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फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन वर्सेज नॉम्स ऑफ सोसायटी विषय पर चर्चा से

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09 Jan 18
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 फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन वर्सेज नॉम्स ऑफ सोसायटी विषय पर चर्चा से
परिचर्चा में रणवीर सिंह, सुदेश बत्रा, प्रबोध गोविल, डॉ शक्ति सिंह शेखावत, डॉ जगदीश गिरि, भीम प्रकाश शर्मा ने अपने विचार रखे। चर्चा में हालिया पद्मावती विवाद को लेकर भी प्रश्न उठे।

इप्टा से जुड़े रणवीर सिंह ने कहा कि फिल्मकार का इरादा विचार रखना हो, ना कि विवाद खड़े करना। जान – बूझकर किसी जाति, वर्ग, समुदाय को हानि नहीं पहुंचाए। यदि कोई विचार रखना हो, तो उसे संयमित तरीके से कहें। ऐसे में, फिल्मकारों से अपेक्षा है कि वे विवेकपूर्ण सिनेमा रचें। सिंह ने स्पष्ट कहा कि पद्मावती के इर्द – गिर्द बुने विवाद जान – बूझकर उठाए गए हैं, और विरोध करने वाली करणी सेना को भी स्पष्ट नहीं है कि वे फिल्म का विरोध क्यों कर रहे हैं!!

डॉ गिरि ने कहा कि दर्शक अपना विरोध अभिव्यक्त करने के लिए हिंसा / तोड़ – फोड़ नहीं कर सकते। यह सर्वथा अनुचित है, और दूसरी ओर फिल्म उद्योग भी ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को भी ध्यान में रखें। भीम प्रकाश शर्मा ने कहा कि स्वतंत्रता के अधिकार से कुछ नियम भी जुड़े हैं, जिन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता। नियमों से ही समाज में व्यवस्था बनी रहेगी, और उनकी विवेकपूर्ण पालना जरूरी है।

संवाद को आगे बढ़ाते हुए, सुदेश बत्रा ने कहा कि फिल्में दर्शकों पर सबसे अधिक प्रभाव छोड़ती हैं। इसे समझते हुए, फिल्मकारों को दृश्य या संवाद रचते हुए, समझ से काम लेना ज़रूरी है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग करते हुए, अनुचित नहीं कहा जा सकता। सिनेमा को स्वतंत्रता का उपयोग करते हुए, इसके प्रभाव और स्वयं की जिम्मेदारी को भी ध्यान में रखना चाहिए।

सर्वे के अन्तर्गत, वीर सिंह यादव का आलेख “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: कलात्मक अभिव्यक्ति VS समाज के आदर्श” को सर्वश्रेष्ठ आलेख के रूप में चुना गया। उन्हें मंच से, 2100 रुपए पुरस्कार राशि की भी घोषणा की गई।

राजस्थानी सिनेमा: कल आज और कल विषय पर सिनेमाई संवाद

चर्चा में सुरेश मुद्गल, राजीव अरोड़ा, राजेंद्र गुप्ता और श्रवण सागर ने अपने विचार रखे। श्रवण ने तीन अतिथियों से राजस्थानी सिनेमा के क्षेत्र में साधनों की कमी, और वर्तमान में राजस्थानी भाषा से जुड़े खतरों पर प्रश्न किए। इसके उत्तर में, राजीव अरोड़ा ने कहा कि सरकार, प्रशासन और दर्शक वर्ग को सामूहिक स्तर पर प्रयास करने होंगे। चर्चा में राजस्थानी भाषा को कानूनन मान्यता हासिल होने पर गम्भीव प्रश्न उठे। दर्शक दीर्घा से भी कई सवालों का सिलसिला बना रहा।

को – प्रोडक्शन मीट का हुआ आयोजन

अमरीका, हंगरी, टर्की, फ्रांस, बेल्जियम, ऑस्ट्रेलिया, स्विट्जरलैंड और बहुतेरे देशों से अनेक फिल्मकारों और फिल्म वितरकों ने को – प्रोडक्शन मीट के अन्तर्गत आपसी संवाद किया। सौ से अधिक फिल्मकारों ने आपसी बातचीत की। गौरतलब है कि यह को – प्रोडक्शन मीट देश की एक प्रमुख मीट के रूप में स्थापित हो चुकी है। यह फिल्म से जुड़े लोगों के लिए बहुत मददगार साबित हो रही है।


