हम आज आर्यसमाज धामावाला, देहरादून के रविवारीय सत्संग दिनांक 26-10-2025 में सम्मिलित हुए। प्रातः 8.30 बजे से आर्यसमाज के पुरोहित श्री विद्यापति शास्त्री के निर्देशन मे देवयज्ञ अग्निहोत्र सम्मन्न किया गया। यज्ञ के पश्चात आर्यसमाज के सभागार में सत्संग आरम्भ हुआ। आरम्भ में श्रद्धानन्द बाल वनिता आश्रम की कन्याओं ने गीत प्रस्तुत किया। इसके बाद सामूहिक प्रार्थना हुई। आर्य समाज के पुरोहित श्री विद्यापति शास्त्री जी ने भी एक भजन प्रस्तुत किया। आर्यसमाज में प्रत्येक सप्ताह ऋषि दयानन्द जी के जीवन चरित्र से लगभग 10.00 मिनट तक कुछ अंश का पाठ किया जाता है। यह पाठ पं. विद्यापति शास्त्री जी ने किया। आज के पाठ में उन्होंने स्वामी दयानन्द जी के उत्तराखण्ड स्थित ओखीमठ में भ्रमण का विवरण प्रस्तुत किया।
आज का प्रवचन मुजफ्फरनगर, उत्तरप्रदेश से पधारे युवा विद्वान श्री पवनवीर शास्त्री जी का हुआ। आचार्य जी गुरुकुल, दूधली के नाम से उत्तरप्रदेश में एक गुरुकुल चलाते हैं। गुरुकुल में 25 बालक वैदिक शिक्षा व व्याकरण का अध्ययन कर रहे हैं। अपने उपदेश में आचार्य परमवीर जी ने ऋग्वेद के एक मन्त्र को प्रस्तुत कर उसमें निहित शिक्षाओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सब मनुष्यों के अन्दर प्रेम और श्रद्धा होनी चाहिये। इसके होने से मनुष्य का जीवन सुन्दर बनता है। उन्होंने कहा कि मनुष्य की वाणी उसका सबसे बड़ा आभूषण है। आचार्य जी ने कहा कि जब मनुष्य के जीवन श्रद्धा और प्रेम होता है तो उसे सभी क्षेत्रों में सफलतायें प्राप्त होती हैं। आचार्य जी ने ऋषि दयानन्द जी का उल्लेख कर महाभारत के दुर्योधन को गोत्र-हत्यारा बताया और कहा कि उसने अपने सारे कुल का नाश किया। अपने व्याख्यान को विराम देते हुए आचार्य परमवीर जी ने सब सदस्यों को अपनी वाणी को मधुर व सत्य गुणों से युक्त बनाने की प्रेरणा की।
कार्यक्रम का संचालन श्री नवीन भट्ट जी ने किया। व्याख्यान की समाप्ति पर आर्यसमाज के प्रधान श्री सुधीर गुलाटी जी ने व्याख्यान की प्रशंसा की और आचार्य परम वीर जी को धन्यवाद दिया। प्रधान जी ने कुछ महत्वपूर्ण सूचनायें भी दी। उन्होंने आगामी 30 अक्टूबर से 2 नवम्बर, 2025 तक दिल्ली में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन में सभी सदस्यों को पहुंचने की प्रेरणा की। शान्ति पाठ से पूर्व सभी सदस्यों ने मिलकर आर्यसमाज के दस नियमों का पाठ किया।
कार्यक्रम में आर्यसमाज के वृद्ध, युवा एवं महिला सदस्यायें उपस्थित थीं। कुछ के नाम हैं श्रीमती जगवती जी, बहिन सन्तोष आर्या जी, श्रीमती स्नेहलता खट्टर जी, श्रीमती सुदेश भाटिया जी। पुरुषों में प्रमुख रूप से डा. विनीत कुमार जी प्रोफैसर एवं वैज्ञानिक, श्री कुलभूषण कठपालिया जी, श्री देवकी नन्दन शर्मा जी, श्री प्रीतम सिंह आर्य जी, श्री धीरेन्द्र सचदेव जी, श्री बसन्त कुमार जी, श्री देवेन्द्र सैनी जी तथा वयोवृद्ध सदस्य श्री सतीश आर्य जी।
डा. विनीत कुमार जी आर्यसमाज धामावाला, देहरादून के विश्व प्रसिद्ध संस्थान ‘‘भारतीय वन अनुसंधान संस्थान” में डिपूटी डायरेक्टर (जनरल-शिक्षा) के उच्च पद पर कार्यरत हैं। वह ऋषिभक्त, आर्यसमाज भक्त, स्वाध्यायशील एवं वेद पथ के अनुगामी वा पथिक हैं। उनकी कुछ दिन पूर्व ही इस वरिष्ठ पद पर पदोन्नति हुई है। वह हमारे प्रति भी प्र्रेम एवं आदर की भावना रखते हैं। हमने उनकी पदोन्नति के लिये उन्हें साधुवाद एवं बधाई दी। यह भी बता दें कि डा. विनीत कुमार जी ने लगभग 90 बार रक्त दान किया है। वह शीघ्र ही 100 बार रक्तदान का आकड़ा पार करना चाहते हैं। ऐसे ऋषि भक्त पवित्र व धर्मात्मा को हम सादर नमन करते हैं और उनके स्वस्थ, दीर्घ एवं यशस्वी जीवन की कामना करते हैं। ओ३म् शम्।