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आज किया गया प्रत्येक कार्य कल का इतिहास होगा- कुलपति प्रोफेसर अमेरिका सिंह

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14 Jan 22
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आज किया गया प्रत्येक कार्य कल का इतिहास होगा- कुलपति प्रोफेसर अमेरिका सिंह

इतिहास विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय ,उदयपुर द्वारा सात दिवसीय कार्यशाला" न्यू मेथड्स एंड अप्रोचएस ऑफ हिस्टोरिकल राइटिंग" के समापन  सत्र आज दिनांक 13/1/22 को दोपहर 1:00 बजे हुआ। समापन सत्र कुलगीत के साथ शुरू हुआ। डॉ.कैलाश चन्द्र गुर्जर ने संचालन करते हुए सभी अतिथियो का परिचय करवाया।

प्रो. प्रतिभा द्वारा सभी अतिथियों एवं प्रतिभागियों का स्वागत कर कार्यशाला में हुए कार्यक्रम का प्रतिवेदन किया गया। मुख्य अतिथि सी.आर. देवासी, माननीय रजिस्ट्रार,मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर ने इतिहास विभाग को सफलता पूर्वक आयोजन के लिए धन्यवाद और बधाई दी तथा सभी अतिथियों का आभार जताया।

विशेष अतिथि बालमुकुंद पांडेय ने बताया की जो इतिहास लिखने का हमे अपने स्वयं को भारतीय दृष्टि विकसित करनी चाईए अभी तो जो इतिहास पढ़ाया जाता है ओर जो लिखा गया यूरोसेड्रिक (यूरोपीय दृष्टि से देखने की दृष्टि) था जिस कारण हम आज भी अपने स्वयं के द्वारा किये गए आंदोलनों को विद्रोह कहा जाता है और यदि विचार नही बदले तो भगतसिंह को हम आतंकवादी कहते रहैंगे क्योकि यूरोपीयनो ने ही इस प्रकार लिखा यदि हम इसे अंधभक्त की तरह लिख दिया गया परंतु इतिहास लेखन वैचारिक ओर भारतीय दृष्टि से लिखना ओर परिवर्तन आवश्यक है।

मुख्य वक्ता प्रो. विभा उपाध्याय ने सबाल्टर्न थिओरी भारत के सन्दर्भ में व्याख्यान देते हुए सबाल्टर्न शब्द की व्याख्या करते हुए प्रारंभ में इस शब्द का उपयोग क्रान्तिकारियो के लिए, सैनिकों के लिए, मजदूरो के लिए, निम्न वर्ग के लिए उपयोग में लिया गया। परन्तु बाद में इसे वर्ग विशेष के लिए इसका उपयोग किया गया।
ई पी थॉमसन ने पहली बार श्रमिक वर्ग पर लेख लिखा।  परन्तु इन्होंने महिलाओं को शामिल नही किया।
एंटोनियो ग्राम्सी ने सर्वप्रथम सबाल्टर्न शब्द का उपयोग किया। इन्हें सबाल्टर्न विचार का जनक माना जाता है, यह मार्क्स एवं हीगल से प्रभावित था, इसने दोनो के विचारों को सम्मिलित कर नए विचारों को जन्म दिया। 
शोषण के विरूद्ध शोषक का विचार बन गया यद्दपि भारत में उपाश्रयी का भाव अलग है किंतु इसे सबाल्टर्न में शामिल कर दिया गया।
Historiography शब्द ही विवादस्पद है...!यूरोपीय विश्विद्यालय में history को विषय के रूप में पढ़ाया गया। जो पाश्चत्य दृष्टि से इतिहास लेखन शुरू हुआ वही आज हमारे यहाँ दोहराया जाता है जो सही नही है। मार्क ब्लाक के एनल्स,ओरियन्टलिज्म, प्रत्यक्षवाद, उत्तर आधुनिकतावाद में भी सबाल्टर्न स्टडी देखने को मिलती है! मानवीय मूल्य, मानवीय परिवेश, मानवीय बोली यह सबाल्टर्न थिओरी पढ़ने के मुख्य कारक है।
भारतीय सबाल्टर्न के इतिहासकार रंजीत गुहा, सुमित सरकार, शाहिद अमीन, ज्ञानेंद्र पांडेय जिन्हें एलिटिस्ट हिस्टोरियन कहा गया। क्योकि बाहर से पढ़कर आते है तथा  उन्ही के विचारों या पदचिन्हों पर चलते है, यदि भारतीय इतिहास के सन्दर्भ में इसी दृष्टि से लिखते है तो न्याय नही हो पाएगा।
सबाल्टर्न के लिए मौखिक साक्ष्य आवश्यक है जिनमे साक्षात्कार को माध्यम बनाया जा सकता है। आंकड़े को भी आधार बनाया जाता है। स्टडी ऑफ जीन्स की परंपरा के माध्यम से सबाल्टर्न अध्ययन कर सकते है। 
सबाल्टर्न स्टडी में आधुनिक भारत में प्रेमचंद को माध्यम बनाकर पढ़ा जा सकता है। प्राचीन भारत में भी कहा जाता है की वैदिक साहित्य को की एक तरफ तो कहा जाता है की धार्मिक था ओर जब इसे केवल सामान्य वर्ग बताया जाता है तो क्या यह सबाल्टर्न स्टडी नही है। श्वानगाथा, विदेह माधव की कथाओं को इसलिए बनाया गया की सामान्य जन के हितों की रक्षा की जाती थी। अध्यक्षता प्रोफेसर दिग्विजय भटनागर , विभागध्यक्ष, इतिहास विभाग, मो.ला.सु.विश्वविद्यालय उदयपुर ने की। डॉ पियूष भादविया द्वारा कार्यशाला ने पधारे हुए सभी अतिथियों एवं प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापन किया गया। विभाग के डॉ.अजय मोची एवम् दिलावर सिंह ने बताया कि कार्यशाला 7/1/2022 से 13/1/ 2022 तक ऑनलाइन मोड पर संपन्न हुई जिसमें देश भर से 70 से अधिक विद्यार्थी एवं शोधार्थीयो ने हिस्सा लिया। जिसमें देश के प्रमुख इतिहासकार विद्वान ने अपना व्याख्यान दिए  l


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