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आगामी वर्षों में पानी की कमी की चुनौती से निपटने के लिए जल-मल का उपचार आवश्यक-डॉ. हर्ष वर्धन

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03 Dec 20
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आगामी वर्षों में पानी की कमी की चुनौती से निपटने के लिए जल-मल का उपचार आवश्यक-डॉ. हर्ष वर्धन

नई दिल्ली,(नीति गोपेन्द्र भट्ट) | केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान और स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने आज कहा कि आगामी वर्षों में पानी की कमी की चुनौती से निपटने के लिए जल-मल का उपचार आवश्यक है। उन्होंने देश भर में जल-मल उपचार प्रौद्योगिकी का विस्तार करने का वैज्ञानिकों से आह्वान किया

डॉ. हर्ष वर्धन वर्चुअल माध्यम से सीएसआईआर-एनसीएल पुणे में फाइटोरिड जल-मल उपचार संयंत्र के उद्घाटन के बाद सीएसआईआर के वैज्ञानिकों को संबोधित कर रहे थे। इसे राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरी रिसर्च संस्थान नागपुर और सीएसआईआर-एनसीएल ने विकसित किया है।

केन्द्रीय मंत्री ने फाइटोरिड प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल वाले जल-मल उपचार संयंत्र के लिए सीएसआईआर के वैज्ञानिकों की सराहना की और कहा कि यह एक प्राकृतिक उपचार तरीका है, जिससे उपचारित जल का इस्तेमाल पीने के लिए तथा अन्य कार्यों के लिए किया जा सकता है। उन्होंने आज के आयोजन को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि इस प्रौद्योगिकी को व्यापक इस्तेमाल के लिए बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता है। उन्होंने जैव प्रौद्योगिकी विभाग और विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी विभाग तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत अन्य विभागों की ऐसी कई अन्य परियोजनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि इनमें व्यर्थ जल का उपचार उपयोगी कार्य के लिए किया जा रहा है।

फाइटोरिड एक सब-सर्फेस मिक्स्ड फ्लो कंसट्रक्टिड सिस्टम है, जिसे सीएसआईआर-एनईईआरआई नागपुर ने विकसित किया है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पेटेंट कराया है। यह इस क्षेत्र में दस वर्ष से अधिक लगातार सफलतापूर्वक कार्य कर रहा है और यह अकेली ऐसी जल-मल उपचार प्रणाली है।

फाइटोरिड को कंसट्रक्टिड टेक्नोलॉजी कहा जाता है। यह व्यर्थ जल के उपचार के लिए स्वतःसतत प्रौद्योगिकी है, जो नेचुरल वैटलैंट के आधार पर काम करती है। यह कुछ ऐसे पौधों के जरिए व्यर्थ जल से सीधे पोषक तत्वों को ग्रहण कर लेती है और इसके लिए मिट्टी की जरूरत नहीं रहती। यह प्रौद्योगिकी जटिल ईको सिस्टम है, जो पोषक सिंकर और रिमूवर का काम करता है।

फाइटोरिड प्रौद्योगिकी का जल-मल के उपचार के लिए उपयोग से बागबानी कार्य के लिए भी उपचारित जल का पुनर्उपयोग संभव है।

सीएसआईआर-एनसीएल पहली सीएसआईआर प्रयोगशाला है, जहां एनईईआरआई फाइटोरिड जल उपचार प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा रहा है। पारम्परिक प्रक्रियाओं के मुकाबले जल-मल उपचार के लिए फाइटोरिड प्रौद्योगिकी पर आधारित प्राकृतिक प्रणाली में ऊर्जा का इस्तेमाल नहीं होता और इसके प्रचालन और रखरखाव का खर्च नहीं होता है। फाइटोरिड टेक्नोलॉजी को पूरी तरह सीएसआईआर-एनईईआरआई ने डिजाइन और विकसित किया है और इसका कार्यान्वयन टेक्नो ग्रीन एनवायरमेंटल सिस्टम पुणे के कंसलटेंट के माध्यम से सीएसआईआर-एनसीएल पुणे कर रहा है।

इस अवसर पर सीएसआईआर के महानिदेशक और डीएसआईआर के सचिव डॉ. शेखर सी. मांडे उपस्थित थे, जबकि सीएसआईआर-आईआईसीटी के निदेशक डॉ. एस. चंद्रशेखर, सीएसआईआर-एनसीएल के निदेशक प्रोफेसर अश्विनी कुमार नांगिया तथा अन्य संस्थानों के निदेशक वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से उपस्थित रहे।

 


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