GMCH STORIES

“स्वाध्याय एवं यज्ञ से जीवन की उन्नति एवं सुखों की प्राप्ति होती है”

( Read 4566 Times)

18 Aug 23
Share |
Print This Page

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

“स्वाध्याय एवं यज्ञ से जीवन की उन्नति एवं सुखों की प्राप्ति होती है”

     परमात्मा ने मनुष्य की जीवात्मा को मानव शरीर किसी विशेष प्रयोजन से दिया है। पहला कारण है हमें अपना-अपना मानव शरीर वा मानव जीवन अपने पूर्वजन्मों के कर्मों के आधार पर आत्मा की उन्नति व दुःखों की निवृत्ति के लिये मिला है। आत्मा की उन्नति के लिये जीवन में ज्ञान की प्राप्ति व उसके अनुरूप आचरण का सर्वोपरि महत्व है। ज्ञान प्राप्ति बुद्धि का विषय है। परमात्मा ने बुद्धि इसी प्रयोजन को पूरा करने के लिये दी है। बुद्धि ज्ञान प्राप्ति में सहायक है। ज्ञान की प्राप्ति माता, पिता, आचार्यों के उपदेशों सहित वेद व ऋषियों के वेदानुकूल ग्रन्थों के स्वाध्याय व अध्ययन से होती है। यदि मनुष्य धार्मिक माता, पिता व आचार्यों को प्राप्त न हो और वेद व वैदिक साहित्य का स्वाध्याय न करे तो उसके ज्ञान में वृद्धि, आचरण की शुद्धि और जीवन के उद्देश्य धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति कदापि नहीं हो सकती। इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के लिये ही स्वाध्याय, ईश्वरोपासना तथा देवयज्ञ अग्निहोत्र का महत्व है। हमारे शास्त्रकारों ने विधान किया है कि मनुष्य को स्वाध्याय से कभी प्रमाद नहीं करना चाहिये। जो मनुष्य वा स्त्री-पुरुष स्वाध्याय करेगा व करते हैं, वह ज्ञान प्राप्ति कर उन्नति करते हुए सुखों को प्राप्त होते हैं। इसके देश व समाज में अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं। मनुष्य की आर्थिक उन्नति बिना सद्ज्ञान प्राप्ति के अधूरी होती है। कई बार यह विनाशकारी भी हो जाती है। बहुत बड़े बड़े धनाड्य लोग जेलों में जाते देखे जाते हैं। इसका कारण उनके जीवन का स्वाध्याय व आचरण से शुद्ध न होना ही होता है। यदि उनका ज्ञान व आचरण शुद्ध होता तो उनकी अपयश आदि से दुर्दशा न होती। आजकल की शिक्षा में सद्ज्ञान व विद्या का वह समावेश नहीं है जो कि उसमें होना चाहिये। जिस शिक्षा में वेद सम्मिलित न हों, वह शिक्षा अधूरी है और इससे मनुष्य का चरित्र निर्माण नहीं होता। वेदों का ज्ञान व वैदिक शिक्षा मनुष्य का चरित्र निर्माण करती है। वह मनुष्य को आस्तिक, ईश्वर का उपासक, देश व समाज का भक्त व हितैषी, धार्मिक व परोपकारी बनाती है। अतः सभी मनुष्य स्कूलों में न सही, अपने घरों में रहकर तो वेदों पर आधारित तथा वेदज्ञान की कुंजी हिन्दी व देश की अनेक भाषाओं में उपलब्ध, ऋषि दयानन्द के अमर ग्रन्थ ‘‘सत्यार्थप्रकाश” का अध्ययन तो अवश्य ही कर सकते हैं। इससे मनुष्य का अज्ञान व अविद्या दूर होकर ज्ञान के चक्षु खुल जाते हैं और अध्येता को सत्यासत्य का पूरा परिचय होने के साथ धर्म व अधर्म, धर्म व मत-मतान्तरों का अन्तर तथा अच्छे व बुरे लोगों की पहचान हो जाती है। अतः सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ का पढ़ना अज्ञान दूर करने तथा ज्ञानी बनकर देश व समाज के लिये कुछ विशेष कार्य करने की प्रेरणा ग्रहण करने के लिये आवश्यक एवं हितकर है। 

