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चित्तौड़गढ़ में जिलास्तरीय आमुखीकरण कार्यशाला में हुआ मंथन

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14 Sep 19
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चित्तौड़गढ़ में जिलास्तरीय आमुखीकरण कार्यशाला में हुआ मंथन

चित्तौड़गढ़  / राजस्थान राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य डॉ. शैलेन्द्र पण्ड्या ने कहा कि बाल संरक्षण पर आमजन को संवेदनशील बनकर कार्य करना होगा तथा समाज में बाल संरक्षण के लिए जागरूकता लानी होगी।

      आयोग के सदस्य डॉ. पण्ड्या ने शुक्रवार को जिला परिषद् के ग्रामीण विकास अभिकरण सभागार में बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना के प्रभावी क्रियान्वयन तथा बाल विवाह की रोकथाम विषयों पर जिला स्तरीय आमुखीकरण कार्यशाला में अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए यह आह्वान किया। इसका आयोजन महिला अधिकारिता, यूनिसेफ तथा चाइल्ड राइट्स एण्ड यू(क्राई) के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।

      कार्यशाला में जिला परिषद् की मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्रीमती नम्रता वृष्णि, अतिरिक्त जिला कलेक्टर (प्रशासन), मुकेश कुमार कलाल, अतिरिक्त जिला कलक्टर(भूमि अवाप्ति) विनय पाठक, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव सुनिल कुमार ओझा, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डा. इन्द्रजीत सिंह, अतिरिक्त जिला शिक्षा अधिकारी(माध्यमिक) सत्येन्द्र मेहता, महिला अधिकारिता विभागीय सहायक निदेशक राकेश तंवर, क्राई के राज्य कार्यक्रम प्रबन्धक धरमवीर यादव एवं जिला समन्वयक राजकुमार पालीवाल, आईसीपीएस की सहायक निदेशक ललिता, जिला स्तरीय टास्क फोर्स के सदस्यगण, जिले के ब्लॉक शिक्षा अधिकारी व बाल विकास परियोजना अधिकारी बाल कल्याण समिति की अध्यक्ष सुशीला लड्ढा एवं सदस्यगण, विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों सहित शिक्षा, चिकित्सा, श्रम, पुलिस आदि विभागों के अधिकारियों एवं प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।

     बच्चों से संबंधित मुद्दों पर गंभीरता बरतें

      आयोग सदस्य डॉ. पण्ड्या ने बाल अधिकार और संरक्षण के मुद्दों के प्रति हर स्तर पर गंभीरता और संवेदनशीलता पर बल दिया और कहा कि ऎसा हो जाने पर अपने आप यह समझ विकसित हो जाएगी कि किस तरह हम बच्चों को सुनहरा भविष्य प्रदान करने में सहयोगी बनें। उन्होंने कहा कि बच्चों से अधिक दुर्बल और कोई नहीं हो सकता, इसलिए बच्चों के लिए काम करना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।

      आज जरूरत इस बात की है कि हम बच्चों की दिक्कतों, अभावों और पीड़ाओं को समझें और उनके यथोचित निराकरण के लिए पूरे मन से भागीदारी निभाएं। इसके लिए बच्चों के साथ सीधे और आत्मीय संवाद की आवश्यकता है ताकि बच्चे अपनी हर बात को बेहिचक होकर सहजतापूर्वक अभिव्यक्त कर सकें।

     बाल संरक्षण की दिशा में प्रभावी आयोजन होंगे

      उन्होंने कहा कि आगामी दिनों में आयोग की ओर से चित्तौड़गढ़ जिले में बाल अधिकारों के संरक्षण और विकास से संबिंधत 4 कार्यक्रम किए जाएंगे। इनमें 2 जिला मुख्यालय तथा 2 ब्लॉक स्तर पर होंगे जिनमें डेढ़ सौ से अधिक बच्चों की भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। इसके लिए बच्चों के संरक्षण से संबंधित विभागों और संस्थाओं के सहयोग से विभिन्न गतिविधियां संपादित की जाएंगी।

           

आयोग सदस्य ने बाल अधिकार संरक्षण आयोग के बारे में जानकारी प्रदान करते हुए बताया कि यह बच्चोें को केन्द्र में रखकर उनके सर्वोत्तम हितों के लिए विभिन्न कार्य संपादित कर रहा है ताकि बच्चे सुरक्षा व विकास के अवसर प्राप्त कर सकें और शोषण, दुव्र्यवहार आदि से बच सकें।

     बाल विवाह बाद में भी हो सकता है निरस्त

      आयोग सदस्य डॉ. शैलेन्द्र पण्ड्या ने बताया कि बाल विवाह हो जाने के उपरान्त भी यदि बच्चे चाहें तो यह निरस्त हो सकता है। इसके लिए बाल विवाह करने वालों को विवाहोपरान्त दो साल का समय मिलता है जिसमें ये चाहें तो विवाह निरस्त होने का प्रावधान है। उन्होंने बाल विवाह की रोकथाम में लगे कार्मिकों से कहा कि वे बाल विवाह के आयोजन को रुकवाने मात्र तक सीमित न रहें बल्कि बाल विवाह आयोजकों को बाल विवाह निषेध अधिकारी से कानूनन पाबंद कराएं। ऎसा होने पर यदि गुपचुप बाल विवाह हो भी जाए, तो यह मान्य नहीं है बल्कि स्वतः निरस्त हो जाता है। इन प्रावधानों का उपयोग करें तथा स्कूलों व आम जन में इस बारे में व्यापक प्रचार-प्रसार करें।

