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’१५ माह के शिशु की सफल जटिल ओपन हार्ट सर्जरी

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05 Jan 19
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’१५ माह के शिशु की सफल जटिल ओपन हार्ट सर्जरी

शनिवार गीतांजली मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल, उदयपुर द्वारा आयोजित पत्रकार सम्मेलन में इंट्रा कार्डियक रिपेयर सर्जरी एवं आरवीओटी स्टेंटिंग पर विस्तृत चर्चा हुई। इस सम्मेलन में गीतांजली के कार्डियक थोरेसिक एवं वेसक्यूलर सर्जन डॉ संजय गांधी ने बताया कि हृदय शल्य चिकित्सा, हृदय रोग एवं बाल एवं शिशु विभाग की टीम ने अपने संयुक्त प्रयासों के चलते उदयपुर निवासी दीपक खटीक उम्र १८ माह तथा मात्र ५ किलो वजनी षिषु के हृदय में प्रत्यारोपित स्टेंट निकालकर इंट्रा कार्डियक रिपेयर सर्जरी कर नया जीवन प्रदान किया। ५ से ६ घंटें चले इस ऑपरेषन को सफल बनाने वाली टीम में डॉ संजय गांधी के साथ कार्डियक एनेस्थेटिस्ट डॉ अंकुर गांधी, डॉ मनमोहन जिंदल, डॉ कल्पेष मिस्त्री, डॉ आषीश पटियाल, कार्डियोलोजिस्ट डॉ कपिल भार्गव, डॉ रमेश पटेल, डॉ डैनी कुमार एवं डॉ शलभ अग्रवाल, वबाल एवं शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ देवेंद्र सरीन, नियोनेटोलोजिस्ट डॉ धीरज दिवाकर, समस्त ओटी व आईसीयू स्टाफ का महत्वपूर्ण योगदान रहा। हृदय विषेशज्ञों के दल ने यह दावा किया है कि यह सर्जरी राजस्थान में प्रथम अपनी तरह का सफल हृदय ऑपरेषन है।

क्या था मामला?

डॉ रमेश पटेल ने बताया कि उदयपुर निवासी दीपक खटीक जन्म से ही ज्यादा रोने पर नीला पडने के साथ ही बेहोष हो रहा था। आपातकालीन स्थिति में षिषु को गीतांजली हॉस्पिटल में भर्ती कर तुरंत उपचार प्रारंभ किया गया। षिषु की ईकोकार्डियोग्राफी एवं कैथ एंजियोग्राफी की जांचों में पता चला कि वह जन्मजात हृदय रोग ’टेट्रोलोजी ऑफ फैलॉट‘ नामक बीमारी से पीडत है। इस बीमारी में हृदय में एक बडे छेद के साथ फेफडों तक जाने वाली नाडी में रुकावट होती है। जिसका इलाज सर्जरी द्वारा किया जाता है। परंतु षिषु की गंभीर हालत एवं कम वजन को देखते हुए सर्जरी का रिस्क बहुत ज्यादा था। इस बीमारी से पीडत कुछ रोगियों का षंट ऑपरेषन भी किया जाता है परंतु उसमें भी रिस्क बहुत ज्यादा होता है। जिस कारण इस नवजात में बिना चीरे के ऑपरेषन करने का निर्णय लिया गया। नवजात की हालत को स्थिर करने के लिए एवं सफल सर्जरी करने के लिए आरवीओटी स्टेंटिंग की गई, जो कि विश्व में इस तरह के अब तक केवल १०० मामलों में आरवीओटी स्टेंटिंग की गई है। इससे उचित रक्त फेफडों में जाने लगा और नवजात को ऑक्सीजन मिलने लगी। इस प्रक्रिया के बाद षिषु का वजन भी धीरे-धीरे बढने लगा और नीलेपन के दौरे भी कम होने लगे। स्तनपान के साथ-साथ वह अन्य खाद्य पदार्थ खाने में भी सक्षम हो पाया। तत्पष्चात् षिषु के हृदय में से स्टेंट निकालकर पूर्ण इंट्रा कार्डियक रिपेयर सर्जरी की गई।

हृदय षल्य चिकित्सक द्वारा क्या इलाज किया गया?

हृदय षल्य चिकित्सक डॉ संजय गांधी ने बताया कि ऐसे मामलों में सर्जरी बहुत जटिल होती है। इस षिषु में भी हृदय में छेद एवं नाडी में रुकावट को खोलने से पहले कार्डियोलोजिस्ट द्वारा लगाया गया स्टेंट हटाना जरुरी था। यह स्टेंट हृदय के अंदर मांसपेषियों में लगाया गया था जो हृदय की दीवार से चिपक गया था। इस स्टेंट को बहुत ही सावधानी से हटाया गया अन्यथा हृदय कभी-भी फट सकता था। स्टेंट हटाने के पष्चात् हृदय में छेद को बंद किया गया एवं नाडी में रुकावट को खोल दिया गया। इस सर्जरी को इंट्रा कार्डियक रिपेयर सर्जरी कहते है जिसमें हृदय को पूरा सामान्य किया गया। इस ऑपरेषन में ५ से ६ घंटें का समय लगा। इस सर्जरी में हार्ट-लंग मषीन एवं षिषु के सर्जरी में उपयोग में आए जाने वाले सभी छोटे उपकरण लगे जो गीतांजली कार्डियक ऑपरेषन थियेटर में मौजूद है। डॉ गांधी ने यह भी बताया कि दो हजार में से केवल १ षिषु में पाए जाने वाली इस बीमारी में त्वरित उपचार की आवष्यकता होती है। किन्तु इतने कम वजनी षिषु का उपचार करना काफी जटिल होता है। सामान्यतः डेढ वर्शीय षिषु का वजन लगभग १० किलो के आस-पास होता है परंतु इस षिषु का वजन मात्र ५ किलो था।

पत्रकार सम्मेलन में गीतांजली के कार्यकारी निदेशक अंकित अग्रवाल ने हृदय रोग विशेषज्ञों की टीम को सफलता की बधाई देते हुए कहा कि गीतांजली हॉस्पिटल इस तरह की और नई चुनौतियों को स्वीकार करते हुए भविष्य में इनसे और कुशल तरीके से निपटने के लिए चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में नए कोर्सिज एवं ट्रेनिंग प्रोग्राम को सम्मलित करेगा जिससे उदयपुर एवं आस-पास की जनता को राजस्थान से बाहर जाने की आवश्यकता नहीं रहेगी।

गीतांजली के सीईओ प्रतीम तम्बोली ने बताया कि गीतांजली का एकमात्र उद्देश्य रोगी को बीमारी से निजात दिलाने के साथ-साथ सामान्य जीवन प्रदान करना है। गीतांजली हॉस्पिटल चिकित्सा के हर क्षेत्र में उत्कृष्ट एवं गुणात्मक चिकित्सा सेवा के साथ नवीनीकरण के प्रति प्रतिबद्ध है। वर्तमान में गीतांजली टरशरी केयर से आगे पहुँच क्वार्टरनरी केयर प्रदान कर रहा है। उन्होंने कहा कि इस सफल सर्जरी के पीछे गीतांजली के विभिन्न चिकित्सा विभागों में बेहतरीन सामंजस्य के साथ-साथ उनका सामान्य ध्येय यही था कि परिवार के दीपक की लौ जलती रहनी चाहिए।


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