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51 दिव्यांग व निर्धन जोड़ों ने थामा एक-दूजे का हाथ

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08 Sep 19
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51 दिव्यांग व निर्धन जोड़ों ने थामा एक-दूजे का हाथ

 ढोल-नगाड़ों और शहनाइयों की गूंज के बीच रविवार को नारायण सेवा संस्थान की ओर से स्मार्ट विलेज बड़ी में आयोजित 33वें भव्य विशाल नि:शुल्क दिव्यांग एवं निर्धन सामूहिक विवाह समारोह में देशभर से आए 51 दिव्यांग एवं निर्धन जोड़े परिणय सूत्र में बंधे। शुभ मुहूर्त में विवाह की समारोह की रस्मों की शुरुआत हुई। बैंडबाजों पर विवाह गीतों पर थिरकते बारातियों के साथ घोड़ी पर आए दूल्हों ने तोरण की रस्म अदा की। इसके बाद विवाह स्थल पर बने विशाल पांडाल में देशभर से आए हजारों लोगों की उपस्थिति में वरमाला की रस्म हुई जिसमें पांच जोड़ों ने हाइड्रोलिक स्टेज पर तो बाकी ने स्टेज पर बारी-बारी से एक-दूसरे को वरमाला पहनाई। इन जोड़ों मेंं कोई दूल्हा दिव्यांग था, तो कोई दुल्हन। तो कुछ जोड़ों में दोनों ही दिव्यांग थे। मगर सबका उत्साह देखते ही बन रहा था। वरमाला के दौरान कोई दूल्हा कृत्रिम उपकरणों की मदद से वरमाला थामे आगे बढ़ा तो कोई जमीन पर हाथों व पैरों की मदद से। तो कुछ ने व्हील चेयर पर वरमाला की रस्म अदा की। समारोह के साक्षी बने लोगों ने जोड़ों पर पुष्प वर्षा की और शादी के गीतों पर थिरकते हुए वर-वधुओं की खुशियों में चार-चांद लगा दिए। नारायण सेवा संस्थान के संस्थापक कैलाश ‘मानव’, सह संस्थापिका कमलादेवी अग्रवाल, अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल, निदेशक वंदना अग्रवाल एवं शहर के गणमान्य नागरिकों ने जोड़ों को आशीर्वाद प्रदान किया।
इसके बाद कृत्रिम अंग वितरण समारोह हुआ जिसमें देश के विभिन्न राज्यों से आए 51 दिव्यांगजनों को कृत्रिम उपकरण व अंग वितरित किए गए। यहां दिव्यांगजनों ने अपने जीवन संघर्ष के मर्मस्पर्शी संस्मरण सुनाए तो वहां उपस्थित लोगों की आंखें भर आईं। दिव्यांगजनों ने नारायण सेवा संस्थान को उनके कठिन और संघर्षपूर्ण जीवन में सम्बल प्रदान करने के लिए धन्यवाद अर्पित किया।
इसके बाद 51 वेदियों पर 51 आचार्यों के मंत्रोच्चार के बीच विधि-विधान से विवाह की रस्मों को पूर्ण किया गया। इससे पूर्व अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल, निदेशक वंदना अग्रवाल डोली में दुल्हन को लेकर पहुंचे तो पूरा पांडाल ही थिरक उठा। पाणिग्रहण संस्कार में कई जोड़ों के धर्म माता-पिता ने भी कन्यादान किया। जूता छिपाई की रस्म में विवाह गीतों पर हुई हंसी-ठिठौली के पल यादगार रहे। फेरों की रस्म के बाद एक बार फिर ढोल-नगाड़ों की थाप पर पूरा पांडाल शादी के जश्न में डूब गया। घराती, बराती, दिव्यांगजन, आयोजक और दानदाता आदि थिरक उठे।  वर-वधुओं को आशीर्वाद प्रदान करने अहमदाबाद, गाजियाबाद, जोधपुर, इंदौर, आगरा, नागपुर, दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, पूना, राजकोट, देहरादून, पटना, बड़ौदा गुडग़ांव, सहित देश के कई राज्यों व शहरों से संस्थान के सहयोगी एवं अतिथिगण पधारे।
समारोह में ट्रस्टी देवेंद्र चौबीसा, जगदीश आर्य, संयोजक गौरव शर्मा, दल्लाराम पटेल, रोहित तिवारी आदि विभिन्न व्यवस्थाओं में सहभागी बने।
विदाई पर भर आई आंखें :
शादी की खुशियों के बीच जब दिव्यांग बहनों की विदाई की वेला आई तो पांडाल में मौजूद सभी लोगों की आंखों से आंसू छलक आए। दूल्हनों को डोली में बिठाया गया। परिजनों, मित्रों के साथ ही धर्म माता-पिता ने मंगल आशीष देते हुए बेटियों को विदा किया। परिजनों ने नारायण सेवा संस्थान परिवार का आभार जताया। संस्थान की ओर से सभी जोड़ों को उनके गांव, शहर में स्थित निवास स्थान तक छोडऩे के लिए विशेष बस, कार व अन्य वाहनों की नि:शुल्क व्यवस्था की गई। सभी जोड़ों को गृहस्थी का सामान दिया गया। दानदाताओं की ओर से भी उपहार दिए गए।  
अब शुरू करेंंगे नया जीवन