गोलेछा सिनेमा के बाहर तोड़ – फोड़, मेहमानों को परेशानी

सरकारी तंत्र और प्रशासन को जिफ आयोजन के बारे में समूची जानकारी होने के बावजूद, 7 जनवरी की रात, गोलेछा सिनेमा के मुख्य गेट के ठीक बाहर सरकारी विभाग की ओर से तोड़ – फोड़ हुई। सड़क पर गड्ढा खोदने के चलते, फिल्म उत्सव में पहुंचे देशी – विदेशी मेहमानों को जो परेशानी हुई, उसका अनुमान लगाया जा सकता है। ज़ाहिर है कि इस तरह की घटनाएं, लोगों की नाराजगी का कारण बन रही है।

फिल्म उत्सव में पहुंचे ज्यूरी सदस्य चन्द्रशेखर ने कहा कि गडढे के कारण मुख्य दरवाजा बंद था, जिसे देखकर उन्हें बहुत अजीब महसूस हुआ। उन्हें समझ नहीं आया कि रातोंरात ऐसा क्या हुआ कि सरकार को यह तोड़ – फोड़ क्यूं करनी पड़ी।


श्री वल्लभ व्यास को श्रद्धांजलि

जिफ की ओर से, श्री वल्लभ व्यास को श्रद्धांजलि दी गई। गौरतलब है कि व्यास बेहतर अभिनेता रहे हैं, जिनका 7 जनवरी की रात ही निधन हुआ है। व्यास को दर्शक लगान, सत्ता और कई अन्य फिल्मों में देख चुके हैं।

3:15 बजे - फिल्म मैरिज के साथ, कैटरीना फिलिप्पो और कर्टिज पॉल कर्टिज, दर्शकों से रूबरू हुए।

7:30 बजे - फिल्म कोड नेम अब्दुल के साथ, अशोक चौधरी, अक्कु कुल्हरी और रिषभ के नायर दर्शकों से मुखातिब हुए।

वहीं नाइल स्क्रीन [गोलेछा सिनेमा] में, 4:15 बजे टफ्टलैंड फिल्म के साथ, रूपे ओलेनियस और हिस्की हमालेनेन ने दर्शकों के उत्सुक प्रश्नों के जवाब दिए। 1:30 बजे, मणिपाल यूनिवर्सिटी में, दा सर्किल फिल्म से जुड़े फिलिप्पा फ्रिस्बि, शशांक शर्मा, आलोक मिश्रा और टुलु पटनायक दर्शकों से रूबरू हुए।

जिफ बढ़ाएगा डॉक्यूमेंट्री फिल्मों की ओर रुझान – डोरा एलेक

लेंड मी योर आइज़, ब्लाटेजेर्स की निर्देशक डोरा एलेक ने बातचीत में जानकारी दी कि उनकी फिल्म 20 वर्ष पहले उनके द्वारा शुरू किए गए थिएटर कंपनी के बारे में है। थिएटर कंपनी के बारे में यह जानना ख़ास है कि यह मानसिक रूप से विकलांग लोगों का एक समूह है। डोरा ने बताया कि इन कलाकारों को भारत और दूसरे हिस्सों में ले जाने के लिए, उन्होने एक गेम शो में जीती धन राशि का इस्तेमाल किया। डोरा ने बताया कि स्क्रीनिंग के दौरान, दर्शकों ने फिल्म को बहुत सराहा। डोरा मानती हैं कि जिफ जैसे फिल्म उत्सवों में डॉक्यूमेंट्री फिल्मों को दिखाना, एक अहम शुरुआत है, और यह दर्शकों का डॉक्यूमेंट्री की ओर रुझान बढ़ाएगा।

हिन्दी फिल्में होती हैं मनोरंजक – मार्क प्लेन

2 बाय 2 के निर्देशक मार्क प्लेन ने बताया कि वे जिफ में वर्ष 2011 में भी शामिल हो चुके हैं। टर्की से आए मार्क मानते हैं कि जिफ के ज़रिए फिल्मों को बड़े स्तर पर, दूसरे देशों की जनता के सामने रखना आसान हो जाएगा। अब तक लगभग 7 फिल्में बना चुके मानते हैं कि भारतीय सिनेमा उन्हें बहुत पसंद है, और हाल ही में उन्होंने हिन्दी फिल्म लंच बॉक्स देखी, जो उन्हें बेहद पसंद आई। उन्होंने जिफ की ओपनिंग फिल्म अंग्रेजी में कहते हैं की भी बहुत सराहना की।




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