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मुंशी प्रेमचंद की जयन्ती पर साहित्यकारों व साहित्य ने की चर्चा

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02 Aug 18
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मुंशी प्रेमचंद की जयन्ती पर साहित्यकारों व साहित्य ने की चर्चा जैसलमेर । उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयन्ती पर स्थानीय कवि साहित्यकारों व साहित्य प्रेमियों ने उन्हे याद करते हुए उनके लिखे साहित्य पर चर्चा की।
जिला पुस्तकालय में वरिष्ठ साहित्य कार दीनदयाल ओझा की अध्यक्षता में आयोजित गोष्ठी में कवि ओम प्रकाश ’’अंकुर’’ ने कहा कि प्रेमचंद हिन्दी व उर्दु साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर है तथा उनके लिखे साहित्य को पढकर कई पीढियों ने मार्गदर्शन प्राप्त किया। अंकुर ने प्रेमचंद को कलम का सिपाही बताया।
श्री मणिक्कम ने कहा कि प्रेमचंद के उल्लेख के बिना हिन्दी साहित्य अधूरा है। प्रेमचंद दलित व शोषितो को पीडा को अपने लेखन से उजागार किया। नरेन्द्र वासु ने प्रेमचंद की रचना प्रकि्रया का उल्लेख करते हुए कहा कि प्रेचंद माननीय संवेदनाओं के कुशल चितेरे थे।
साहित्यकार कवि आनन्द जगाणी ने प्रेमचंद को करूणा, पीडा व दर्द का अदभूत रचनाकार बताते हुए कहा कि प्रेमचंद की कहानियां बूठी काकी, ईदगाह व बडे भाई साहब व कफन से हमें उनके संवेदनाओं के विशाल फलक का आभास होता है वे अपने साहित्य में आम आदमी के दर्द को अभिव्यकत् करने वाले लेखक थे।
हास्य कवि गिरधर भाटिया ने प्रेमचंद को इस्सानी जज्बातों को पढने वाला साहित्यकार बताया। भाटिया के अनुसार मानवता व मानवीय मूल्यों की रक्षा ही उनके लेखन का आधार था। वरिष्ठ कवि मनोहर मेहचा ने प्रेमचंद का जीवन वृतांत बताते हुए कहा कि उनका साहित्य यर्थाथ के धरातल पर था।
उपन्यासकार डॉ ओमप्रकाश भाटिया ने कहा कि प्रेमचंद को पढकर ही साहित्य की समझ विकसित की जा सकती है। भाटिया ने कहा कि प्रेमचंद के पात्र आम आदमी के मध्य रहने वाले पात्र है।
वरिष्ठ साहित्यकार नंद किशोर शर्मा ने प्रेमचंद को कालजयी रचनाकार बताते हुए कहा कि आज की युवा पीढी को साहित्य से जोडने की जरूरत है।
कवि मांगीलाल सेवक ने प्रेमचंद के जीवन को दर्शाती कवित का पठन करते हुए उनके जीवन के संस्करण सुनायें।
गोष्ठी के अध्यक्ष दीनदयाल ओझा ने प्रेमचंद को युगदृष्टा, युगसृष्टा व क्रान्तिकारी लेखक बताते हुए कहा कि उनकी रचनाओं ने आजादी को अलख जगाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संचालन मांगीलाल सेवक ने किया।
गोष्ठी में चन्द्रप्रकाश भाटिया, राणमल दैया, विजय व्यास, उगमदान चारण, लक्ष्मण पुरोहित, नेमीचंद जैन सहित अन्य साहित्य प्रेमी उपस्थित थें। अन्त में पुस्तकालव्यद आनन्द चौहान ने धन्यवाद ज्ञापित किया।


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