GMCH STORIES

’ईष्वर के मुख्य काम सहित मनुश्यों के कुछ प्रमुख कर्तव्य‘

( Read 13269 Times)

14 Feb 18
Share |
Print This Page
इस संसार को बनाने वाला व हमारी आत्मा को माता-पिता के माध्यम से षरीर से युक्त करने व जन्म देने वाली सत्ता का नाम ईष्वर है। समस्त जड चेतन जगत का रचयिता व पालक एक ईष्वर ही है। ईष्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वषक्तिमान, सर्वज्ञ, सर्वव्यापक, सर्वातिसूक्ष्म, सर्वान्तर्यामी, कर्म-फल प्रदाता, मोक्षदाता, ज्ञान व सुख दाता व सृश्टिकर्ता आदि गुण, कर्म व स्वभाव वाला है। ईष्वर के मुख्य कार्य कौन कौन से हैं, इस पर विचार करते हैं। इससे पूर्व हमें यह ज्ञात होना चाहिये संसार में अनादि व अविनाषी तीन सत्तायें हैं ईष्वर, जीव और प्रकृति। ईष्वर व जीव चेतन सत्तायें हैं एवं प्रकृति जड सत्ता है। ईष्वर एक है और जीवात्माओं की संख्या अनन्त है। जीवात्मा भी एक सूक्ष्म सत्ता है और यह एकदेषी, अल्पज्ञ, जन्म-मरण धर्मा, जन्म-जन्मान्तर मे ंकिये कर्मों के फलों की भोक्ता है जिसकी व्यवस्था ईष्वर करता है। प्रकृति भी सूक्ष्म है और यह मूल अवस्था में सत्व, रज और तम गुणों वाली त्रिगुणात्मक सत्ता है। इसके विकार से परमाणु व अणु बनते हैं और इन अणु व परमाणुओं से ही यह समस्त पंचभौतिक जगत बना है। हमारे षरीर में पांच ज्ञानेन्दि्रया, पांच कर्मेन्दि्रयां, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार व षरीर के सभी बाह्य व आन्तिरिक करण व अवयव हैं, वह सब मूल प्रकृति से ही परमात्मा द्वारा बनाये गये हैं। यह जगत ईष्वर ने जीवों के कर्म-फल भोग के लिए बनाया है। परमात्मा जीवों को उनके कर्मानुसार फल प्रदान करने के लिए उन्हें विभिन्न योनियों में जन्म देता है और जन्म-मरण का यह चक्र हमेषा चलता रहता है। कुछ जीवों को जो वेदानुसार श्रेश्ठ कर्म करते हैं, ज्ञान से युक्त होते हैं तथा दोशों से मुक्त होते हैं, ऐसे जीवों को परमात्मा मोक्ष वा मुक्ति प्रदान करता है। ऐसे मुक्त जीवों का भी मोक्ष की दीर्घावधि के बाद पुनः मनुश्य योनि में जन्म होता है और इस प्रकार से जीवन-मृत्यु व मोक्ष का चक्र अनादि काल से चला आ रहा है ओर अनन्त काल तक चलता रहेगा। ईष्वर द्वारा जीवात्माओं का मनुश्यादि योनियों में जन्म कर्म-फल भोग के साथ उन्हें मोक्ष प्रदान करने के लिए है।
ईष्वर के प्रमुख कार्यो में एक कार्य व कर्तव्य सृश्टि की उत्पत्ति, पालन व अवधि पूरी होने पर इसकी प्रलय करना है। ईष्वर यह सृश्टि जीवों के कल्याण, सुख वा फल भोग के लिए करता है। यदि वह ऐसा न करे तो जीवों को ज्ञान प्राप्ति कर सुखी होना व मोक्ष आदि की प्राप्ति नहीं हो सकती। सृश्टि की रचना न होने पर ईष्वर के सृश्टि रचना व पालन आदि की सामर्थ्य का साफल्य भी नहीं हो सकता। चेतन ईष्वर व जीव सभी में यह गुण देखने में आता है कि उनमें जो ज्ञान आदि की षक्ति व सामर्थ्य होती है उसके अनुरूप वह कर्म अवष्य करते हैं। ऐसा ही ईष्वर ने किया है व करता है और जीवात्मा भी मनुश्य आदि योनि में अपनी ज्ञान व षरीर आदि की षक्ति व सामर्थ्य के अनुसार सत्यासत्य मिश्रिम कर्म करते हैं। अतः ईष्वर का एक कार्य सृश्टि की रचना, इसका पालन व प्रलय करना है।
ईष्वर सूर्य, चन्द्र, पृथिवी एवं लोक-लोकान्तरों की रचना करने के बाद मनुश्य आदि अनेकानेक प्राणियों की सृश्टि भी करता है। पहले अर्थात् प्रथम पीढी में यह अमैथुनी होती है और उसके बाद दूसरी पीढी से मनुश्यादि प्राणियों की मैथुनी सृश्टि चलती है। मनुश्य आदि प्राणियों की सृश्टि व उनका पालन करना भी ईष्वर का ही काम है। ईष्वर यह कार्य बिना जीवों से किसी फल की आषा के करता है। ईष्वर का तीसरा कार्य वेद ज्ञान की उत्पत्ति करना व उसे ऋशियों द्वारा मनुश्यों को प्रदान करना है। यदि ईष्वर चार ऋशियों के माध्यम से प्रेरणा द्वारा वेदों की उत्पत्ति न करे तो मनुश्यों को वैदिक भाशा जो संसार की सभी भाशाओं की जननी है उसका और तृण से लेकर ईष्वर पर्यन्त पदार्थों का ज्ञान न हो सके। संसार में जहां जितना भी ज्ञान है वह सब वेदों से ही आया है। यह अवष्य है कि वेद ज्ञान व वैदिक भाशा की प्राप्ति के बाद समय समय पर विद्वानों व वैज्ञानिकों ने अपनी अपनी बुद्धि की क्षमता के अनुसार विचार-चिन्तन व ध्यान आदि करके उसमें वृद्धि व उन्नति की है।
