थार रेगिस्तान के मध्य स्थित जैसलमेर रियासत, षिक्षा, संचार सेवा के अभाव में, देश और दुनिया की प्रगति से पूर्ण रूपेण पिछड़ा हुआ इलाका था। साथ ही इस इलाके में मध्ययुगीन सामंती शासन व्यवस्था थी। ऐसी राज व्यवस्था में भी जैसलमेर के स्थानीय कलमकारों ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता की दीवानगी से ओत प्रोत क्रांतिकारी लेखनी से महारावल से लोहा लिया। आजादी के उन दीवानों को देष (जैसलमेर) से निकाल दिया गया या उन्हें जेल में बंद कर अमानवीय यातनाएं दी गयी।
फिर भी जैसलमेर के उच्चषिक्षित देश भक्ति की भावना से अनेक निष्कासित युवकों ने भय के चलते जैसलमेर के बाहर नागपुर, मद्रास,हैदराबाद(सिंध) में रहते हुए अपने लेखनी से आम जन को स्वतंत्रता के प्रति जागरूक करते रहे तथा महारावल को कलम की ताकत से ललकारते रहे। आखिर सेनानियों की जीत हुई तथा सदियों से स्थापित सामंती युग समाप्त हो गया तथा 15 अगस्त 1948 को सार्वजनिक तौर पर अमर सागर प्रोल के बाहर खुले मैदान में लोकतंत्र का तिरंगा फैराया गया। आज जैसलमेर के गांव-गांव, ढाणी-ढाणी, सीमा तक आजादी की महक फैली हुई है।
दरअसल जैसलमेर में आजादी की कहानी ईस 1915 से शुरू हुई जब जैसलमेर राजा के ब्राहण गुरू परिवार के किला निवासी सागरमल गोपा ने अपने मित्रों व कुछ जागरूक नवयुवकों के समर्पण से सर्वहितकारी वाचनालय की स्थापना की गयी। इस संस्था ने देश में चल रहें स्वतंत्रता संग्राम व क्रांतिकारी विचार धारा की राष्ट्रीय स्तरीय पत्र पत्रिकाओं एवं सहित्य मंगवाया गया आम लोगों के पढने के लिए। वाकयी में इस संस्था ने जैसलमेर मे आजादी, राष्ट्रीय एवं शामन्तषाही पीड़ा से मुक्ति की नींव भरदी। इधर जैसलमेर के राजा इसे सहन नहीं कर सके और उन्होनें सम्पूर्ण साहित्य बरामद कर वाचनालय को बंद करा दिया।
जैसलमेर में आजादी की मषाल प्रजलवित हो कर तेज हो चुुकी थी।फिर वर्ष 1920 मे माहेष्वरी भगवान दास केला, सागरमल गोपा एवं अन्य सहयोगियों ने मिल कर महारावल को जनसमस्याओं सम्बधित ज्ञापन पेष कर रियासत में काल्विन स्कूल, लाइब्रेरी, निजी शीक्षा संस्थानों को सहयोग, सफाई एवं स्वास्थ्य आदि के प्रबंध के मुनिस्पलटी बोर्ड, रेल यातायात सुविधा तथा कृषि व्यापार षिल्प विस्तार शासन में प्रजा का सहयोग की मांग कठोर शब्दो मे की गयी तथा इस ज्ञापन की अनेक प्रतियां छपवाकर स्थानीय जनता के अलावा देष के अनेक पत्र-पत्रिकाओं को भेज दी गयी। फलस्वरूप जैसलमेर की शासन व्यवस्था की पूरे देष में पोल खुल गयी।
सागरमल गोपा ने 1930 में नागपुर में प्रवासी युवा संघ की स्थापना की। स्वतंत्रता संग्राम परवान चढता गया और 1932 माहेष्वरी समाज के कांग्रेस विचार धारा के उत्साही लोगो ने रघुनाथ सिंह मेहता की प्रेरणा से नवयुवक मंडल की स्थापना की।
मेहता का जन्म जैसलमेर के दीवान परिवार में हुआ था जो अजमेर से उच्च षिक्षित व राष्ट्रीय स्वतंत्रता की भावना से भरे हुए लेखक थे। इनकी संस्था पर महारावल ने छापा डालकर यहां से देष भक्ति का साहित्य, नेहरू व भक्त सिंह के चित्र आदि जब्त किये गये तथा रघुनाथ सिंह मेहता को गिरफतार कर बिना मुकदमा चलाये मौखिक आदेष से जेल में बन्द कर दिया। जनता में विरोध और बढ गया तथा महारावल के विरोध मे असहयोग आंदोलन चलाया गया। इसके तहत जाती भोज, मेले दरबार के कार्यक्रम में जाना, राजकीय सलामी नजराना कर इतियादी का सामूहिक बहिष्कार कर राजा का विरोध किया। ऐसे में जवाहर सिंह जनता के आगे झुके तथा रघुनाथ सिंह को जेल से रिहा कर दिया। उन्हें जैसलमेर से निकाल दिया गया। बाद में मेहता मद्रास में रहकर स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व करते रहें।
