलन कर रहे थे। एक बार फिर मंदिर के लिए हिन्दुत्व ताकतें और मस्जिद के लिए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड आमने-सामने दिख रहे हैं।लेकिन इस पूरे विवाद को पहले दिन से देख रहे मेरे जैसे पत्रकार के लिए एक खास बात मायने रखती है जब 2 फरवरी 1986 को एक न्यायिक आदेश के जरिये बाबरी मस्जिद का ताला खोला गया था। बाबरी मस्जिद विध्वंस के लगभग 25 साल गुजर गए और तब से अब तक सरयू नदी में बहुत पानी बह गया है, लेकिन राम मंदिर की राजनीति में कुछ खास नहीं बदला है।हिंदू पंरपरा में भगवान राम में एक अति-पूजनीय धार्मिक देवता हैं। इसलिए, गिराई गई बाबरी मस्जिद की जगह पर राम मंदिर का निर्माण बहुत से हिंदुओं और मुसलमानों के लिए एक भावनात्मक मुद्दा है। लेकिन, बीजेपी के लिए चुनावी राजनीति के रूप में इसे एक सनसनीखेज मुद्दे में कैसे तब्दील किया जाए? देश के दो बड़े धार्मिक समुदायों के बीच फंसे एक धार्मिक मुद्दे से बीजेपी को तभी चुनावी फायदा मिल सकता है जब हिंदू वोटबैंक के बीच ऐसी समझ बनाई जाए कि बीजेपी और इसकी हिंदुत्ववादी ताकतें ही हिंदुओं के लिए राम मंदिर के मुद्दे को आगे बढ़ा रही हैं।यही एक ऐसे मुस्लिम संगठन की जरूरत बन जाती है जो हिंदुओं में गुस्सा पैदा कर सके। बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटी और अब ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे संगठन यह काम आसानी से कर सकते हैं। इसी तरह से एक पहले से तय हिंदू बनाम मुसलमान खेल की शुरूआत हो सकती है जिसका आखिरी तौर पर फायदा हिंदुत्ववादी ताकतों को मिलेगा और जो आखिरकार बीजेपी की चुनावी जीत में तब्दील होगा।पहले, मुस्लिम संगठन रुकावट पैदा करने वाले रास्ते पर नजर आते हैं और राम मंदिर निर्माण को लेकर बड़ी भारी आपतियां जताते हैं। “जो मस्जिद था वह मस्जिद रहेगा” जैसे नई बोतल में पुरानी शराब है। 1980-90 के दशक में बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटी इसी तर्क के साथ आई थी, जो ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अपने मामले के पक्ष इस्तेमाल कर रही है। यह बात बिल्कुल तर्कविहीन है क्योंकि बोर्ड का हर सदस्य यह जानता होगा कि मस्जिद की जगह पर सड़क बना देना भी सऊदी अरब जैसे इस्लामिक देश में एक सामान्य कार्यवाही है। फिर भी, बोर्ड उसी तर्क पर अड़ा हुआ है जो बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय उल्टी पड़ गई थी।लेकिन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ऐसा क्यों कर रहा है जब वह यह जानता है कि राम मंदिर आंदोलन के पहले दौर में मुसलमानों को भारी नुकसान सहना पड़ा था? या तो यह एक निपट बेवकूफी है या फिर बोर्ड हिंदुत्व गेम प्लान को फायदा पहुंचाने के लिए किसी के इशारे पर ऐसा कर रहा है। राम मंदिर विरोधी आवाजें कैसे राम मंदिर समर्थक ताकतों को फायदा पहुंचा सकती हैं? बहुत आसान है। अगर राम मंदिर जैसे भावनात्मक मुद्दों के खिलाफ कोई प्रतिरोध नहीं रहेगा, तो कोई कड़ी हिंदू प्रतिक्रिया भी नहीं होगी। कड़ी प्रतिक्रिया तभी होती है जब किसी चीज के प्रति तीका प्रतिरोध रहता है।1980-90 के दशक में भी यही हुआ था, जब बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटी ने राम मंदिर के खिलाफ एड़ी-चोटी का दम लगा दिया था। शुरूआत में, आजम खान और मौलाना ओबैदुल्लाह आजमी जैसे कमिटी के सदस्यों ने मुस्लिम रैलियों में उकसाने वाले भाषण दिए थे, जिनमें भावनाओं से ओत-प्रोत हजारों मुसलमानों मौजूद थे। नारा-ए-तकबीर/ अल्लाह-ओ-अकबर जैसे नारे हवा में हलचल मचाने लगे। इसके बाद राम मंदिर के समर्थन में विश्व हिंदू परिषद् की रैलियां हुई, जिनमें उन जैसे और कई बार उनसे भी ज्यादा उकसाने वाले भाषण उमा भारती और साध्वी ऋतंभरा जैसे नेताओं ने दिए। राम मंदिर मुद्दे पर इस तरह की पहले से तयशुदा मुस्लिम बनाम हिंदू प्रतिस्पर्धी साम्प्रदायिकता की हिंदुओं की तरफ से कड़ी प्रतिक्रिया हुई और उसने न सिर्फ बाबरी मस्जिद को खत्म किया, बल्कि कई मुसलमानों को भी तबाह कर दिया और हमेशा के लिए उदार भारतीय राजनीति को नष्ट कर दिया।वही तयशुदा खेल फिर से ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और हिंदुत्व ताकतों के बीच शुरू हो गया है। शुरू में, बोर्ड यानी मुसलमानों की आवाज लोगों और मीडिया के बीच बहुत ज्यादा सुनाई देगी। इसलिए, तैयार हो जाइए टेलीविजन के प्राइम टाइम पर किस्म-किस्म के दाढ़ी वाले मुसलमानों को देखने के लिए, जब तक हिंदुओं का गुस्सा बढ़ नहीं जाता तब तक बोर्ड उकसाने वाले बयान देता रहेगा। राम मंदिर को लेकर जब भावनाएं उबाल पर होंगी, जब हिंदुत्ववादी ताकतों की आवाज मुस्लिम आवाज को दबाने के लिए सामने आ जाएंगी। मुसलमान और उदार राजनीति दोनों इस खेल में हार जाएंगे क्योंकि एक संगठित हिंदू वोटबैंक चुनावी तौर पर सिर्फ बीजेपी और इसके सुप्रीम नेता नरेन्द्र मोदी को फायदा पहुंचाएगी।चुनावी रूप से मोदी एक कच्ची जमीन पर खड़े हैं। वह अब विकास के नारे से मतदाताओं को नहीं बहला सकते। उन्हें अगले लोकसबा चुनाव के लिए कोई एक मुद्दा चाहिए। राम मंदिर खेल को डूबते हुए मोदी के लिए बिल्कुल बदल सकता है।पीएम मोदी को चिंता करने की जरूरत नहीं है जब तक ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे मुस्लिम संगठन आबाद हैं।
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