     सरकार जुटी है भरसक प्रयासों में

      उन्होंने कहा कि राज्य सरकार बच्चों के संरक्षण और विकास के लिए हरसंभव प्रयासों में जुटी हुई है और इनमें सहभागी बनकर बच्चों का भविष्य संवारना हम सभी की जिम्मेदारी है। प्रयास यह हो रहे हैं कि बाल विवाह मुक्त राजस्थान बने, और सभी बच्चे शिक्षा-दीक्षा एवं विकास से जुड़ें। इस बारे में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के निर्देशन में भरपूर प्रयास जारी हैं।

     विद्यार्थियों को करें जागरुक

      डॉ. पण्ड्या ने शिक्षा विभाग से कहा कि बाल सभा में बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष व सदस्यों को आमंत्रित करें ताकि विद्यार्थियों को बाल अधिकारों के बारे में जानकारी हो सके। इसके साथ ही ग्रामीण जन प्रतिनिधियों की भागीदारी बढ़ाने पर भी उन्होंने जोर दिया।

     आयोग बना रहा विज़न डॉक्यूमेंट

      आयोग सदस्य डॉ. पण्ड्या ने बताया कि बच्चों से संबंधित अधिकारोें व कानूनों की जानकारी के व्यापक प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है। राजस्थान राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के द्वारा प्रदेश में अपनी गतिविधियों के विकास व विस्तार को सुनिश्चित करने और बच्चों की सुरक्षा व विकास के लिए बेहतर, सकारात्मक एवं प्रभावी माहौल तैयार करने बहुद्देशीय विज़न डॉक्यूमेंट तैयार किया जा रहा है। उन्होंने इस क्षेत्र से संबंधित लोगों से कहा कि वे भी इसमेें व्यवहारिक सुझाव दे सकते हैं।

      ग्राम्यांचलों में प्रभावी वातावरण निर्माण जरूरी

जिला परिषद की मुख्य कार्यकारी अधिकारी न्रमता वृष्णि ने कहा की समाज से बाल विवाह को खत्म करने के लिए खुद से शुरूआत करने की जरूरत है। हमें हमारे आस-पास एवं घरों में बेटी की सुरक्षा को पहले तय करना है, एवं खुद को बदल कर चित्तौड़गढ़ को बाल विवाह मुक्त बनाना है। बाल विवाह मुक्त बनाने की साझी पहल में सभी जनप्रतिनिधियों को अपने पंचायत स्तर पर बच्चों के लिए विशेष ग्राम सभा का आयोजन किया जाकर अपनी पंचायत को बाल विवाह मुक्त एवं बाल मैत्री पंचायत बनाने के लिए पहल करनी चाहिये।

महिला अधिकारिता विभागीय सहायक निदेशक राकेश तंवर ने ‘‘बेटी बचाओ बेटी पढाओ’’ योजना के उद्देश्यों के बारे में विस्तार से बताया। महिला एवं बाल विकास विभागीय सहायक निदेशक ललिता ने विभागीय कार्यों पर जानकारी दी।

बाल विवाह मुक्त चित्तौड़गढ़ के लिए साझा रणनीति का सूत्रपात

क्राई के राज्य कार्यक्रम प्रबंधक धर्मवीर यादव ने बाल विवाह की कुरीति को समाप्त करने के लिए समन्वित प्रयासों की आवश्यकता जताई और कहा कि सन 2020 में बाल विवाह मुक्त राजस्थान बनाने की रणनीति के तहत साझा अभियान- ‘‘बाल विवाह मुक्त राजस्थान’’ की शुरूआत की है।

इसी के अन्तर्गत जिला चित्तौड़गढ ने भी साझा अभियान-बाल विवाह मुक्त चित्तौड़गढ 2019-20 के लक्ष्य को लेकर कार्ययोजना बनाई है। इसके लिए सभी जिला एवं ब्लॉक स्तरीय टास्क फोर्स के सदस्यों के साथ साझी रणनीती बनाई गई एवं ब्लॉक स्तर पर ब्लॉक की बाल विवाह मुक्त कार्ययोजना बनाकर क्रियान्वित करने के लिए कहा गया।

     ओझा ने दिए अहम् सुझाव

      राजस्थान विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव सुनील कुमार ओझा ने अपने अनुभवों का निष्कर्ष सामने रखते हुए बाल अधिकारों के बारे में जनजागृति के लिए स्कूलों में बाल संसद के आयोजन, हर स्कूल मेंं एक शिक्षक को काउंसलर का जिम्मा सौंपने आदि की आवश्यकता बताई।


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