    हमारे देश में स्वाध्याय करने तथा विद्वानों द्वारा अविद्वानों को प्रवचन की परम्परा उतनी ही पुरानी है जितनी की हमारी यह सृष्टि है। यही कारण था कि प्राचीन भारत अज्ञान व अविद्या से रहित था। हमारे देश में बड़ी संख्या में ऋषि होते थे जो तत्ववेत्ता तथा ईश्वर का साक्षात्कार किये हुए धर्म की दृष्टि से महानपुरुष होते थे। इनके द्वारा शिक्षित बालक व युवा इन्हीं के बताये मार्ग पर चलकर स्वजीवन का कल्याण करने सहित देश व समाज का उपकार करते थे। शास्त्रों में स्वाध्याय प्रतिदिन करने का विधान है। स्वाध्याय से मनुष्य को अपनी आत्मा व जीवन का ज्ञान होता है और इसके साथ ही वह ईश्वर का सत्यस्वरूप, ईश्वर की उपासना की आवश्यकता क्यों व उसकी विधि से भी परिचित हो जाता है। निरन्तर स्वाध्याय, ध्यान व चिन्तन से मनुष्य का ज्ञान बढ़ता जाता है जिससे वह अपने आचरणों को सुधार कर अपने परिवार व समाज के लोगों का मार्गदर्शन भी करता है। मनुष्य व देश-समाज की उन्नति के लिये ही ऋषि दयानन्द व आर्यसमाज के विद्वानों ने लोगों को स्वाध्याय की प्रेरणा करने के साथ अनेक विषयों के सद्ग्रन्थों का निर्माण किया जिसका अध्ययन मनुष्य को अज्ञान को दूर करने में सहायक होता है। यह अनुभव की बात है कि जो ज्ञान वेद व वैदिक साहित्य में उपलब्ध है, वह ज्ञान संसार के इतर ग्रन्थों में कहीं प्राप्त नहीं होता। ईश्वर व आत्मा विषयक सद्ज्ञान तो वेद, उपनिषद, दर्शन तथा सत्यार्थप्रकाश आदि ग्रन्थों में ही उपलब्ध होता है। अतः सभी मनुष्यों को अपनी आत्मिक, शारीरिक तथा सामाजिक उन्नति के लिये इन ग्रन्थों सहित समस्त वैदिक साहित्य का अध्ययन करने में प्रवृत्त होना चाहिये। यदि हम प्रतिदिन एक दो घण्टे पढ़ने की आदत डाल लें तो हम कुछ ही महीनों व वर्षों में अपने जीवन को ज्ञान व साधना की दृष्टि से बहुत ऊंचा उठा सकते हैं। 

