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औरतों को बराबरी के जितने अधिकार दिए गए हैं उतने किसी भी धर्म में नहीं

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09 Mar 19
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औरतों को बराबरी के जितने अधिकार दिए गए हैं उतने किसी भी धर्म में नहीं

अजमेर। सूफी संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के वंशज एवं वंशानुगत सज्जदानशीन दरगाह दीवान ने महीला दिवस पर कहा कि इस्लाम लोकतान्त्रिक मजहब है और इसमें औरतों को बराबरी के जितने अधिकार दिए गए हैं उतने किसी भी धर्म में नहीं हैं। इस लिये मौजूदा दौर में नारी शक्ति को कमेजोर आंकना पुरूष प्रधान सोच रखने वालों की गफलत है उन्हें अपनी इस सोच को बदलकर भ्रूण हत्या जैसे अमानवाीय कृत्यों को त्यागना चाहिये।

 

 शुक्रवार को महिला दिवस के मौके पर दरगाह दीवान सैयद जैनुल आबेदीन अली खान ने जारी बयान में कहा कि इस्लाम पहला धर्म है जिसने व्यवस्थित ढंग से महिलाओं को उस समय सशक्तिकरण प्रदान किया जब उन्हें पुरुषों के अधीन माना जाता था। एक महिला के स्वतंत्र अस्तित्व और गरिमा के साथ समानता की इस समय कोई कल्पना नहीं थी। इसलिए मौजूदा दौर में महिला को दोयम दर्जा देने वाली संकीर्ण सोच को बदल कर बच्चियों को बेहतर शिक्षा देकर समाज को विकसित करने की और कार्य करने की आवश्यकता है इसके अलावा भ्रूण हत्या जैसे मानवीय कुरीतियों को त्याग कर महिला सशक्तिकरण को प्रबलता से कायम करना होगा। 

 

उन्होंने कहा कि नारीवाद क्या है ? सिर्फ महिलाओं का सशक्तिकरण और उन्हें भी पूर्ण मानव होने का अधिकार देने का आंदोलन है। इस तरह हम 20 वीं सदी की शुरुआत में देखते हैं कि पश्चिमी देशों में महिलाओं की स्वतंत्र स्थिति नहीं थी। 1930 के दशक के बाद ही महिलाओं को समानता का अधिकार प्राप्त हुआ और कई पश्चिमी देशों ने इस संदर्भ में कानून पास किये। अब भी कई समाजों में पितृ-सत्तात्मक व्यवस्था लागू है। आमतौर पर लोगों की धारणा यह है कि इस्लाम में महिलाओं को अत्यधिक अत्याचार और शोषण सहना पड़ता है इस्लाम को लेकर यह गलतफहमी है और फैलाई जाती है कि इस्लाम में औरत को कमतर समझा जाता है। सच्चाई इसके उलट है इस पर इल्जाम तरराषी करने वाले इस्लाम का अध्ययन करें तो पता चलता है कि इस्लाम ने महिला को चैदह सौ साल पहले वह मुकाम दिया है जो आज के कानून दां भी उसे नहीं दे पाए।

 

दरगाह दीवान ने  महिलाओं को दिए गए विशेष अधिकारों का जिक्र करते हुए कहा कि  इस्लाम में  महिलाओं को स्वतंत्र बिज्नेस करने का अधिकार-इस्लाम ने महिलाओं को बहुत से अधिकार दिए हैं। जिनमें प्रमुख हैं, जन्म से लेकर जवानी तक अच्छी परवरिश का हक, शिक्षा और प्रशिक्षण का अधिकार, शादी ब्याह अपनी व्यक्तिगत सहमति से करने का अधिकार और पति के साथ साझेदारी में या निजी व्यवसाय करने का अधिकार, नौकरी करने का आधिकार, बच्चे जब तक जवान नहीं हो जाते (विशेषकर लड़कियां) और किसी वजह से पति और पुत्र की सम्पत्ति में वारिस होने का अधिकार। इसलिए वो खेती, व्यापार, उद्योग या नौकरी करके आमदनी कर सकती हैं और इस तरह होने वाली आय पर सिर्फ और सिर्फ उस औरत का ही अधिकार होगा।


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