बन बैठा हूं कवि
जब से होश संभाला
पाया करीब तुम्हें
वक्त बेवक्त
तुमने दिया साथ
आंसुओं को थाम लेती
मुस्कुराने की वजह तुम दिया करती
दुनियादारी की भीड़ में
तुम मुझे सहलाती
मुझे देती हौसला
बढ़ता चला गया
तुम्हारे साथ
लेकिन फिर एक मोड़ पर
तुमने छोड़ दिया साथ
अब अकेला बैठा
तुम्हारी यादों के सहारे
बन बैठा हूं कवि