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लोकनाट्य से ही आज रंगमंच समृद्ध हुआ - भार्गव

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01 Mar 20
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लोकनाट्य से ही आज रंगमंच समृद्ध हुआ - भार्गव

माणिक्यलाल वर्मा श्रमजीवी महाविद्यालय के अंग्रेजी विभाग द्वारा दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार में बीज वक्तव्य देते हुए प्रो. राजुल भार्गव ने कहा कि भरतमुनि का नाट्यशास्त्र रंगमंच की सटीक व्याख्या करता हैं। उन्होंने कहा कि जब धार्मिक और राजनीतिक सत्ताएं अपने विद्रूप रूप में दिखाई दे रही हैं तब रंगमंच की भूूमिका और भी बढ़ जाती है। हमारा आज का रंगमंच लोकनाट्य से ही समृद्ध हुआ है।
मुख्य अतिथि पद्मश्री डाॅ. सईदा हमीद ने कहा कि विपरित समय में ही साहित्य का दायित्व नज़र आता है। जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की लगातार प्रशंसा हो रही है तब ही तो यह संभव हुआ कि जुल्मतों के दौर में ही गीत गाये जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम आज कला माध्यमों की बात कर रहे हैं। ऐसे में गिरीश कारनाड़ की रचनाएं हमें अधिक प्रेरित करती है। यह संगोष्ठी अंग्रेजी में भारतीय नाटक और तकनीक तथा संदर्भो पर आयोजित है तथा कन्नड़ रचनाकार गिरीश कारनाड़ को समर्पित है। अध्यक्षता करते हुए विद्यापीठ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि समाज में बदलाव के साथ ही हमारा रंगमंच भी बदला है। तकनीक सुविधाओं ने अनूदित कृतियों को भी मंच सुलभ करवा कर उनका समुचित मूल्यांकन किया है। आरंभ में संगोष्ठी के आयोजन सचिव प्रो. हेमेन्द्रसिंह चण्डालिया ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि नाटक एक सामूहिक गतिविधि है जो लोक और मंच हो जुड़ी हुई है। नाटक का मूल उद्देश्य मंच पर मनोरंजन या संदेश-प्रेषण है। इसी से समाजोत्थान संभव है।
विशिष्ट अतिथि महाराणा प्रताप विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एन. एस. राठौड़ ने कहा कि रंगमंच के माध्यम से ही रचनाकार अपने विचारों को सही अर्थो में जनता तक पहुॅचा सकता है। यह भी सच है कि तकनीक के माध्यम से ही आज साहित्य अधिक लोगों तक सुगम हो रहा है।
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि भारतीय लोक कला मण्डल के निदेशक डाॅ. लईक हुसैन ने कहा कि रंगमंच एक पूर्ण कला मंच है। किसी भी नाट्य कृति की पूर्ण सार्थकता रंगमंच पर ही संभव है। क्योंकि इसी माध्यम से नाटक नाटककार से छूटकर प्रेक्षकों का हो जाता है।
कार्यक्रम के आंरभ में महाविद्यालय की  प्राचार्या प्रो. सुमन पामेचा ने अतिथियों का स्वागत करते हुए पेशेवर और शौकिया रंगमंच के अन्तर को स्पष्ट करते हुए कहा कि यह माध्यम हर दिन चुनौतियों से जुझता है एवं सामूहिकता ही इसकी सफलता है।
प्रो. मुक्ता शर्मा ने आंमत्रित अतिथियों का परिचय कराया एवं अंत में डाॅ. शारदा वी. भट्ट ने धन्यवाद ज्ञापित किया। संचालन डाॅ. रूखसाना सैफी ने किया। इस अवसर पर प्रो. हेमेन्द्र चण्डालिया की पुस्तक ‘‘किलिंग गांधी-लिविंग गांधी’’, डाॅ. रूखसाना सैफी की पुस्तक ‘‘21 सेंच्युरी डायस्पोरा - ए स्टडी आॅफ चित्रा बैनर्जी दिवाकारूणीज फिक्शन’’, डाॅ. अनन्त दाधीच की पुस्तक ‘‘ग्लोबलाईजेशन एण्ड इण्डियन वीमन नाॅबलिस्ट्स’’ तथा एल.एस. राठौड़ ‘‘डांसिंग द लाईट’’ का विमोचन किया गया। सांयकाल लोककला मंडल के मंच पर ‘‘पीर पराई जाने रे’’ नाटक का मंचन किया गया। उससे पूर्व डाॅ. करण सिंह ने विशिष्ट व्याख्यान दिया। इस सत्र की अध्यक्षता डाॅ. खुशवंत सिंह कंग ने की।


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