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कपास की खेती मे बदलते प्रतिमानों पर मंथन में जुटे 17 राज्यों के वैज्ञानिक

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08 Aug 22
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कपास की खेती मे बदलते प्रतिमानों पर मंथन में जुटे 17 राज्यों के वैज्ञानिक

 महाराणा प्रताप कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर  में कॉटन रिसर्च एंड डेवलपमेंट एसोसिएशन (सीआरडीए) एवं महाराणा प्रताप कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में "कपास की खेती मे बदलते प्रतिमान" विषय पर उदयपुर  में 08-10 अगस्त, 2022 के दौरान तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ सोमवार 8 अगस्त को राजस्थान कृषि महाविद्यालय के सभागार में हुआ l

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ एस एल महता, पूर्व कुलपति "महाराणा प्रताप कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय एवं पूर्व उप महानिदेशक कृषि शिक्षा ने अपने भाषण में बताया की हमारा देश कपास उत्पादन में विश्व में पहला स्थान रखता है परन्तु उत्पादकता की दृष्टि से हम अनेक देशो से बहुत पीछे हैं. हमारे देश में कपास की उत्पादकता बी टी कपास आने के बाद से औसतन 450 से 600 कि.ग्रा.प्रति हेक्टेयर हैl पहले देशी प्रजातियों से इसका उत्पादन 90 कि.ग्रा.प्रति है ही थाl इसकी तुलना में चीन में 1700, ब्राजील में 1500 और अमेरिका में 950 कि.ग्रा.प्रति है. कपास का उत्पादन होता हैl वैज्ञानिको के लिए वर्तमान उत्पादकता को 500 किलो से 700 किलो तक ले जाना एक प्रमुख चुनौती है। इसमें वर्षा आधारित खेती में कपास की उत्पादकता बढ़ाने पर मुख्यतया ध्यान देने की आवश्यकता है। इसके लिए जल संरक्षण तथा ट्रिप आधारित खेती को किसानों तक पहुॅचाने की आवश्यकता है। उन्होंने कपास में सिंचाई क्षेत्र बढ़ाने, ड्रिप इरीगेशन, फर्टिगेशन, कीट व्याधियों के समुचित प्रबंध, क्षेत्र विशेष के लिए उचित प्रजातियों के चयन और जैव प्रोध्योगिकी पर और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता पर भी बल दिया l समन्वित जल कीट तथा रोग प्रबन्धन कपास की अधिक उपज के मुख्य चाबियां है साथ ही किस्पर केस -9 जीन बदलाव पद्वति कपास की आवश्यकता में आने वाले समय में आने वाले समय में क्रान्ति ला सकता है। अतः कपास अनुसंधान में देश में प्रभावी बदलाव लाने की आवश्यकता है। देश का प्रत्येक कपास प्रजनक को जीन बदलाव में सघन प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। जीन बदलाव तकनीक से उपज एवं आवश्यक गुणवत्ता वली कपास प्राप्त की जा सकती है। पूरी तरह से सूखा रोधी कपास की किस्मों पर अनुसंधान की सख्त आवश्यकता है। कपास के अनुसंधान में बदलाव हेतु रोडमेप बनाकर प्रमुख वैज्ञानिकों को चिन्हित कर कार्य किया जाना चाहिए।  

 कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ नरेंद्र सिंह राठौड़ कुलपति एम पी यु ए टी ने बताया की  भारतीय कृषि, औद्योगिक विकास, रोजगार सृजन और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका के साथ कपास वैश्विक महत्व की सबसे प्राचीन और बहुत महत्वपूर्ण व्यावसायिक फसल है।  कपास  घरेलू खपत के साथ ही दुनिया भर में लगभग 111 देशों में निर्यात की जाती है और इसलिए इसे "फाइबर का राजा" या "सफेद सोना" भी कहा जाता है।  लाखों लोग अपनी आजीविका के लिए कपास की खेती, व्यापार, परिवहन, जुताई और प्रसंस्करण पर निर्भर हैं।  भारत दुनिया का एकमात्र देश है जो कपास की सभी चार प्रजातियों को उनके संकर संयोजनों के साथ विशाल कृषि-जलवायु स्थितियों में उगा रहा है। वर्तमान में इसका उत्पादन लगभग 36 मि बेल हैl  उन्होंने बताया की बी टी कॉटन उगाने से देश के कपास उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है तथा कीट नाशको के प्रयोग में 30 -35 प्रतिशत कमी आई हैl राजस्थान में श्री गंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर के कुछ भाग, भीलवाड़ा और बांसवाडा में कपास बहुतायत से उगाई जाती है जिसका रकबा बढ़ाये जाने की जरुरत है l उन्होंने बताया की कोरोना के बाद हमारे झाडोल क्षेत्र के किसानो का भी कपास की खेती की ओर रुझान बढ़ा है l हमें आर्टिफिशियल इन्टेलीजेन्स का कपास खेती में उपयोग से प्रति इकाई आदान से अधिक उत्पादकता प्राप्त करनी चाहिए। हमारे देश से कपास का निर्यात बढ़ रहा है लेकिन गुणवत्ता एवं लम्बे रेशे वाली कपास का उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए।


