GMCH STORIES

तल्लीनता ही ध्यान का दूसरा नामःसाध्वी अभ्युदया

( Read 6383 Times)

11 Sep 19
Share |
Print This Page
तल्लीनता ही ध्यान का दूसरा नामःसाध्वी अभ्युदया

उदयपुर। वासुपूज्य मंदिर में साध्वी अभ्युदया ने नियमित प्रवचन में कहा कि ध्यान ऐसा हो कि प्रभु में तल्लीन हो जाएं। मन घर पर और शरीर मंदिर में। मन इधर उधर की बातों में और शरीर से मंदिर में और हम कहते हैं कि पूजा करने मंदिर गए। ऐसे में फिर प्रार्थना सफल नहीं होती। मन लगाकर पूजा नहीं करेंगे तो सफलता भी उसी अनुपात में मिलेगी।

उन्होंने कहा कि मंदिर में जाते हुए सबको नही सिर्फ प्रभु परमात्मा की ओर देखना चाहिए। अमूमन सभी प्रभु की ओर नहीं दूसरे लोगों की ओर देखते हैं। प्रभु की ओर ध्यान इतना मग्न होना चाहिए कि ध्यान दूसरी ओर किसी हाल में न जाये। प्रभु को जब कैवल्य ज्ञान प्राप्त होता है तब सभी देव देवता उपस्थित होते हैं। आलम्ब भी बहुत जरूरी है। बैठे हैं तो जमीन का आधार है। ये तीन मूर्ति, सूत्र और अर्थ के आलम्ब होते हैं। प्रभु प्रतिमा का आलम्ब ले लो तो आपका चित्त स्थिर हो जाएगा। ध्यान देकर वचन बोलो तो वाचन के लिए उसका आलम्ब मिल जाता है। इसी प्रकार अर्थ को गवेषणा करोगे तो मन वहीं लगेगा। तीन तरह की मुद्रा होती है। योग, मुक्तासूक्ति और जिन मुद्रा। पद्मासन की मुद्रा में प्रभु विराजित हैं। कायोत्सर्ग की मुद्रा में लीन हो तो सामने वाले का क्रोध समाप्त हो जाता है। मन, वचन और काया की शुद्धता को प्रेनिथान कहते हैं। नौ अंग की पूजा की जाती है।


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories : Education News
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like