ईष्वर के मुख्य कार्यों को जानकर हमें अपने कर्तव्य का ज्ञान भी प्राप्त करना है। मनुश्य को अपने कर्तव्यों का ज्ञान भी वेद से होता है। मनुश्यों को उनके कर्तव्यों के ज्ञान के लिए प्राचीन काल में ऋशियों ने वेदों के आधार पर पंचमहायज्ञों का विधान किया है। इन पंचमहायज्ञों का उल्लेख सृश्टि के आरम्भ में रचित मनुस्मृति में भी मिलता है। यह पांच कर्तव्य हैं सन्ध्या, देवयज्ञ, पितृयज्ञ, अतिथियज्ञ और बलिवैष्वदेवयज्ञ। इन कर्तव्यों के साथ मनुश्य को समाजोन्नति व देषोन्नति के अपने कर्तव्यों का भी निर्वाह करना चाहिये। सभी मनुश्यों को संसार में ईष्वर द्वारा उत्पन्न गाय, बकरी, भेड, मुर्गी-मुर्गा, मछली व समुद्रीय जीव-जन्तु आदि सभी निर्दोश प्राणियों को ईष्वर प्रदत्त भोगों को भोगने का अवसर देना चाहिये। इस कार्य में किसी मनुश्य को बाधक नहीं बनना चाहिये। जहां तक हो सके सभी प्राणियों का हित करना चाहये। मनुश्य को चाहिये कि वह संसार में यह प्रचार करे कि सब सत्य विद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं, उन पदार्थों व विद्या का आदि मूल परमेष्वर है। इस नियम के प्रचार से संसार से नास्तिकता समाप्त हो सकती है और इसके होने से अज्ञान व अन्धविष्वास फैलने पर भी अंकुष लग सकता है। अविद्याजन्य मत-मतान्तरों की उत्पत्ति भी नहीं होगी जैसी की वर्तमान में देखने को मिलती है। सभी मनुश्यों को ईष्वर का वेद वर्णित स्वरूप का प्रचार भी करना चाहिये। इसके लिए आर्यसमाज के दूसरे नियम में ईष्वर के स्वरूप को जानकर उसका प्रचार करना चाहिये। यह सबको जानना व जनाना चाहिये कि वेद ईष्वर प्रदत्त सब सत्य विद्याओं के ज्ञान का पुस्तक है। इन्हें प्रत्येक मनुश्य को स्वयं पढाना चाहिये और अन्यों को भी पढाना चाहिये। सभी मनुश्यों के सब कर्म और व्यवहार सत्य पर आधारित होने चाहिये। किसी को भी असत्य कर्म व व्यवहार नहीं करने चाहिये। सत्य कर्म वहीं है जिनकी षिक्षा वेदों में ईष्वर ने व वेदसम्मत षास्त्रों में ऋशियों ने मनुश्यों को दी है। सभी मनुश्यों को अपनी सामर्थ्य के अनुसार संसार का उपकार करना चाहिये। एक प्रमुख नियम जिसका सभी को पालन करना चाहिये वह यह है कि वह अविद्या का नाष करने में सकि्रय रहें और विद्या की वृद्धि भी प्राणपण से करनी चाहिये। इस नियम का पालन न करने के कारण ही संसार में अज्ञान फैला है और अनेक मत-मतान्तर उत्पन्न हुए हैं। यदि संसार में अविद्या का नाष करने में सभी तत्पर होते और विद्या की उन्नति करते तो आज व पूर्व समय में जो अज्ञान व अन्धविष्वासों की वृद्धि हुई है वह न होती। मनुश्य का यह भी कर्तव्य है कि वह सामाजिक उन्नति के सभी नियमों का पालन करें और सबके हित करने वाले नियमों का भी पालन करें। सभी अच्छे व सबके हित के कार्य करने में सबको स्वतन्त्रता होती है, उसे वह अपनी इच्छानुसार कर सकते हैं।
यह संक्षिप्त लेख हमने ईष्वर के मुख्य कार्यों पर विचार करने के लिए लिखा है। मनुश्य के प्रमुख कर्तव्यों को भी इसमें सम्मिलित किया है। हम आषा करते हैं पाठक इसे उपयोगी पायगे। ओ३म् षम्।
-मनमोहन कुमार आर्य



Source :
This Article/News is also avaliable in following categories : Chintan
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like