उदयपुर। दया के देवता, करूणा के सागर और जन-जन के लोकप्रिय अहिंसा दिवाकर, शेरे राजस्थान, लोकमान्य संत, वरिष्ठ प्रवर्तकरूपमुनि म.सा. सदियों में कभी ऐसी विरल विभूति धरती पर आती हैं। वे तप-जप साध्ना के बल पर आत्म कल्याण के साथ-साथ मानवता के उत्थान के लिए निरंतर पुरूषार्थ करते रहे है।
महाप्रज्ञ विहार में उन्हें श्रृद्धाजंली देते हुए श्रावक श्राविकाओं ने उक्त उद्गार प्रकट किये। श्रमण संघ के विकास उत्थान में आपका महत्वपूर्ण स्थान रहा है। कई बार आफ दर्शन और सान्निध्य में रहने का अवसर मिला, आपका विराट व्यक्तित्व आकाश से भी ऊँचा और सागर से भी गहरा था। दया, करूणा और मानव जाति के कल्याण के लिए आपने जो कार्य किए है वह युगों-युगों तक याद किए जायेंगे। गौशाला, बकडशाला स्कूल आदि 200 से अध्कि हैं।
ऐसे दिव्य व्यक्तित्व के धनी शेरे राजस्थान श्री रूपचंद जी म.सा. के देवलोकगमन से श्रमण संघ और जिनशासन का एक दिव्य सिलारा अस्त हो गया है। वह महामुनि हमेशा के लिए मौन हो गए। 36 कोम जिनको भगवान की तरह पूजा करती थी। अब उनकी वाणी हमेशा के लिए मौन हो गई। समस्त जैन समाज हमेशा रहेगा। उनकी वाणी लोगों के दिलो-दिमाग पर सदियों तक छाई रहेगी। उनकी शिक्षाएं अमर हैं। उनके संयम-साध्ना की महक धरती के कण-कण से आती रहेगी।
Source :