GMCH STORIES

साहित्यिक आकाश के देदीप्यमान नक्षत्र विजय जोशी............

( Read 1845 Times)

30 Nov 22
Share |
Print This Page

डॉ.प्रभात कुमार सिंघल

साहित्यिक आकाश के देदीप्यमान नक्षत्र विजय जोशी............

कोटा | " समय की नब्ज़ को पकड़ कर अपनी सजग आँखों, शोधपरक दृष्टि और अपनी संचेतना से अपने आस-पास को देखें, परखें, समझें, अनुभूत करें और फिर शब्दों के साथ यात्रा करते हुए, अभिव्यक्त कर रचना प्रक्रिया से आत्मसात होते हुए आगे बढ़ते रहें"  साहित्य के क्षेत्र में आगे आने वाले नवोदित युवाओं को विजय जोशी के इस संदेश के साथ हम एक दृष्टि डालते हैं इनकी साहित्य सृजनशीलता पर।
 कथाकार, कहानीकार और समीक्षक कोटा निवासी विजय जोशी साहित्यिक आकाश के ऐसे देदीप्यमान नक्षत्र हैं जिन्होंने कहानियों को अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। अहरनिश रचनाधर्मिता से साहित्य की इस विधा में आप एक मजबूत हस्ताक्षर के रूप में उभर कर सामने आए हैं। इसका हालिया प्रमाण आपको 27 नवंबर को  दिल्ली में राष्ट्रीय "मुंशी प्रेम चंद कथाकार सम्मान - 2022" से सम्मानित किया जाना है। यह सम्मान इनके कथा-संग्रह -" सुलगता मौन " के लिए प्रदान किया गया है।  कहानियों के  संग्रह पर इस सातवें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित होने पर इनकी साहित्यिक प्रतिभा तो देश में उजागर हुई ही साथ ही इससे हाड़ोती और राजस्थान का नाम देश में रोशन हुआ है। 
** पुरस्कार प्राप्त कर लौटने पर जब इनसे इनके साहित्य सृजन पर चर्चा की तो इन्होंने बताया " जीवन में अनुभूत क्षणों में से मन को झकझोरने वाला पल जब विचार के साथ रचना बनने को प्रेरित करता है तो मूर्तता एवं अमूर्तता का साकार रूप कहानी के माध्यम से अधिक आसानी से अभिव्यक्ति पाता है। कहानी जीवन का वह स्पन्दन है जो हृदय में गहराई तक उतर जाता है। इसीलिए कहानी विधा को मैंने अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया।" आगे वह बताते हैं " किसी भी रचनाकार के रचित साहित्य में सामाजिक सरोकारों से जुड़े संदर्भो का समावेश होता है । यहाँ से प्राप्त अनुभव उसके सृजन में उदात्तता के साथ परिलक्षित होता है।"
** विजय के साहित्य - सृजन की साहित्यिक यात्रा विद्यार्थी जीवन से ही आज से 42 वर्ष पूर्व 1985 से शुरू हो गई जब इन्होंने विज्ञान और पर्यावरण संबंधी आलेख और कहानियां लिखना शुरू किया। इनकी पर्यावरण आधारित  " टीस" पहली कहानी बनी जो आकाशवाणी केंद्र कोटा से प्रसारित हुई। वह दिन इनकी खुशी का सबसे बड़ा दिन था जब पहली सफलता का स्वाद चखा। पर्यावरण संबंधी इनका  प्रथम आलेख ‘‘कटते हुए वृक्ष: गहराता हुआ प्रदूषण’’ एक अखबार में प्रकाशित होना आपके स्पन्दन लेखन का आगाज बन गया। धीरे - धीरे सामाजिक परिवेश आदि पर भी कहानियां लिखते रहे और समाचार पत्रों में स्थान मिलने से उत्साह बढ़ता गया। 
** जब राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशन सहयोग के लिए पांडुलिपियां आमंत्रित की गई तब इन्होंने अपनी 11 कहानियों के संग्रह की पांडुलिपि भेज दी। प्रकाशन सहयोग  मिला और प्रथम कथा संग्रह ‘ख़ामोश गलियारे’, नटराज प्रकाशन दिल्ली से 1996 में प्रकाशित हुआ। इस कृति का साहित्यिक जगत में पुरजोर स्वागत होने से इनका हौंसला बढ़ा तो बढ़ता गया और फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। यह कृति इनके कथा लेखन के लिए आधार बनी और अभिव्यक्ति की धारा कहानियों के माध्यम से प्रवाहित होती रही। आपका प्रथम राजस्थानी कहानी संग्रह ‘‘मंदर में एक दन’’  का प्रकाशन 1999 में राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर के आर्थिक सहयोग से, विकास प्रकाशन, बीकानेर से हुआ। आपका हिन्दी एवं राजस्थानी दोनों भाषाओं पर समान अधिकार है और दोनों ही भाषाओं में कहानियां लिखते हैं।
