नई दिल्ली। भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के “विकसित भारत 2047” के दृष्टिकोण को साकार करने और स्वास्थ्य संवर्धन के सम्बन्ध में अपनी सिफारिशें, विशेषज्ञता, मार्गदर्शन और विशेष सुझाव देने के लिए 26 सदस्यीय एक तकनीकी विशेषज्ञ समूह गठित किया गया है।
भारत सरकार के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक प्रो.डॉ अतुल गोयल की अध्यक्षता में गठित इस समूह में 26 सदस्यों को शामिल किया गया है।
भारत सरकार ने इस तकनीकी विशेषज्ञ समूह (टीईजी) का गठन देश में स्वास्थ्य संवर्धन के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के एनसीडी कार्यक्रम के खिलाफ जोखिम कारकों को कम करने के लिए विशिष्ट तकनीकी मुद्दों और क्षेत्रों पर विशेष विशेषज्ञता, मार्गदर्शन और सिफारिशें प्रदान करने के लिए किया है।राष्ट्रीय गैर-संचारी रोगों की रोकथाम और नियंत्रण कार्यक्रम (एनपी-एनसीडी) पहले कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीसीडीसीएस) के नाम से जाना जाता था।
डॉ स्मिता जोशी का सदस्य चुना जाना हैं अहम
भारत सरकार द्वारा इस समूह में बच्चों में मधुमेह रोग की रोकथाम और चिकित्सा निदान के लिए जन जागरूकता पैदा करने का कार्य कर रही गुजरात की डॉ स्मिता जोशी शामिल करना विशेष महत्वपूर्ण हैं क्योकि वे देश में गैर सरकारी क्षेत्र की एक मात्र ऐसी डॉक्टर है जो बच्चों में मधुमेह (टाइप 1 मधुमेह अथवा मेडिकल टर्म में इसे टाइप 1 जुवेनाइल डायबिटीज़ यानी किशोर मधुमेह भी कहा जाता है) की बीमारी को राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों में शामिल कराने के लिए अकेले अपने बलबूते पर अथक प्रयास कर रही है। उन्होंने अपनी डॉक्टर बहन शुक्ला रावल और चिकित्सक पुत्रों के साथ भारत में कश्मीर से कन्या कुमारी तथा अमरीका में ईस्ट कोस्ट से वेस्ट कोस्ट तक जनहित में अपने खर्चें से 7000 किमी से अधिक यात्रायें कर बच्चों में मधुमेह के सम्बन्ध में जन जागरूकता पैदा करने के लिए विशेष अभियान चलाया। उन्होंने अपने इस अभियान की शुरुआत 2019 राजस्थान से की थी। वे भारत सरकार से बच्चों की डायबिटीज़ के सम्बन्ध में एक नीति बनाने का अनवरत आग्रह कर रही है। डॉ स्मिता जोशी के अथक प्रयासों से पूरे देश में एक मात्र गुजरात राज्य सरकार ने आगे आकर अपने राज्य बजट में जुवेनाइल डायबिटीज़ यानी किशोर मधुमेह के लिए विशेष बजट रखा है जिससे जन जागरूकता अभियान के साथ ही इन्सुलिन के महँगे इंजेक्शन और दवाइयाँ आदि ख़रीदने के साथ ही पोषण से जुड़ी समस्याओं का भी समुचित निराकरण ही सके।
यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि वर्तमान में भारत में किसी भी राष्ट्रीय कार्यक्रम में अभी बच्चों में मधुमेह के रोग को शामिल नहीं किया गया है जिसकी वजह से चिकित्सा और नैदानिक सेवाओं के अभाव में लाखों बच्चे असमय अकाल मृत्यु का शिकार हो रहें हैं। आम लोग ही नहीं कतिपय डॉक्टर भी डायबिटीज़ को बड़ी उम्र के लोगों और विलासिता भोगने वाले लोगों का रोग मानते हैं । बच्चों में डायबिटीज़ की प्री और पोस्ट चिकित्सा और नैदानिक सेवाएँ उपलब्ध नहीं होने के कारण भारत में टाइप 1 जुवेनाइल डायबिटीज़ यानी किशोर मधुमेह का प्रसार बढ़ता ही जा रहा है। विशेष कर गरीब और मध्यम वर्ग इससे सबसे अधिक प्रभावित हो रहा हैं।धीरे- धीरे भारत बच्चों में डायबिटीज़ के मामलों में दुनिया की सबसे बड़ी राजधानी बनता जा रहा हैं।
उल्लेखनीय है कि वर्तमान में बच्चों में मधुमेह की दृष्टि से विश्व में भारत सबसे आगे है और इस मामले में अमरीका दूसरे नम्बर पर है।