GMCH STORIES

राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं वेबीनार का आयोजन

( Read 3877 Times)

19 Nov 21
Share |
Print This Page
राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं वेबीनार का आयोजन


संस्कृत विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर एवं राजस्थान संस्कृत अकादमी, जयपुर के संयुक्त तत्त्वावधान में गुरुवार को राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं वेबीनार का आयोजन किया गया। भारत की राष्ट्रीय एकता एवं संस्कृत विषय पर भारत की चारों दिशाओं के सारस्वत वक्ताओं ने भारत की राष्ट्रीय एकता में संस्कृत के योगदान एवं महत्त्व को प्रतिपादित किया। विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो. अमेरिका सिंह ने अपने सन्देश में संस्कृत को भारत की पहचान एवं भारत का गौरव बताया। उन्होंने कहा कि संस्कृत से ही भारतीय संस्कृति एवं राष्ट्रीय एकता जैसे राष्ट्रभावना के मूल्य सुरक्षित हैं। जयपुर से जुड़े हुए वरिष्ठ साहित्यकार एवं शिक्षाविद् श्री राजेन्द्र मोहन शर्मा ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एवं कम्प्यूटर के लिए सर्वाधिक उपयोगी एवं विज्ञानसम्मत भाषा संस्कृत को बताया। गुजरात विश्वविद्यालय, अहमदाबाद से जुड़े हुए प्रो. कमलेश चौकसी ने संस्कृत को संस्कारों की भाषा बताया। उन्होंने कहा कि आधुनिक युग में आई संस्कारों की कमी को दूर करने का उपाय संस्कृत वाङ्मय में ही निहित है। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर परिसर से जुड़े हुए प्रो. रमाकान्त पाण्डेय ने बताया कि अंग्रेज़ों ने स्वार्थवश मैकाले की शिक्षापद्धति को भारत में थोपा था। अंग्रेजों ने संस्कृतशिक्षा के विकास को छद्मरूप से रोकने का प्रयास किया। भारत की पराधीनता के समय देशवासियों को एकसूत्र में पिरोने में संस्कृत की महती भूमिका रही। भारतीयों में स्वतन्त्रता की भावना जगाने वाले संस्कृत नाटकों, कविताओं को भी अंग्रेजी शासन द्वारा प्रतिबन्धित किया गया एवं कवियों पर मुकदमे चलाए गए क्योंकि  संस्कृत काव्यरचना की यमक एवं श्लेष अलंकार वाली पद्धति द्व्यर्थक भाषा में ब्रिटिश शासन की विषमताओं को उजागर करती थी। त्रिपुरा विश्वविद्यालय, अगरतला से जुड़ी हुई प्रो. शिप्रा रॉय ने संस्कृत को विश्वबन्धुता एवं राष्ट्र भावना को बढाने वाली भाषा बताया। उन्होंने कहा कि भारत के प्रतिष्ठास्वरूप दो ही मूल्य हैं- संस्कृत और संस्कृति। कश्मीर विश्वविद्यालय से जुड़े हुए डॉ. करतार चन्द शर्मा ने बताया कि अधिकांश भारतीयों के संस्कृत नाम उन्हें भारतवर्ष की विविधताओं के मध्य एकता से जोड़ते हैं। उन्होंने कश्मीर की आचार्य परम्परा एवं संस्कृत साहित्य को उसकी देन का महत्त्व बताया। उन्होंने बताया कि भारत की एकता और अखण्डता के सूत्र इतिहास में भी उपलब्ध होते हैं और वहाँ तक पहुंचने का सुगम माध्यम संस्कृत एवं संस्कृत साहित्य हैं। केरल विश्वविद्यालय, तिरुवनन्तपुरम से जुड़ी हुई डॉ. सी. एन. विजयाकुमारी ने बताया कि संस्कृत भाषा सभी भारतीय भाषाओं के साथ भारतवासियों को एकत्वभाव से युक्त करती है। मलयालम भाषा के तो 80 प्रतिशत शब्द संस्कृत के हैं। सभी भारतीय भाषाओं में संस्कृत शब्दों की बहुलता है। महाविद्यालय के अधिष्ठाता  प्रो सी. आर. सुथार ने भारत को कश्मीर से कन्याकुमारी एवं पश्चिम से पूर्व तक जोड़ने वाला माध्यम संस्कृत को बताया। उन्होंने संस्कृतयज्ञ में सदैव आहुति देने हेतु तत्पर यजमान बने रहने की अभीप्सा व्यक्त की। मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो. हेमन्त द्विवेदी ने भारत को जानने के लिए संस्कृत को जानने की आवश्यकता पर बल दिया। स्वागत भाषण संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो.नीरज शर्मा ने दिया। उन्होंने अपनी ओजपूर्ण वाणी से संस्कृत वाङ्मय में की गई राष्ट्र आराधना पर प्रकाश डाला। धन्यवाद ज्ञापन संगोष्ठी समन्वयक डॉ. जी.एल. पाटीदार ने किया। संचालन संगोष्ठी संयोजक डॉ. मुरलीधर पालीवाल द्वारा किया गया। कार्यक्रम में कई शिक्षकों, शोधार्थियों, विद्यार्थियों एवं संस्कतानुरागियों की प्रत्यक्ष एवं अन्तर्जालीय उपस्थिति रही।
जयतु भारतम् l जयतु संस्कृतम्।


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories : Education News ,
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like