** प्रेरक कृतियां : अपनी दो दशक के समय की साहित्यिक यात्रा में इनके ख़ामोश गलियारे के साथ पांच हिंदी कहानी संग्रह प्रकाशित किए जा चुके हैं। इन संग्रहों में - "केनवास के परे" , "कुहासे का सफ़र" , "बिंधे हुए रिश्ते और "सुलगता मौन" शामिल हैं। दो हिंदी उपन्यास - "चीख़ते चौबारे" और "रिसते हुए रिश्ते ने" भी इन्हें नई पहचान दी। आपने "कहानीकार प्रहलाद सिंह राठौड़ : कथ्य एवँ शिल्प", "अपने समय की बानगी : निकष पर" और "समीक्षा के पथ पर" नाम से तीन समीक्षा ग्रंथ भी लिखे हैं। दो राजस्थानी कहानी संग्रह - "मंदर में एक दन" और "आसार", साहित्य अकादमी दिल्ली से प्रकाशित एक राजस्थानी अनुवाद- "पुरवा की उडीक", एक राजस्थानी समीक्षा ग्रन्थ - "आखर निरख : पोथी परख" और, एक राजस्थानी गद्य-विविधा - "भावाँ की रमझोळ" आपकी साहित्य सृजन की अपनी ऐसी पूंजी है जिसे समय - समय पर न केवल इन्हें सम्मान दिलाया वरन शोधकर्ताओं ने शोध कर इनकी उपयोगिता को कई गुणा सिद्ध किया है।
** कहानीकार पर शोध : किसी भी साहित्यकार और उसकी कृतियों पर शोध किया जाना खुद उसकी  सफलता की कहानी कहता है। वर्ष 2011 में बीना नेगी  ने "विजय जोशी के कथा साहित्य में सामाजिक चेतना के विविध आयाम एवं शिल्प विधान’’ पर कोटा विश्वविद्यालय कोटा, से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। वर्ष 2009 में पूनम नामा ने  ‘‘ विजय जोशी का सृजनात्मक व्यक्तित्व एवं कृतित्व’’ विषय पर कोटा विश्वविद्यालय से एम.फिल किया। इसी प्रकार वर्ष 2010 -11 में रेखा शर्मा ने इनकी कृति पर आधारित " चीखते चैबारे में मनोविज्ञान एवं शिल्प" विषय पर विनायका मिशन विश्वविद्यालय, तमिलनाडू  से एम.फिल. किया। इसी वर्ष में इनके कहानी संग्रह "ख़ामोश गलियारे का कथ्य एवं शिल्पगत विवेचन “  विषय पर किरण अलन्से ने विक्रम विश्विद्यालय, उज्जैन, मध्यप्रदेश से एम.फिल. किया। वर्तमान में भी दो शोधार्थी  इनके कथा साहित्य पर  'मनोवैज्ञानिक विश्लेषण' तथा 'कथ्य एवं शिल्पगत अनुशीलन' विषयों पर पीएच.डी. कर रहे हैं।
** समीक्षा ग्रंथ :  विजय के साहित्य पर शोध कार्य के साथ -साथ विद्वान समीक्षकों द्वारा मूल्यांकन कर तीन समीक्षा-ग्रंथों का प्रकाशन इनकी साहित्य साधना की जीवंतता का प्रबल प्रमाण है। ‘‘संवेदनाओं का कथा संसार और विजय जोशी’’ डाॅ. प्रेमचन्द विजयवर्गीय एवं प्रो. राधेश्याम मेहर ने संयुक्त रूप से 2009 में, ‘‘कथा कलशों के शिल्पकार: विजय जोशी " प्रो. राधेश्याम मेहर एवं प्रो. अनिता वर्मा ’’ ने संयुक्त रूप से 2007 में एवं ‘‘ विजय जोशी के कथा साहित्य का शैल्पिक सौन्दर्य’’  डाॅ. गीता सक्सेना ने 2008 में समीक्षा ग्रंथों का प्रकाशन किया।
** पुरस्कार - सम्मान : जितना सशक्त और समाज को दृष्टि प्रदान करने वाला भावपूर्ण आपका साहित्य है उसके सामने में अब तक मिले करीब दो दर्जन पुरस्कार और सम्मान भी कुछ नहीं हैं। कोटा और हाड़ोती से बाहर राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश राज्यों में भी आपकी साहित्यिक प्रतिभा को विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जाना आपके मूर्धन्य साहित्यकार होने का भान कराते हैं। हम केवल इनके राष्ट्रीय सम्मानों की ही चर्चा करें तो पं. प्रतापनारायण मिश्र स्मृति कथा विधा 'युवा साहित्यकार सम्मान-2002, लखनऊ, उत्तर प्रदेश, हिन्दी प्रतिष्ठा सम्मान -2003, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश,
श्रीमती राधा सिंह स्मृति पुरस्कार- 2003, वाराणसी, उत्तरप्रदेश, अखिल भारतीय धर्मवीर भारती स्मृति 'हिन्दी भूषण अलंकरण' -2002, जबलपुर, मध्यप्रदेश, श्यामनारायण विजयवर्गीय सम्मान -2004, गुना, मध्यप्रदेश और राष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान- 'कलम - कलाधार सम्मान' - 2011, उदयपुर, राजस्थान प्रमुख हैं।
** परिचय : आपका जन्म  झालावाड़ में रमेश वारिद के परिवार में एक जनवरी 1963 को हुआ। आपकी जननी प्रेम वारिद धर्मपरायण और वात्सल्य की प्रतिमूर्ति हैं। आपने  विज्ञान (वनस्पति शास्त्र), साहित्य (हिन्दी) और शिक्षा (निर्देशन अर परामर्श)  में अधिस्नातक तथा पत्रकारिता-जनसंचार में स्नातक शिक्षा प्राप्त की। आप शिक्षा विभाग में जीव विज्ञान विषय में अध्यापन कार्य कर रहे हैं। बचपन से आपको कला-संगीत में बाँसुरी, ढोलक एवं तबला वादन करने और चित्रकारी करने की अभिरुचियाँ रही हैं। आगे चलकर यही अभिरुचि कला सन्दर्भित आलेख तथा कला- समीक्षा की ओर अग्रसर हुई। आपके प्रकृति चित्रण, राजस्थानी परम्परागत शैलियों के साथ आधुनिक शैली की कला-कृतियाँ प्रदर्शित  होती रहीं हैं।
 


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories : Headlines
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like