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पर्यावरण एवं भूमि सुधार पर गोष्ठी का आयोजन

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07 Jun 24
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पर्यावरण एवं भूमि सुधार पर गोष्ठी का आयोजन

उदयपुर  :  अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण दिवस के उपलक्ष में शांतिपीठ संस्थान, मोलासु विश्वविद्यालय, जे आर एन राजस्थान विद्यापीठ तथा बीएन विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में चलाए जा रहे पर्यावरण जागरण सप्ताह के अंतर्गत आज सुखाड़िया विश्वविद्यालय स्थित पर्यावरण विभाग में भूमि एवं पर्यावरण सुधार पर गोष्ठी का आयोजन हुआ. गोष्ठी की अध्यक्षता शांतिपीठ संस्थापक अनंत गणेश त्रिवेदी ने की, मुख्य अतिथि विज्ञान महाविद्यालय के सह अधिष्ठाता प्रो अतुल त्यागी, मुख्य वक्ता गुजरात स्थित कच्छ विश्वविद्यालय की अर्थ एंड एनवायरमेंट डिपार्टमेंट की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ सीमा शर्मा, विशिष्ट अतिथि सामाजिक एवं मानवीकी  महाविद्यालय अधिष्ठाता प्रो हेमंत द्विवेदी, पर्यावरण विभागाध्यक्ष डॉ. देवेंद्र सिंह राठौड़ थे. गोष्टी संयोजक अनुया वर्मा ने बताया कि पर्यावरण जागरण सप्ताह के तहत आयोजित गोष्ठी में "सेव उदयपुर - सेव द अर्थ " थीम पर भू एवं पर्यावरण वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों तथा उदयपुर शहर के जागरूक संस्थाओं के प्रतिनिधि नागरिकों ने व्यापक शोध परक विचार मंथन करते हुए उदयपुर शहर के भूमि एवं पर्यावरण सुधार पर  व्यापक कार्य योजना बनाकर उदयपुर की पर्यावरण समस्याओं के निदानात्मक उपायों पर कार्य करने  का निर्णय लिया गया. विभागाध्यक्ष डॉ. डी एस राठौड़ ने कहा कि पर्यावरण विभाग द्वारा एयर कंडीशंस द्वारा उत्सर्जित सीएफसी गैस एवं कृषि में काम में आने वाले कीटनाशकों का निर्धारित मानदंडों से अधिक उपयोग किए जाने से मिट्टी की उर्वरता पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों का विस्तृत वर्णन किया और पर्यावरण विभाग में किए जाने वाले शोध कार्यों के बारे में भी जानकारी दी तथा उदयपुर शहर की पर्यावरणीय समस्याओं का आधुनिक वैज्ञानिक पद्धतियों से शोध करते हुए निराकरण के उपाय खोजने तथा व्यापक कार्य योजना बनाकर जन सहभागिता से पर्यावरण सुधार के प्रयास करने की आवश्यकता की और इंगित किया. डॉ हेमंत द्विवेदी ने वर्तमान पर्यावरणीय दशाओं पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अब तक तो नरभक्षी जानवर की अवधारणा सुनने में आती थी लेकिन आज मनुष्य भी नरभक्षी नर स्वरूप में दिखाई दे रहा है. द्विवेदी ने दक्षिण एशिया में खाने में मिलावट के प्रति गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आर्थिक विकास की चाहत में मानवीयता ही विलुप्त हो चुकी है इसलिए पर्यावरण संरक्षण जीवन का उद्देश्य होना चाहिए तथा प्रत्येक व्यक्ति एक वृक्ष जरुर लगाये और उस वृक्ष का नामकरण करें तथा स्वयं की छवि उस वृक्ष में देखें तभी पर्यावरण के प्रति मानवीय दृष्टिकोण जागृत हो पाएगा. विज्ञान महाविद्यालय के सह अधिष्ठाता प्रो अतुल त्यागी ने कहा कि संसाधनों के सदुपयोग और दुरुपयोग की सीमाओं को समझना होगा तथा अंध उपभोगवाद की मानसिक त्रासदी से मानवीयता को उभारना आज शिक्षाविदों का प्रथम दायित्व बन गया है साथ ही वृक्षारोपण के साथ ही साथ वृक्षों की देखभाल करना भी आवश्यक है. मुख्य वक्ता डॉ सीमा शर्मा ने गुजरात के कच्छ स्थित व्हाइट डेजर्ट के नाम से प्रसिद्ध बन्नी घास क्षेत्र के मरुस्थलीकरण पर पीपीटी प्रेजेंटेशन के माध्यम से मरुस्थलीकरण के कारण प्रभाव एवं सामाजिक परिस्थितियों का विश्लेषण प्रस्तुत किया. अध्यक्ष उद्बोधन में त्रिवेदी ने मेवाड़ के शौर्य संस्कृति और पर्यावरण में हो रहे मौलिक नकारात्मक प्रभावों को इंगित करते हुए पर्यावरण विभाग के शिक्षाविदों एवं विद्यार्थियों को अग्रणी भूमिका में आने तथा भविष्य की समस्याओं के वर्तमान में निराकरण उपलब्ध कराने का आह्वान किया, साथ ही त्रिवेदी ने अध्यात्म और विज्ञान दोनों को साथ लेकर ही मानवीय त्रासदियों से बचाएं के उपाय को संभव बताया.
 कार्यक्रम में समाजसेवी डॉ जिनेंद्र शास्त्री ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि व्यापक जन सहभागिता से ही पर्यावरण संरक्षण किया जा सकता है तथा मेवाड़ की सांस्कृतिक वह प्राकृतिक विरासत को पहुंच रहे आघातों पर चिंता व्यक्त की. कार्यक्रम में पूर्व भू वैज्ञानिक प्रो पीआर व्यास, बीएन विश्वविद्यालय की डॉ जय श्री सिंह व डॉ कमल सिंह राठौड़, राजकुमार मेनारिया, एडवोकेट भरत कुमावत, लोकेश चौधरी ने भी गोष्ठी को सम्बोधित किया. कार्यक्रम का संचालन डॉ. सोनिका जैन ने किया.


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