जवाहरलाल नेहरू 1936 में अस्वस्थ हुए तब पूरे देश की तरह जैसलमेर में भी जवाहर दिवस मनाया गया। ऐसे में कुछ युवकों को बंदी बना दिया गया तथा बाद में राष्ट्रीय नेताओं के दखल से इन्हें रिहा भी किया गया।
जैसलमेर के ब्राहमण कवि तेज ने स्वराज बावनी के अलावा राजा भरत हरि, नेनाखसम आदि अनेक काव्य रचनाएं रचकर रम्मत के माध्यम से इसका प्रदर्षन कर आमजन में सामाजिक चेतना एवं सामंतषाही पर व्यंग किया। बाद में महारावल ने कवितेज को प्रताड़ित कर जैसलमेर से निकाल दिया तथा लाल चंद जोषी व जीवन लाल कोठारी पर झूठे मुकदमें चलाकर इन दोनों को जेल में डाल दिया गया।
सागरमल गोपा जो कि जैसलमेर से निष्कासित थे नागपुर में रहकर पत्रकारिता व स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े रहे। गोपा ने रघुनाथ सिंह का मुकदमा, जैसलमेर का गूँडाराज पुस्तके लिखी तथा प्रकाषित कर देष के स्वतंत्रता सेनानियों व स्थानीय नवयुवकों को भेज दी। महारावल की शासन व्यवस्था हिल गई थी। अपने पिता की मृत्यु के बाद सागरमल गोपा अपनी मां को सांत्वना देने के लिए जैसलमेर आए तब 22 मई 1941 को गोपा को गिरफतार कर किले में स्थित जेल में डालकर उनके हाथ पैरों में बेड़िया डाल दी गई। 1 वर्ष हवालात में रहने के बाद उन्हें 7 वर्ष 6 माह की जेल सुनाई गई। जेल में आजादी के इस दीवाने को न केवल यातनाएं दी गई बल्कि उस समय की पुलिस ने उन्हें शारीरिक व मानसिक रूप से पीड़ित किया गया। अप्रेल 1946 को जेल मे गोपा राष्ट्र के लिए शहीद हो गये। देषभर के नेताओं को जब इस शहादत की जानकारी हुई तब निंदा की गई। तथा इसकी विस्तृत जांच की मांग की गई। फिर स्वतंत्रता सेनानी जय नारायण व्यास व सत्य देव व्यास, हिरालाल शास्त्री आदि ने जैसलमेर के स्वतंत्रता आंदोलन में नई उर्जा भर दी।
स्वतंत्रता की लंबी लड़ाई के बाद 15 अगस्त 1947 को देष आजाद हुआ जैसलमेर के पष्चिम में इस्लामिक राष्ट्र पाकिस्तान का उदय हो चुका था। जिसका नेतृत्व मोहम्मद अली जिन्ना कर रहे थे। जिन्ना की सम्पूर्ण भू-भाग पर नजर थी तथा वे जोधपुर,बीकानेर,जैसलमेर को पाकिस्तान में शामिल करने की महत्वकांषा रखते थे। इधर जोधपुर के राजा हड़वंत सिंह इन्हीं रियासतों को मिला कर स्वतंत्र राज्य गठित करना चाहते थे। तथा पाकिस्तान से संधी चाहते थे। जब ने बात राष्ट्र नेता लोह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल को पता चली तो उन्होनें इन रियासतों के राजाओं से सम्पर्क कर भारतगण राज्य में शामिल करने का प्रयास किया। पटेल जैसलमेर महारावल गिरधर सिंह का सहयोग लिया गिरधर सिंह हिन्दूवादी राजपूत थे तथा वे जैसलमेर को किसी भी हालत में पाकिस्तान के साथ नहीं देखना चाहते थे।
देश आजाद होने के बाद 1 वर्ष के उपरांत 15 अगस्त 1948 को अमर सागर प्रोल के बाहर खुले में आजादी का तिरंगा फहराया गया फिर 1949 में महारावल जवाहर सिंह की मृत्यु हो गई तथा 30 मार्च 1949 को महारावल गिरधर सिंह के हस्ताक्षर से हुए समझौते के तहत जैसलमेर स्टेट का राजस्थान में विलय हो गया। देष के टूकड़े होने के साथ ही थार मरूस्थल के भी दो भाग हो गए।
जैसलमेर के स्वतंत्रता संग्राम में सेठ गोविन्द दास, पन्नालाल व्यास, भीखुराम चांडक, मीठालाल व्यास, आईदान पुरोहित, जीतमल जगाणी, नारायणदास भाटिया, भंवरलाल आचार्य, षिव शंकर, मुरलीधर व्यास, जीवन लाल कोठारी, भगवान दास माहेष्वरी, ताराचंद जगानी, छगनलाल भाटिया, लालचंद जोषी आदि अनेक वीर स्वतंत्रता सेनानियों के नाम आजादी के इतिहास की कहानी में दर्ज है।