 

कपास में जलवायु परिवर्तन से कपास के उत्पादन एवं गुणवत्ता पर विपरित प्रभाव पड़ा है अतः बी टी कपास के साथ-साथ जलवायु लचित उत्पादन तकनीकों पर फोकरस करना आवश्यक है।

आयोजन समिति अध्यक्ष एवं अनुसंधान निदेशक डॉ एस के शर्मा ने स्वागत उद्बोधन दिया एवं  बताया कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों बाजारों में कमोडिटी की बढ़ती मांग के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए, उपयुक्त खेती प्रौद्योगिकियों के साथ कपास की नई किस्मों और संकरों के विकास को प्रोत्साहन देना अनिवार्य है।  हम आशा करते हैं कि यह संगोष्ठी कपास अनुसंधान, विकास, खेती, कीटनाशक, बीज और कपड़ा उद्योग और कृषि आधारित उद्योगों के अन्य संबंधित निर्माताओं से जुड़े सभी लोगों के लिए फायदेमंद होगी।

 

डॉ.एम एस चौहन, सचिव सीआरडीए ने बताया कि राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्देश्य सार्वजनिक क्षेत्र और निजी दोनों क्षेत्रों के कृषि वैज्ञानिकों, विस्तार कार्यकर्ताओं और नीति निर्माताओं को कपास अनुसंधान और उत्पादन प्रौद्योगिकियों से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने के लिए अपने अनुभव और विशेषज्ञता साझा करने के लिए एक मंच प्रदान करना  है ताकि कपास के बदलते प्रतिमानो के साथ बेहतर कदम उठाये जा सकें l  आयोजन सचिव डॉ डी पी सैनी ने धन्यवाद ज्ञापित किया एवं बताया की देश के प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं, शिक्षकों, छात्रों, कृषि पेशेवरों, व्यापारियों, हितधारकों और अन्य उद्यमियों के लिये आयोजित की जा रही इस तीन दिवसीय संगोष्ठी में 12 तकनीकी सत्र आयोजित किए जाएंगे जिसमें आमंत्रित व्याख्यान, लीड लेक्चर, शोध पत्रों का वाचन, तकनीकी सत्र एवं पोस्टर शेषन भी सम्मिलित होंगेl  संगोष्ठी में 17 राज्यों के एवं 2 केंद्र शासित प्रदेशों एवं एक प्रतिभागी अमेरिका से तथा लगभग 250 अधिकारी ओर वैज्ञानिक भाग ले रहे हैंl उद्घाटन सत्र में डॉ वी टी सुन्दरामुर्ती, डॉ बी एल जलाली, डॉ बी एम खादी,  डॉ एल एस रन्धावा, डॉ डी एस नेहरा एवं स्व. डॉ पी पी जैन को  लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड प्रदान किये गए साथ ही 5 वैज्ञानिको को प्रोफेशनल एक्सिलेंस अवार्ड, 3 पब्लिक प्राइवेट अवार्ड, और 6 निजी प्रायोजकों को अवार्ड प्रदान किये गये l

संगोष्ठी के पहले दिन 4 तकनीकी सत्रों में 17 अनुसन्धान पत्रों का  वचन, पोस्टर सत्र और ब्रेन स्त्रोमिंग सेशन में विभिन्न विषयों पर चर्चा हुई l शाम को शिल्प ग्राम के लोक कलाकारों ने मन भावान सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये l 


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