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लोक परम्परा संस्कृति जीवित रखने का प्रयास - लाड़ी बनाओ प्रतियोगिता

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10 Jul 25
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लोक परम्परा संस्कृति जीवित रखने का प्रयास - लाड़ी बनाओ प्रतियोगिता

परम्परा
 


कोटा  झालावाड़ ,राउमावि मण्डावर में शिक्षिका प्रीतिमा पुलक (जिला अध्यक्ष संस्कार भारती, इकाई जिला झालावाड़) द्वारा लोक उत्सव लाड़ी बुआवनी ग्यारस के अवसर पर  विद्यार्थियों को कपड़े की गुड़िया(लाड़ी) बनाने का प्रशिक्षण देकर ,प्रतियोगिता करवाई गई जिसमें विद्यार्थियों ने  बहुत उत्साह से  भाग लिया वहीं समस्त शाला परिवार ने भी संस्कृति  संरक्षण के इस प्रयास में जोश के साथ  सहयोग किया । बच्चों में क्रियात्मकता लाने व लोक परम्पराओं को प्रोत्साहित करने  के लिए ऐसे आयोजन करवाना आज की महती  आवश्यकता है ।
     प्रीतिमा ने बताया कि पूरे देश में देवशयनी एकादशी को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन  सभी देव गण चार माह के लिए शयन के लिए चले जाते हैं अतः इन चार महीने शादी व शुभ कार्य वर्जित होते हैं पर हाडौती ,ढूंढाड़ सहित कई क्षेत्रों में इस दिन एक लोक उत्सव भी मनाया जाता है जिसे लाड़ी बोनी या लाड़ी बुहावणी कहा जाता है। लाड़ी बुआवनी के रूप में इस पर्व की  कोई लिखित या पौराणिक  जानकारी तो उपलब्ध नहीं है । इस दिन बालिकाएं कपड़े के गुड्डा - गुड़िया जिन्हें लाड़ा -  लाड़ी कहते हैं बना कर गाँव के पास स्थित बहते हुए जल वाले जलाशय में बहा कर आतीं हैं । वहाँ से गुड्डे को तो वापसय साथ में ले आती हैं पर लाड़ी को जल में बहा दिया जाता है ।उसके पीछे ग्रामीण मान्यता यही है कि इस दिन से चार माह के लिए  मांगलिक कार्य बंद हो जाते हैं तो घरों में बालिकाएं जो गुड्डे गुड़ियाओं की शादी करने का खेल खेलती हैं वो भी अपनी गुड़ियाओं को जल में बहा कर चार माह खेल में भी मांगलिक कार्य नहीं करें ।
    उन्होंने बताया कि परम्परा ये भी है कि गाँव के लड़के जल में कूद कर  उन लाड़ियों को लूट लाते हैं ।लोक मान्यता अनुसार जो लड़का   जितनी सुंदर लाड़ी लूटता है उसकी शादी उतनी ही सुंदर दुल्हन से होती है । वहीं लड़के बालिकाओं द्वारा लाई गई गुड़ धानी भी लूटते हैं ।
वर्तमान  में इस परम्परा का महत्व :
 आजकल परम्पराएं विलुप्त हो रही हैं बच्चे स्वयं गुड्डे -गुड़िया व अन्य खिलोने बनाने की कलाओं से दूर हो रहे हैं बाजार में उपलब्ध खिलोने खरीद कर लाते हैं जिससे उनकी मौलिक क्रियात्मकता खुल कर सामने नहीं आ पाती ।बच्चे  मोबाइल गेम से ज्यादा जुड़ रहे हैं ।बच्चों में क्रियात्मकता लाने व लोक परम्पराओं को प्रोत्साहित करने  के लिए ऐसे आयोजन करवाना आज की महती  आवश्यकता है ।
     जब इस तरह की पहल की जाती है बच्चें उसमें खूब रुचि दिखाते हैं ,मण्डावर विधालय में भी यही देखने को मिला  बच्चों ने खूब बढ़ चढ़ कर भाग लिया । बालिकाओं की मौलिक रचनात्मता इस दौरान देखने को मिली सबकी गुड़िया अलग - अलग तरीके से  सजी थी । घर में उपलब्ध सजावट की सामग्रियों का उपयोग बालिकाओं ने खूब कलात्मक ता के साथ किया था । साड़ी लहँगा चुन्नी लगाने के तरीकों में भी भिन्नता थी किसी किसी ने लाड़ी आधुनिक रूप दे छोटा सा पर्स  भी हाथ में दिया था ।तो किसी ने अर्धनारीश्वर के रूप में लाड़ी बनाई थी ।
इस प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर रही गुंजन कहार, द्वितीय पर अर्चना कहार, व तृतीय पर आयशा कहार रही जिन्हें  व्याख्याता सैयद बुरहान अली  , अपर्णा गौतम ,कुसुम यादव,नन्दकिशोर मेघवाल ,सीताराम जी ने सम्मानित किया गायत्री ,मीनाक्षी मीणा, विभा नरुका,अनिल सोनी  सहित मण्डावर विद्यालय के शिक्षक उपस्थित रहे  ।


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