संस्थान अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल ने इस अवसर पर कहा कि दिव्यांग लोगों को समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए, हमने कुछ अभियान चलाए हैं, जैसे निशुल्क सुधारात्मक सर्जरी, व्यावसायिक पाठ्यक्रम, मुफ्त प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराना, दिव्यांग सामूहिक विवाह समारोह और दिव्यांग टैलेंट शो और ऐसे ही अन्य प्रयास प्रमुख हैं। इसके अलावा, एनएसएस पूरे भारत में दिव्यांगों के लिए कृत्रिम अंग मापन और वितरण शिविर संचालित कर रहा है। इन्हीं सारे प्रयासों का नतीजा है कि सामूहिक विवाह समारोह में शामिल होने वाले दंपतियों को संस्थान में ‘सुधारात्मक सर्जरी’ की सुविधा उपलब्ध कराई गई है और अब अपना नया जीवन शुरू करने के लिए उन्होंने अपना कौशल प्रशिक्षण भी पूरा किया है। अपनी शारीरिक अक्षमताओं के बावजूद सभी जोड़ों ने सामूहिक विवाह समारोह में उत्साह और खुशी के साथ बढ़-चढक़र भाग लिया। वर-वधुओं ने पारंपरिक रस्मों को पूरा किया और एक दूसरे के गले में वरमाला डाली तथा आयोजन में उपस्थित बुजुर्गों से आशीर्वाद ग्रहण किया।
1.  हीरालाल और लीला कुमारी
राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले के हीरालाल और लीला कुमारी 33वें दिव्यांग एवं निर्धन सामूहिक विवाह समारोह में परिणय सूत्र में बंधे।   हीरालाल की उम्र करीब 26 साल है उसने 10वीं तक पढ़ाई की है। वह एक मिस्त्री का काम करते हुए अपने परिवार का पेट पाल रहा है। साथ ही वह लीला की पढ़ाई में पूर्ण सहयोग कर रहा है।  8 भाई बहन के परिवार में रहने वाली 25 साल की लीला दिव्यांग है और उनके पिता किसान है। लीला ने बीएससी में 65 प्रतिशत बने और अभी एम.ए हिंदी की पढ़ाई कर रही हैं। सरकारी नौकरी की तैयारी भी कर रही हैं। लीला का नारायण सेवा संस्थान द्वारा 7-8 पोलियों के ऑपरेशन कराने के बाद आज वह सामान्य जीवन का आनंद ले रही है ।  
2.  गुंजा कुमारी और जितेन्द्र कुमार
बिहार के एक छोटे से कस्बे विक्रमगंज में करीब 2010 में 10वी कक्षा में गुंजा कुमारी और जितेन्द्र कुमार की पहली मुलाकात ने उन दोनों को सदा के लिए एक कर दिया। 26 साल के दिव्यांग जितेन्द्र ने बी.ए की पढ़ाई की है और विक्रमगंज में एक मोबाइल रिपेयरिंग की दुकान चला रहा है। जितेन्द्र को 6 साल की उम्र में बुखार का इंजेक्शन लगने के बाद एक पैर में पोलियों हो गया था। जितेंद्र के रिश्तेदारों ने नारायण सेवा संस्थान के बारे में बताया नारायण सेवा संस्थान द्वारा उनका इलाज कराया गया।  गुंजा कुमारी 26 साल की है जिसे एक पैर में पोलियों है। उसने 10वीं पास किया है । गुंजा के पिता एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षक है । गुंजा और जितेन्द्र ने जातिगत भेद-भाव से उपर उठकर विवाह किया जा रहा है ।  
3.  हनुमान और सोनम यादव
मध्यप्रदेश के सिंगरौली के रहने वाले हनुमान और सोनम यादव की शादी तीन साल पहले तय हो गई। तब सब कुछ अच्छा चल रहा था कि अचानक एक दिन सोनम पांव फिसलने से कुएं में जा गिरी। उसके दोनों पैर खराब हो गए। सोनम का उपचार नारायण सेवा संस्थान में हुआ जहां उसके कैलिपर लगाया गया। इस बीच हनुमान गुजरात में एक फैक्ट्री में काम करने लगा। रिश्ते का खूबसूरत मुकाम तब आया जब सोनम का उपचार होने के बाद हनुमान ने एक बार फिर सोनम से विवाह का प्रस्ताव रखा। उसने कहा कि होनी को जो होना मंजूर था, हो गया, अब वह सदा के लिए साथ रहना चाहता है। सोनम ने नारायण सेवा संस्थान में रहते हुए सिलाई भी सीख ली है।
4.  वेसाराम कटारा और मारूति कटारा
वेसाराम और मारूति कटारा फलासिया के रहने वाले हैं। वेसाराम ने बताया कि कुछ समय तक उन्होंने कई शहरों में होटलों में काम किया, अब उन्होंने खुद का ही होटल खोल लिया है। वे चाहते हैं कि उनकी जीवन संगिनी पढ़ लिख कर सरकारी नौकरी करे। मारुति अभी बीएड द्वितीय वर्ष की छात्रा हैं। हीरालाल बताते हैं कि दोनों के परिवार की आपस में पहचान थी और दोनों ही एक-दूसरे को बचपन से जानते थे। परिजनों की पहल पर रिश्ता भी तय हो गया। शादी से पहले पढ़ाई और पुस्तकों से वे मारुति की मदद कर लिया करते थे।

 


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