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यादों के झरोखे से ...एक बानगी 

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23 Mar 23
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यादों के झरोखे से ...एक बानगी 

अपने समय को आत्मसात् करता हुआ व्यक्ति जब उन पलों को अपनी यादों में संजोये रखकर समय-समय पर स्वयं ही उनसे बतियाता है तो अनुभूत सन्दर्भों का एक वितान उभर जाता है। यही वितान उसकी स्मृतियो को विस्तार प्रदान करता हुआ व्यक्ति को वैचारिक रूप से सम्बल प्रदान करता है, उसे समय-समय पर सावचेत करता है और आगे बढ़ने की प्रेरणात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
इन्हीं सन्दर्भों को अपनी जीवन-यात्रा में अनुभूत कर कवि किशनलाल वर्मा ने यादों के झरोखों से अपने समय को देखते हुए उत्पन्न भावों को शब्द प्रदान कर अविस्मरणीय दस्तावेज़ के रूप में पोथी का स्वरूप प्रदान किया है " यादों के झरोखे से " में।
"मोतीड़ा और खोबड़िया में जंग" से लेकर "चूरी के लड्डू" तक की ये अविस्मृत यादें मात्र किशन जी के ही भाव-विचारों के आयाम नहीं है वरन् उनके चतुर्दिक परिवेश और उसमें घटित सन्दर्भों की वह पड़ताल है जिसमें देश, काल और परिस्थिति को देखा और परखा जा सकता है।
अन्ततः यही कि कवि किशनलाल जी वर्मा के इस " यादों के झरोखे " से अपने समय के सामाजिक और सांस्कृतिक सन्दर्भों से साक्षात्कार तो होता ही है साथ ही जीवन के लिए संघर्ष की स्थितयों और किये गये प्रयासों का दृष्टान्त भी सुनाई देता है। साक्षात्कार और दृष्टान्त के इसी समन्वय का यह जीवन्त सन्दर्भ भाव और विचारों के साथ निरन्तर गतिशील है। इस गतिशीलता में अभिव्यक्ति का जो स्वरूप उभरा है वह इतना सरल और सहज है कि निजता के होते हुए भी पाठक को वह अपने साथ यात्रा करवाने लगता है। यात्रा का यही उजास 'यादों के झरोखे' की अनुभूत बयार है जो प्रत्येक को सराबोर करती है। पुस्तक का प्रकाशन  ओम पब्लिशिंग कम्पनी, नवीन शहादरा, दिल्ली द्वारा किया गया है।


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