    स्वाध्याय करते हुए मनुष्य को ईश्वर व आत्मा सहित इस संसार के सत्यस्वरूप का ज्ञान हो जाता है। उसे ईश्वर की उपासना सहित वायु, जल व पर्यावरण की शुद्धि के लिये यज्ञ करने की प्रेरणा भी मिलती है। सन्ध्या, यज्ञ तथा सदाचार मनुष्य जीवन के आवश्यक कर्तव्य हैं। इन कर्तव्यों के पालन से मनुष्य के जीवन की उन्नति होती है। ज्ञान व सद्कर्मों से मनुष्य का सांसारिक जीवन सुधरता है तथा पारलौकिक जीवन भी उन्नत बनता व सुधरता है। अग्निहोत्र यज्ञ वेद व ऋषियों का एक ऐसा आविष्कार है जिसकों करने से मनुष्य न केवल वायु व वर्षा जल की शुद्धि करता है अपितु अग्निहोत्र करने से उत्तम रीति से ईश्वर की उपासना सहित ईश्वर की स्तुति तथा प्रार्थना भी हो जाती है। इससे मनुष्य का मन व आत्मा सबल होते हैं। रोग दूर होते हैं तथा मनुष्य स्वस्थ एवं दीर्घायुष्य को प्राप्त होता है। मनुष्य का ज्ञान बढ़ता जाता है तथा यज्ञ करते हुए विद्वानों की संगति होने से उसे अनेक प्रकार के ज्ञान व मार्गदर्शन प्राप्त होते हैं जो जीवन में अत्यन्त लाभकारी होते हैं। जीवन में सत्संगति का महत्व निर्विवाद है। जो मनुष्य सत्संगति नहीं करता उसका सज्जन पुरुषों की संगति के अभाव में जीवन बर्बाद हो जाता है। यदि हम सत्संगति नहीं करेंगे तो कुसंगति स्वतः होकर हमें हानि पहुंचा सकती है। वेद व वैदिक साहित्य से सत्संगति होने से इन ग्रन्थों के प्रणेताओं से संगति हो जाती है जिसका लाभ स्वाध्याय करने वाले तथा यज्ञ करने वाले मनुष्यों को जीवन में ही नहीं अपितु परजन्मों में भी मिलता है। हम उदाहरण के रूप में देखते हैं कि हमारे देश के महापुरुष स्वामी श्रद्धानन्द, पं. लेखराम, पं. गुरुदत्त विद्यार्थी, महात्मा हंसराज, महाशय राजपाल जी, स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती के जीवन का कल्याण ऋषि दयानन्द के दर्शन वा उनके अनुयायियों की संगति सहित ऋषि दयानन्द के ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश आदि के अध्ययन से ही हुआ था। माता-पिताओं को अपनी सन्तानों को ऋषि दयानन्द का जीवन चरित्र पढ़ाना व सुनाना चाहिये तथा उनके साहित्य को पढ़ने की प्रेरणा भी करनी चाहिये। इससे निश्चय ही माता-पिता व बच्चे सभी लाभान्वित होंगे और देश को भी चरित्रवान् व आस्तिक युवा सन्तानें मिलेंगी। ऐसा करने से देश में कुछ संगठनों द्वारा हमारी धर्म व संस्कृति के विरुद्ध दूषित विचारों का प्रचार करने वाले लोगों से हमारी सन्ताने बच सकेंगी। 

    जीवन निर्माण विषयक जितना महत्वपूर्ण साहित्य हम आर्यसमाज में उपलब्ध देखते हैं उतना अन्यत्र दुर्लभ है। आर्यसमाज में एक सहस्र से भी अधिक स्वाध्याय योग्य ग्रन्थ हैं जिनमें से हम प्रमुख ग्रन्थों का अध्ययन कर कालान्तर में अन्य ग्रन्थों को भी पढ़ सकते हैं। ऋषि दयानन्द और आर्य विद्वानों ने वेदों के भाष्य भी रचे हैं। इसके साथ ही उपनिषद, दर्शन, मनुस्मृति, रामायण एवं महाभारत ग्रन्थ भी साधारण हिन्दी भाषा में उपलब्ध हैं। सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, संस्कारविधि, आर्याभिविनय आदि ग्रन्थ तो ऋषि दयानन्द ने हिन्दी भाषा में ही लिखे हैं। ऋषि दयानन्द जी के जीवन पर अनेक विद्वानों द्वारा लिखे छोटे व बड़े जीवन चरित्र भी उपलब्ध हैं। हमें इन सभी ग्रन्थों का अध्ययन करने का सुअवसर मिला है। इन्हें पढ़कर न केवल हममें ज्ञान की उन्नति व वृद्धि होगी अपितु इनके अध्ययन से अविद्या दूर होगी और आत्मा में सुख व प्रसन्नता की अनुभूति भी होती है। जीवन आध्यात्मिक एवं सांसारिक दोनों ही दृष्टियों से उन्नति करता है। अग्निहोत्र यज्ञ करने से भी जन्म-जन्मान्तर में लाभ व उन्नति होती है। अतः उन्नति के इच्छुक सभी मनुष्यों को प्रतिदिन स्वाध्याय व दैनिक यज्ञ करने का व्रत लेना चाहिये। इससे निश्चय ही जीवन का कल्याण होगा। ओ३म् शम्।   
    -मनमोहन कुमार आर्य
पताः 196 चुक्खूवाला-2
देहरादून-248001
फोनः09412985121


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories : Chintan
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like