किसी शास्त्रीय कला को किसी नयी जगह स्थापित करना कोई आसान खेल नहीं है |
किन्तु मन तथा उद्देश्य साफ़ हो तो कोई बात असंभव भी नहीं है |
2020 में कोलकाता से मेवाड़ में आये इस प्रतिभाशाली
युवा कलाकार ने अपनी गुरु शर्मिला बिस्वास से ओडिसी शास्त्रीय नृत्य का कई वर्षों का
विधिवत प्रशिक्षण प्राप्त किया |
अपने गुरु के नृत्य दल में देश भर में कार्यक्रम देकर अच्छा अनुभव लिया
और उनका आशीर्वाद लेकर इस कला का भविष्य मेवाड़ में ढूंढा |
उदयपुर के कला पारखियों,प्रोत्साहन दाताओं और जिज्ञासुओं के
सहयोग से युवा कलाकार कृष्णेंदु ने नृत्योर्मी स्कूल ऑफ़ ओडिसी की शुरुवात की |
मेवाड़ राजघराने में बालंगीर ,ओडिशा से आईं महारानी निवृति कुमारी जी मेवाड़
(जो कि स्वंय कलापारखी हैं,) ने युवा
कलाकार कृष्णेंदु साहा को और ओडिसी शास्त्रीय नृत्य को विशेष रूप से प्रोत्साहित
किया ,यहाँ तक कि उनकी दोनों पुत्रियों को यह शास्त्रीय नृत्य सीखने को प्रेरित किया |
मेवाड़ से मिले मान सम्मान और प्यार के चलते युवा कलाकार कृष्णेंदु युवा गुरु
के रूप में अपने कर्तव्य का ईमानदारी से निर्वहन कर रहे हैं |
देखते देखते उनकी संस्था नृत्योर्मी ने उदयपुर में तीसरा साल भी पूरा कर लिया |
10 मई की शाम शिल्पग्राम,उदयपुर के दर्पण प्रेक्षागृह में एक गरिमामय
समारोह में संस्था यह तीसरा वार्षिकोत्सव “ नृत्याकृति ” के नाम से मनाया गया |
एक ओर भारत पाक के युद्ध विराम का सुकून भरा समाचार मिला और
दूसरी ओर मंच पर शास्त्रीय नृत्य ओडिसी की
शानदार प्रस्तुतियाँ देखने का अवसर मिला |
सात वर्ष से चालीस वर्ष के बीच की नृत्यांगनाओं ने अपनी नृत्य प्रतिभा
से प्रेक्षकों का मन जीत लिया | प्रस्तुतियों के उच्च स्तर को देखकर यह अंदाज़
लगाना कठिन था कि ये प्रस्तुतियाँ नृत्योर्मी ओडिसी प्रशिक्षण संस्था के बाल और
युवा शिष्याओं की हैं | ओडिसी जैसी शालीन नृत्य शैली को आत्मसात करते हुए
अपनी प्रतिभा का शानदार प्रदर्शन किया | इस उत्सव में उपस्थित रहकर मुझे बड़े
आनंद और गर्व का अनुभव मिला |
दर्पण प्रेक्षागृह के द्वार से मंच तक फूलों की सुन्दर सजावट से लेकर मंच के
एक ओर भगवान जगान्नाथ के विग्रह की सुन्दर स्थापना ,उनके आगे प्रज्वलित दीप
( समई) और सुन्दर पुष्प, प्रसाद ने वातावरण को आध्यात्मिक बना दिया था
ओडिसी नृत्य के कार्यक्रम का आगाज़ रामाष्टकम से हुआ जिसमें स्वयं
कृष्णेंदु साहा ने अपनी उत्कृष्ट भाव भंगिमाओं से मर्यादा पुरुषोत्तम
भगवान श्री राम के जन्म से लेकर उनके लंका विजय तक के प्रसंगों का
मनोहारी का वर्णन किया |
नृत्योर्मी की बाल और किशोर शिष्याओं ने स्वागतम कृष्णा
बहुत ही मनोरम प्रस्तुतियों से दर्शकों को अपना सा कर लिया |
समूह में 15 बच्चियों ने एक दूसरे के साथ तारतम्य बनाते हुए स्वयं की
और सामूहिक मुद्राएँ बनते हुए शानदार नृत्य किया | उनकी ताल और
लय नयनाभिराम थी | लगता था कि शिष्याओं ने एक- एक मुद्रा
पर घंटों रियाज़ किया है |
अगली युगल प्रस्तुति “बसंत पल्लवी ” थी | राग बसंत पर आधारित इसकी
नृत्य संरचना पद्मभूषण गुरु केलु चरण महापात्र की थी और संगीत दिया था
पंडित भुबनेश्वर मिश्रा ने | विद्यार्थियों ने अपनी सुन्दर भावभंगिमाओं से बताया
कि बसंत ऋतु में सृष्टि का कण कण कैसे खिल उठता है | इसे पुणे से ओन लाइन
शिक्षा लेने वाली बहनों
गौरी और हल्द्नी ने पेश किया | अगली प्रस्तुति राग भैरव पल्लवी में
युवा शिष्याओं ने लय, ताल के साथ शारीरिक भाव भंगिमाओं का मोहक
प्रदर्शन किया | उनके नृत्य में गंभीर और शांतिपूर्ण अंतरमुखता के साथ भक्ति
का शानदार संगम दिखा |
अगली प्रस्तुति “राधा कृष्ण” में स्वयं कृष्णेंदु साहा ने दर्शकों को
अपने अप्रतिम अभिनय से
रसविभोर कर दिया | सुन्दर काव्य रचना को एक कथा की भांति
पेश करते हुए उन्होंने बताया कि
कैसे श्री राधा और कृष्ण,दो शरीर एक प्राण हो जाते हैँ. |
मोक्ष मण्डलम नामक अंतिम प्रस्तुति में गुरु कृष्णेंदु साहा
के साथ उनकी वरिष्ठ शिष्या सृष्टि, रुद्राक्षी और केतकी ने
आध्यात्म का सुन्दर वातावरण बनाया जिसमें विलीन होकर
दर्शकों ने भरपूर आशीर्वाद दिया | सभी कलाकार जब मंच पर
आशीर्वाद लेने आये तब दर्शकों ने खड़े होकर उनका अभिवादन किया |
किसी कला के प्रति समर्पण भाव और सतत सीखने सिखाने की
प्रवृति वाले युवा गुरु कृष्णेंदु साहा का भविष्य
काफी उज्वल है | मेवाड़ के लिए भी यह सुखद संयोग है कि
उनके जैसा कर्मठ और संवेदंशील कलाकार अपने
नवाचारों के साथ इस कला की सेवा कर रहा है |
संक्षेप में कहें तो मेवाड़ में शास्त्रीय ओडिसी नृत्य का सूर्योदय हो चुका है |