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न तन भीगा न मन
उदयपुर । न तन भीगा न मन और नहीं आया जायका। यह सब कुछ दिखा पहले सुखिया सोमवार मेले में। जैसा की नाम अपने आप में स्पष्ट है कि सावन के सोमवारों के दिन ठेट गांव से आदिवासी बालाएं श्रृगांरित होकर इस मेले का लुफ्त उठाने के लिए आती रहीं है। पर इस सोमवार न तो ग्रामीण परिवेश की झलकी ही मिली और न ही इन्द्र ने नैसर्गिक व अलोकिक सौर्न्दय को अपनी आंखों से देखने के लिए तन को भिगोने की जहमत ही उठायी।
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