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आने वाले वर्षों में होने वाले विधानसभा और आम चुनाव क्या गुल खिलायेंगे?

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17 Sep 21
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आने वाले वर्षों में होने वाले विधानसभा और आम चुनाव क्या गुल खिलायेंगे?

नई दिल्ली। देश में अगले दो वर्ष 2022 और 2023 विभिन्न राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के  गर्मागर्म माहौल में गुजरेंगे और उसके बाद वर्ष 2024 में लोकसभा के आम चुनाव भारत में नई सरकार के गठन का मार्ग प्रशस्त करेंगे। 
विभिन्न प्रदेशों में होने वाले इन विधानसभा चुनावों में सबसे अधिक नज़रें उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्रीय गृह मन्त्री अमित शाह के गृह प्रदेश गुजरात के चुनाव परिणामों पर रहेगी। 
इन चुनावों के सम्बन्ध में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास पहुँची आईबी,अन्य ख़ुफ़िया एजेंसियों और राजनीतिक एवं ग़ैर राजनीतिक इकाइयों की रिपोर्ट्स के साथ ही ममता बनर्जी की पश्चिम बंगाल में भाजपा पर ऐतिहासिक जीत के बाद ग़ैर भाजपा दलों को एक मंच पर लाने की कोशिशों और मृत प्रायः कांग्रेस में राहुल एवं प्रियंका गांधी तथा कांग्रेस शासित मुख्यमंत्रियों द्वारा जान फूंकने के प्रयासों और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के मुफ़्त बिजली, पानी और अन्य जनहित ऐजेंडे को चुनावी प्रदेशों में भी लागू करने की घोषणा ने केन्द्र की भाजपानीत एनडीए सरकार की नींद उड़ा रखी है। 
एक अंग्रेज़ी पत्रिका द्वारा करवाए गए सर्वेक्षण के हवाले से बताया गया है कि कोविड काल खण्ड के शुरू होने से पूर्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता
66 प्रतिशत थी जोकि पिछले क़रीब दो वर्षों में गिर कर 24 प्रतिशत हो गई है। लोकप्रियता के ग्राफ़ में तीन गुणा यह गिरावट भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की नज़र में चिन्ता का सबक़ बन रही है।
कोविड-19 प्रबन्धन में रही कतिपय कमियों और पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी के हाथों मिली करारी हार से भाजपा आहत है । मोदी सरकार ने आम अवाम में अपनी छवि को सुधारने के लिए गंभीर प्रयास भी शुरू कर दिए है। 
इस कड़ी में सबसे पहले एनडीए-2 सरकार के बहु प्रतीक्षित केन्द्रीय मंत्रिपरिषद के पुनर्गठन और पहले जंबों विस्तार में इसकी झलक देखने को मिली है। हालाँकि इस परिवर्तन में कुछ अच्छी छवि के मन्त्रियों को बलि का बकरा बनाने की आलोचना भी हुई लेकिन केन्द्र में मोदी-शाह की ताक़त और आभा मण्डल के आगे सब लाचार ही दिख रहे है। कुछ लोगों से दबी ज़ुबान में यह कहते भी सुना जा रहा है कि मोदी मंत्रिपरिषद में राजनाथ सिंह अमित शाह और नितिन गड़करी आदि कुछ वरिष्ठ मंत्रियों के अलावा अन्य का कोई ख़ास वजूद नही हैं और पार्टी की सत्ता एवं संगठन में शनेः शनेः शनेः अटल-आडवाणी युग के लोग सुनियोजित ढंग से राजनीति की पृष्टभूमि में धकेले जा रहे है।
केन्द्र सरकार में आमूलचूल परिवर्तन के साथ ही प्रदेशों में भी इसी तरह के परिवर्तन और प्रयोगों का सिलसिला लागू किया जा रहा है। हाल ही गुजरात में विजय रुपाणी के स्थान पर एक अपरिचित नाम भूपेन्द्र पटेल को मुख्यमंत्री बना सभी को चौंका दिया है। इसके पहले उत्तराखंड,असम, कर्नाटक,महाराष्ट्र,गोवा,उत्तर प्रदेश , हरियाणा, हिमाचल प्रदेश आदि राज्यों में स्थापित नेताओं की जगह नए चेहरों को आज़माया गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को प्रचलित धारा के विपरीत फ़ैसले लेने के लिए जाना जाता है और उनके कई निर्णय सटीक भी रहें हैं। यदि यह सिलसिला अनवरत जारी रहा तो राजनीतिक जानकारों के अनुसार मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमल नाथ सरकार को पदचुत्य करने के बाद तीसरी बार मुख्यमंत्री बनायें गए शिव राज सिंह चौहान के स्थान पर भी कोई नया चेहरा दिखाई दे सकता है। इसी प्रकार जिन प्रदेशों में बीजेपी की सरकारें नहीं है वहाँ भी स्थापित नेताओं की जगह नये नेतृत्व को लाने के प्रयास किए जा रहे है। राजस्थान जैसे बड़े प्रदेश में पहली बार महिला मुख्यमंत्री बन कर विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भाजपा को रिकार्ड तोड़ विजय दिलाने वाली वसुन्धरा राजे को साइड लाइन किया हुआ है। राजनीतिक पण्डितों के अनुसार वसुन्धरा राजे और शिवराज चौहान भी अटल-आडवाणी युग के प्रमुख सारथी रहें है। हालाँकि  वसुन्धरा की माता और ग्वालियर की राजमाता विजय राजे सिन्धिया के योगदान को पार्टी और आरएसएस द्वारा आज भी विस्मृत नही किया जाता है।

वैसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके विश्वास पात्र गृह मन्त्री अमित शाह यह भलीभाँति जानते है कि वर्ष 2022और 2023  में विभिन्न राज्यों में होने वाले विधानसभाओं के चुनाव वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा आम चुनाव के पहले के सेमी फाइनल हैं। इनके चुनाव परिणाम अगले आम चुनाव की दिशा और दशा तय करने वाले होंगे। विशेष कर देश में सबसे अधिक आबादी और लोकसभा सीटों वाला उत्तर प्रदेश एवं मोदी-शाह का अपना गृह प्रदेश गुजरात के चुनाव परिणाम बहुत बड़ा राजनीतिक सन्देश देने वाले होंगे । 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कार्यशेली और राजनीतिक महत्वकांक्षाओं से परिचित लोग जानते है कि उनके कई फैसले स्वयं के होते है और वे इसमें नम्बर दो अथवा तीन नम्बर के साथियों  तथा शीर्ष मार्गदर्शी संस्था आरएसएस के साथ सौ फ़ीसदी सहमति रखें यह जरुरी नही है।मोदी का अपना एक अलग और अनूठा विजन एवं सौच है जिसमें कुछ अलग कर गुजरने का जज़्बा शामिल है।
मोदी की इसी सौच के कारण गुजरात में लोह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की भव्य प्रतिमा की स्थापना के साथ ही आज़ादी के स्वर्ण जयन्ती वर्ष में मनायें जा रहें अमृत महोत्सव में सेंट्रल विस्टा जैसी अहम परियोजना के अन्तर्गत ग़ुलामी की निशानियों को पृष्टभूमि में डालते हुए नए संसद भवन के निर्माण और अन्य सम्बद्ध कार्यों को युद्ध स्तर पर किया जा रहा हैं। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद प्रशस्त हुए अयोद्धा में भगवान राम के भव्य मन्दिर की तामीर भी एक नया इतिहास रचने जा रही है।

आने वाले वर्षों में होने वाले विधानसभा और लोकसभा के चुनाव बढ़ती महंगाई, बेरोज़गारी  कोरोना महामारी से उत्पन हुई विभिन्न समस्याओं और अन्य कई कतिपय कारणों से निश्चित रूप से केन्द्र में सत्ताधारी दल भाजपा के लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नही होंगे लेकिन राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार देश के अंदर और बाहर उत्पन्न परिस्थितियों विशेष कर अफगानिस्तान  की घटनाओं , भारत और पाकिस्तान की सीमाओं पर आये दिन होने वाले संघर्ष तथा हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण के साथ ही देश में बहुत ही कमजोर  विपक्ष और भाजपा का अन्य कोई विकल्प नही होने के कारण अगली एक और पारी में नरेन्द्र मोदी को ही देश का नेतृत्व करते देखना कोई अचरज भरी बात नही होंगी।
 


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