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मन-तरंगित, तन तरंगित

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12 Mar 17
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मन-तरंगित, तन तरंगित ,दीवाली,ईद,पोंगल,ग्रीष्म,शिशिर,बसंत, पतझड़,सावन......भारत की धरती पर ये घुले मिले आते हैं और ये धरती फूलों, रंगों,हवाओं, वनस्पतियों,परंपराओं और संस्कृति का एक काव्य बन जाती है....संपूर्ण पृथ्वी पर सिर्फ भारत ही ऐसा देश है जहां पर्व और ऋतुएं संगीत की तरह उतरती है और एक दूसरे से संगत करती एक नया राग रचती है जो मन के भीतर एक उमड़न बन बस जाता है....हजारों साल के दरम्यान इन्ही पर्वों और ऋतुओं ने नदियों के मैदानों में बसी इंसानी आबादी के जज्बो को संवारा है....उसके भाव जगत को एक आकार दिया है...हर साल की तरह इस बार भी ऋतुओं ने खेतों को धानी आँचल पहना दिया है...वनों को पलाश की लालिमा से ढक दिया है..वनों को हरीतिमा से सजा दिया है।
बसंत और फाल्गुन का राग हमारी संस्कृति में भांति-भांति से बजा है,गूंजा है....खजुराहो की प्रस्तर प्रतिमा से लेकर मुगलकाल की चित्रकला और संगीत तक...अमीरखुसरो की कविता से लेकर भक्तिकाल के पदों तक...इस फाल्गुन की अनेक छापें हैं । ये छापें पीढी दर पीढ़ी हमारे मनों पर पड़ी हैं...इनकी प्रतिध्वनियां हमारे अंतर में गूंजी हैं...हम भारतीय इन मौसमों का सृजन हैं...ये रंग और राग हमारी रगों में बहते हैं ।
रंगों का एक इंद्रधनुष मनप्राण में साकार होने को है....साकार होने को है कोई सतरंगी सपना...रंगों के मेघ उमड़ घुमड़ रहें हैं...रंगों की एकादशी श्वांसों में सरगम सी सज रही है...श्याम की बांसुरी की टेर पर राधा बावली हो गई है.....गुलाबी धूप में पीला शिवाला खिल उठा है....नवान्न की प्रतिक्षा और मौसम में बदलाव के साथ पुरुष और प्रकृति दोनों में उल्लास छा गया है...ढाई आखर चार आंखों में बंट गये हैं....खिल उठी है दोपहर.... गोरे रंग को निहारता दर्पण भी रंगीन हो उठा है...
दिशाएं मोरपंखी रंगों में रंग गयी है...किशमिशी महुवा के गांव में धूप सो गई है....मुक्तक सी,बहती बयार सी ठिठोली शुरू हो गई है....सांझ गीत गीत और चांदनी छन्द हो गई है...हवाओं में अबीर गुलाल है...दिशाओं में धमाल है...मन का बावला पंछी फगुआ गा रहा है..आशा ने कुंठा को शिकस्त दे दी है।
कुदरती रंगों में घुला है स्नेह...आइये पर्व और पिचकारियों के अर्थ को समझें और लौटा लायें वही मस्ती ,वही उल्लास,वही आत्मीयता।
बसंत ऋतु के आने के साथ ही जिन गीतों की धूम शुरु होती हैं वे होली के गीत हैं...होली रंगों की तो है ही,गीतों और गालियों की भी है...यह गेर और डांग की भी है...घरों से लेकर मंदिर तक गलियों से लेकर चौक चौबारों तक इसकी धूम रहती है...होली गाने वालो की टोलियां ढप, मंजीरे,ढोलक लेकर निकल पड़ती हैं और भजनों से लेकर हंसी मजाक भरे गीतों की पिचकारियां चलाते हुए शब्दों की गुलाल अबीर उड़ाते दिखाई दे जाते हैं..
बेरंग जिन्दगी को रंगीन बनाएं रखने के लिए यह पर्व एक सन्देश लेकर आता है।
इन दिनों गीतों की धूम रहती है...
‘ढप का गीत सुहावणा
फागण की पहचान
पिचकारी रंग सूं भरी
खेलत सब नर नार’
चंग का घमेड़ा कहां नहीं सुनाई देता....ढप के साथ उड़ती गुलाल किस किस पर नही गिरती...कुदरत भी इन दिनों करिश्माई लगती है...कही पीला तो कही लाल रंग चटख उठता है...यह मिजाजी पर्व है...मिजाजी और मिजाजण को भी मौका मिलना चाहिए ,बस रंग पिचकारी और फिर रंग डारा या रंगडारी.....
होली दिन में ही नही ,चंद्रमा की चांदनी में भी खेली जाती है....दिन भर तो खुले में और शाम ढले घर के अहाते में...भुजियो,मुरमुरियों,सुवालियों की खुशबू और मीठे पानी के स्वाद के बीच ननद भोजाई की होली ऐसी कि वे रंग में अपने पराये सभी को रंगीन बना देना चाहती हैं....इस दौरान गले में पहना नवसर हार टूट जाता है और गीत फूट पड़ता है...
‘चांदाजी ते चाणने
खेलण लागी छे रात
ओजी म्हारा भंवर होली आई’
रंगोत्सव की मस्ती सब कुछ भुला देती है....रंग खेलना होली के पर्व को
सम्मान देना है ...इस पर्व पर ख्यालों की रंगत भी कम नही होती ....घरों में मस्ती के बीच मूसल विवाह,रिन्छ विवाह ,बहू बेटी का झूठ - मुठ विवाह भी रचाया जाता है...प्रेमपगी गालियां गाई जाती हैं...ढोलक ढप से लेकर थाली बाल्टी तक बजाएं जाते हैं और आनंद उठाया जाता है...हंसी की पिचकारियां चलायी जाती है।
हम अपने उत्सवों को समझें... संस्कृति के आयाम को सघन निष्कर्ष दें....
होली प्रीत का संदेश लेकर आती है,यह रंगीन बने रहने की बात कहती आती है...जीवन में कितने ही संकट आए... बाधाएं खड़ी होती जाए मगर उस रंग को बदलना ही जीवन की चाल होती है....इस चाल का अनूठा सन्देश होली की लौ ही नही देती, बल्कि रंगधारा भी देती है...यह रसधारा है जिसमे रंग के रुप में जीवन का आनंद निहित लगता है।
पेड़ो ने नए पत्तें पहन लिए हैं....फूलों पर रंग उतर आया है...हवा में रंगों की गमक है....अबीर और गुलाल लिए फाल्गुन आपकी देहरी पर खड़ा है.....शुभ हो यह फाल्गुन...शुभ हो यह रंग पर्व....।
‘ फूले ढेर पलाश तो लगा होली है
मचने लगा धमाल तो लगा होली है
गोरी हुई उदास तो लगा होली है
पलको पे सजी आस तो लगा होलीहै ’
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